PM Modi Ayodhya Deepotsav 2022: अभिराम से राम तक की यात्रा पर नरेंद्र मोदी

PM Modi Atodhya Deepotsav 2022: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों अपने जीवन में इसी यात्रा पर है। यह मोदी के सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने की यात्रा है।

Report :  Yogesh Mishra
Update:2022-10-23 18:32 IST

पीएम नरेंद्र मोदी (Pic: Social Media)

PM Modi Atodhya Deepotsav 2022: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों अपने जीवन में इसी यात्रा पर है। यह मोदी के सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने की यात्रा है। यह यात्रा वोट की नहीं है। वोट की यात्रा तो उसी समय समाप्त हो गयी जब देश में एक भी मुसलमान उम्मीदवार न उतार कर भी बहुमत की सरकारें बना ली गयीं। सोमनाथ, केदार नाथ, बद्रीनाथ, विश्वनाथ, महाकाल, अयोध्या ये भारत की कालजयी चेतना के प्राणवायु हैं। ये ऐसे शक्तिपुंज हैं, जो दुर्धर्ष परिस्थितियों में भी हमें जीवित रखते हैं। सनातन धर्म को बचाये रखा। ये हमारे आस्था के केंद्रों की शक्ति है। क्योंकि मुस्लिम आक्रांताओं, ब्रिटिश व्यापारियों ने सनातन धर्म को नष्ट करने की कम कोशिश नहीं की। वह लोभ से, लाभ से, अत्याचार से भय से। हज़ार साल के मुस्लिम शासन काल में चालीस हज़ार से अधिक मंदिरों को तोड़ने व लूटने के प्रमाण मिलते हैं। वे इसके माध्यम से सनातन धर्म की शक्ति को नष्ट कर रहे थे। सनातन धर्मावलंबियों के एकजुट होने का प्लेटफ़ार्म तोड़ रहे थे। ये सभी हमारे आस्था के शक्तिपुंज थे।

सनातन उत्सव धर्मी है। वह निजता में नहीं, सामूहिकता में विश्वास करता है। तभी तो कहता है," धर्म की जय हो। अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भावना हो। विश्व का कल्याण हो।" वह अपनी पूजा अर्चना में प्राणियों के कल्याण की कामना करता है। वह वसुधैव की बात करता है। पर मुसलमान व ईसाई केवल अपने धर्मावलंबियों तक ही दुनिया मानते हैं। उनके भी कल्याण की नहीं, सुख की कामना करते हैं। वह भी भौतिक सुख। पर मोदी अभिराम से राम की जिस यात्रा पर हैं, वह हिंदू पुनर्जागरण का अनुष्ठान है। यह होना तो आज़ादी के बाद चाहिए था। पर कांग्रेस व वामपंथ इसके रास्ते में अवरोध बने रहे। वैसे इसके लिए जनता को सरकार की ज़रूरत नहीं थी, वह खुद कर लेती। पर जनता को कोई नेतृत्व करने वाला नहीं मिला। कोई ऐसा भी नहीं मिला, जो बहुसंख्यक नागरिकों में इस आत्मबल का संचार कर सके कि वे आगे बढ़ कर खुद ब खुद इस परिवर्तन के वाहक बन बैठे। हमारा इतिहास पराजय का लिखा गया। जय के इतिहास से हमें वंचित रखा गया। हमें उस अतीत से काट दिया गया, जिसमें भारत सोने की चिड़िया था। जिसमें भारत विश्व गुरू था। भारत ने जिस धर्म ,अर्थ, काम, मोक्ष के क्रम को जीवन व समाज के लिए निर्धारित किया। उसके मूल में धर्म ही है। हमें धर्मप्रद अर्थ चाहिए होता है। हमारे काम के मूल में भी धर्म ही है, आनंद नहीं। मोक्ष लिए धर्म अनिवार्य होता ही है। आज इसी धर्म को नरेंद्र मोदी ने पुन: प्रधान बना दिया है। सबके मूल में रख दिया है। सबके शीर्ष पर ला कर टिका दिया है। हालाँकि यह धर्म निरपेक्ष व कथित धर्म निरपेक्ष ताक़तों को नागवार लग रहा है। पर मोदी के इस बदलाव को लोकतंत्र में लोक का समर्थन है।

अभिराम का शाब्दिक अर्थ तो आनंद दायक, नयनों को सुख देने वाला होता है। पर यह आदिदेव भगवान शंकर का पर्याय भी है। भगवान शंकर का एक नाम अभिराम है। सोमनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, विश्वनाथ भगवान शिव के निवास स्थल हैं। इसे सुंदर बनाना, इसका पुनर्निर्माण करना एक अनुष्ठान है। एक यज्ञ है।

विष्णु सहस्रनाम में राम विष्णु का 394वां नाम है। राम की प्रतिमा विष्णु अवतारों के तत्वों को साझा करती है। इसके दो से अधिक हाथ कभी नहीं होते हैं। वह अपने दाहिने हाथ में एक बाण रखते हैं। जबकि वह अपने बाएं हाथ में धनुष रखते है। उनके लिए सबसे अनुशंसित प्रतीक यह है कि उन्हें त्रिभंगा मुद्रा (तीन बार मुड़े हुए "एस" आकार) में खड़ा दिखाया जाए। आमतौर पर लाल रंग के कपड़े पहने हुए। लक्ष्मण उनके बाईं ओर जबकि सीता हमेशा दाईं ओर होती हैं। ये दोनों सुनहरे-पीले रंग के हैं। राम वैदिक संस्कृत शब्द है। जिसके दो प्रासंगिक अर्थ हैं। एक अथर्ववेद में पाया गया है, जैसा कि मोनियर विलियम्स द्वारा कहा गया है, जिसका अर्थ है "गहरा, गहरा रंग, काला।" यह रात्री शब्द से संबंधित है। जिसका अर्थ है रात। वैदिक ग्रंथों के मुताबिक़,":सुखदायक, रमणीय, आकर्षक, सुंदर, प्यारा।" इस शब्द को कभी-कभी विभिन्न भारतीय भाषाओं और धर्मों में प्रत्यय के रूप में प्रयोग किया जाता है, जैसे कि बौद्ध ग्रंथों में पाली, जहां -राम समग्र शब्द में "मन को प्रसन्न करने वाला, प्यारा" का भाव जोड़ता है। राम शब्द की जड़ राम है- जिसका अर्थ है ' रुक जाओ, स्थिर रहो, आराम करो, आनन्द करो, प्रसन्न रहो।'

