आयकर-को जड़मूल से बदलें
दुनिया के लगभग एक दर्जन देशों में उनके नागरिकों पर आयकर नहीं थोपा जाता है। लेकिन आयकर की जगह जायकर की व्यवस्था लागू करने में काफी पेचीदगियां है
इस साल के बजट पर मेरा लेख पढ़कर दर्जनों पाठकों ने पूछा कि आपने भारत की आयकर अव्यवस्था पर सख्त टिप्पणी क्यों नहीं की? इस सवाल के जवाब में मैं यही कह सकता हूँ कि मैं तो कई वर्षों से कह रहा हूँ कि भारत में आयकर की जगह जायकर लगाना चाहिए। याने लोगों की आमदनी नहीं, खर्च पर टैक्स लगाना चाहिए ताकि लोग बचत करें और उस बचत की राशि का उपयोग राष्ट्र-निर्माण के लिए भी हो सके।
दुनिया के लगभग एक दर्जन देशों में उनके नागरिकों पर आयकर नहीं थोपा जाता है। लेकिन आयकर की जगह जायकर की व्यवस्था लागू करने में काफी पेचीदगियां है और उसे लागू करने के लिए सरकारी कर्मचारियों का ईमानदार होना भी बहुत जरुरी है। यदि भारत सरकार में इसे लागू करने का फिलहाल दम नहीं है तो कम से कम वह आयकर व्यवस्था को सुधारने की कोशिश तो करे। इस बजट में कोई कोशिश दिखाई नहीं पड़ी लेकिन पिछली सरकारों ने भी क्या किया? उन्होंने आयकर की सीमा में थोड़ा-बहुत फेर-बदल करके अपना पिंड छुड़ाया। उसका नतीजा क्या हुआ? उसका सबसे ज्यादा खामियाजा नौकरीपेशा मध्यम वर्ग ने भुगता।
देश के 140 करोड़ लोगों में से सिर्फ लगभग 6 करोड़ लोगों ने आयकर के फार्म भरे। उनमें से लगभग आधे लोगों ने टैक्स दिया। याने मुश्किल से 2 प्रतिशत लोग टैक्स भरते हैं, जबकि दुनिया के जापान, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे समृद्ध देशों में लगभग 30 से 50 प्रतिशत लोग इनकम टैक्स भरते हैं। भारत के इन दो प्रतिशत लोगों में से डेढ़ प्रतिशत से भी ज्यादा लोग मध्यम वर्ग के नौकरीपेशा लोग हैं। वे अपनी आमदनी छिपा नहीं सकते लेकिन जो करोड़पति, अरबपति और खरबपति लोग हैं, उन पर इतना ज्यादा टैक्स थोप दिया जाता है कि वे टैक्स बचाने के एक से एक नए तरीके खोज लेते हैं। उन्हें टैक्स-चोरी के लिए मजबूर किया जाता है।लेकिन देश के किसानों पर कोई टैक्स नहीं है।
छोटे किसानों को जाने दें लेकिन 5-10 एकड़ से ज्यादा के किसानों पर टैक्स क्यों नहीं है? खेती के नाम पर नेताओं, अफसरों और मोटे पूंजीपति अपनी अरबों रु. की काली कमाई को उजली करते रहते हैं। जिन गरीब लोगों से सरकार आयकर नहीं लेती है, वे भी जीवन भर अपना पेट काटकर तरह-तरह के टैक्स भरते रहते हैं। इसीलिए मेरा सुझाव यह है कि आयकर की मात्रा काफी घटानी चाहिए और देश के कम से कम 60-70 करोड़ लोगों को आयकरदाता बनाना चाहिए। इसमें बड़े और मध्यम किसानों को भी जोड़ना चाहिए। इसके अलावा देश के लगभग 14-15 करोड़ ऐसे लोगों को जो 60 साल से ऊपर हैं, उन्हें सरकार को कम से कम 10 हजार रु. प्रति मास मानदेय देना चाहिए।
यह सर्वथा व्यावहारिक प्रस्ताव है। बशर्ते कि आयकर की व्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार हो। इस लोक-कल्याणकारी प्रस्ताव के बारे में विस्तार से आगे कभी लिखेंगे। इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए महाराष्ट्र में लातूर के प्रसिद्ध समाजसेवी अनिल बोकील ने जबर्दस्त अभियान शुरु किया है। मेरे परम प्रेमी मित्र थे वही बोकील हैं, जिनकी 2014 में मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट करवाई थी और जिनसे महाभारत के अभिमन्यु की तरह अधकचरा ज्ञान लेकर मोदी ने देश पर नोटबंदी थोप दी थी और अभिमन्यु की भांति चक्र—व्यूह में फंस गए।