महाभारत में रामायण का सारांश है। राम किंवदंतियाँ जैन व बौद्ध धर्म के ग्रंथों में भी पाई जाती हैं, हालांकि इन ग्रंथों में उन्हें कभी-कभी पौमा या पद्म कहा जाता है। राम और सीता की कथा का उल्लेख बौद्ध धर्म की जातक कथाओं में दशरथ जातक कथा संख्या 461 के रूप में किया गया है। लेकिन कुछ अलग वर्तनी जैसे लक्ष्मण के लिए लखना और राम के लिए राम -पंडिता के साथ। जैन ग्रंथों में राम को आठवें बलभद्र के रूप में वर्णित किया गया है। सिख धर्म में राम को विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है ।

असम में बोरों लोग खुद को रामसा कहते हैं , जिसका अर्थ है राम के बच्चे ।छत्तीसगढ़ में रामनामी के लोगों ने अपने पूरे शरीर पर राम के नाम का टैटू गुदवाया। यह परशुराम द्वारा स्थापित एक हिंदू समुदाय है। राम को समर्पित हिंदू मंदिर 5वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाए गए थे। लेकिन ये बच नहीं पाए हैं। सबसे पुराना जीवित राम मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर के पास है। जिसे महानदी के पास राजीव-लोकाना मंदिर कहा जाता है। यह विष्णु को समर्पित एक मंदिर परिसर में है और 7वीं शताब्दी का है, जिसमें 1145 ईस्वी के आसपास कुछ जीर्णोद्धार कार्य किए गए थे जो पुरालेख संबंधी साक्ष्यों के आधार पर किए गए थे। ' राम राम' बोलने के पीछे गूढ़ रहस्य है। हिन्दी की शब्दावली में 'र' सत्ताइस्वां शब्द है, 'आ' की मात्रा दूसरा और 'म' पच्चीसवां शब्द है। अब तीनों अंको का योग करें तो 27 + 2 + 25 = 54, अर्थात एक राम का योग 54 हुआ। इसी प्रकार दो राम राम का कुल योग 108 होगा। यह हिंदुओं की एक शुभ संख्या है।

शिव का शाब्दिक अर्थ है जहां कुछ नहीं है। शून्य। हमारे यहाँ ब्राह्मांड को शून्य से उत्पन्न व शून्य में विलीन मानते है। ये शैव धर्म के सर्वोच्च देव हैं। त्रिदेव के एक देव हैं। शिव की जड़ें पूर्व वैदिक हैं। नटराज के रूप में शिव का चित्रण भी है। हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व रखने वाले अर्ध चाँद, गंगा, मृगछाला, नंदी, त्रिशूल, साँप, दाहिने हाथ में रुद्राक्ष की माला, डमरू भगवान शिव के अभीष्ट हैं। लिंग पुराण में शिव के 28 रूपों का वर्णन है। इनका सामान्य मंत्र हर हर महादेव है। बौद्ध तंत्रों में शिव का ज़िक्र है। शिवरात्रि इनके पूजन का विशेष दिन होता है। इन्हें अर्धनारीश्वर भी कहते हैं। वे संगीत के स्वर हैं। ध्यान के उत्स हैं। देवताओं के रक्षक। असुरों के संहारक हैं। ओल्ड हैं। आशुतोष हैं।

मोदी हमारे आदि देव महादेव के स्थानों की पुनर्प्रतिषठा कर रहे हैं। हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्म स्थान को दिव्य व भव्य स्वरूप देने में जुटे हैं। यह कठिन काम था। कठिन काम है। आदि देव के स्थान, मर्यादा पुरुषोत्तम का स्थान, षोडश कलाधारी का स्थान सब के सब को हिंसा के बदौलत, रक्तपात करके हमें वहाँ से वंचित कर दिया गया। भाजपा ने अपने पालनपुर अधिवेशन में अयोध्या, मथुरा, काशी को घोषणापत्र का हिस्सा बनाया था। तीस साल उसे लगे जनता को यह बताने, समझाने और जागरूक करने में। फिर जनता ने प्रचंड बहुमत की उसकी केंद्र में दो और कई राज्यों में सरकारें दे दीं। पर आज जब बिना किसी खून ख़राबे के, अदालत के फ़ैसलों का लंबा इंतज़ार करने के बाद, शांति पूर्ण ढंग से उन स्थानों की पुनः प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है, तो इस धार्मिक अनुष्ठान को रोकने वालों, आलोचना करने वालों को सुर असुर संग्राम याद करना चाहिए । कौन राष्ट्र नहीं चाहेगा कि वह ग़ुलामी के प्रतीकों से मुक्त हो जाये? जो फ़ैसले हम पर तलवार के जोर पर थोपे गये, उन्हें पलट दिया जाए? मोदी की अभिराम से राम की यात्रा यही तो है। ज़रूरी है इसे आगे बढ़ाये। इसमें लोग जुड़ते चले जायें।

( लेखक पत्रकार हैं।)

Tags:    

Similar News