कोरोनाः तालाबंदी में रमजान, जैसा इस बार, पहले कभी नहीं 

यदि रमजान के दौरान धर्मप्रेमी मुसलमान लंबी-चौड़ी इफ्तार पार्टियों से बचें और उन पर खर्च होनेवाली राशियों को गरीब जरुरतमंदों पर न्यौछावर करें तो कोरोना की लड़ाई में उनका योगदान अपने पड़ौसी देशों के लिए भी एक मिसाल बन जाएगा

Update:2020-04-26 12:15 IST
ramdaan

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

रमजान का महिना शुरु हो गया है लेकिन संतोष का विषय है कि कई मौलानाओं और मुसलमान नेताओं ने इस पूरे महिने में लोगों से सावधानियां बरतने का आग्रह किया है। नमाज पढ़ने के लिए मस्जिदों में इकट्ठे होने की बजाय अब लोग अपने घरों में ही नमाज़ पढ़ेंगे। वे इफ्तार की पार्टियां भी टालेंगे।

जैसा रमजान दुनिया में इस बार आया है, पहले कभी नहीं आया। रमजान के महिनों में मुझे अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान जैसे कई मुस्लिम देशों में रहने का मौका मिला है। वहां मैं हमेशा महसूस करता था कि रुहानी साधना भीड़-भड़क्के की बजाय एकांत में कहीं ज्यादा अच्छी होती है। अल्लाह और बंदे का संवाद एकांत में कहीं बेहतर होता है।

और किसी मजहब में नहीं ऐसा कठिन व्रत

इसके अलावा इफ्तार की पार्टियों में लोगों को मैंने इतना ज्यादा खाते हुए देखा है कि उपवास या रोज़े का कोई मतलब नहीं रह जाता। रोज़े या उपवास जैसी पद्धति हर इंसान के लिए 30 दिन तक चलती हो, ऐसा मैंने किसी अन्य धर्म में नहीं देखा। यह गजब की परंपरा है। जैनियों के उपवास सबसे कठिन होते हैं लेकिन वे रमजान की तरह नहीं होते।

अब भारत की कई मुस्लिम संस्थाओं ने रमजान के दिनों में तालाबंदी का पूरा पालन करने का आग्रह किया है। फिर भी कुछ नादान और कट्टरपंथी लोग इसे नहीं मानेंगे। वे अपना ही नुकसान करेंगे। तबलीगी जमात की तरह वे भी कोरोना को फैलाएंगे। उसका खामियाजा गरीब ठेलेवाले, रिक्शेवाले, मजदूर और दिहाड़ीवाले मुसलमानों को भुगतना पड़ेगा। यदि मक्का-मदीना और अबूधाबी जैसी जगहों पर इतना एहतियात बरता जा रहा है तो भारत में क्यों नहीं बरता जाए ?

रमजान के दौरान कारे-सवाब

रमजान के दौरान जक़ात (दान) देने का भी बड़ा महत्व है। उसे कारे-सवाब (पुण्य-कार्य) कहा जाता है। मैं सोचता हूं कि तालाबंदी के इस मौके पर करोड़ों गरीबों, मजदूरों और मरीज़ों का पेट भरने से बड़ा पुण्य-कार्य क्या हो सकता है। जरुरतमंद आदमी किसी भी मज़हब, किसी भी जाति और किसी भी मुल्क का हो, उसकी मदद करने से बड़ी कोई भगवान की भक्ति या अल्लाह की इबादत नहीं हो सकती है।

सरकार ने दुकानें खोलने और प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की भी घोषणा की है। राज्य सरकारें इन मामलों में पहल कर रही हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इस हफ्ते लाखों लोग सड़कों पर दिखाई देने लगें। यदि रमजान के दौरान धर्मप्रेमी मुसलमान लंबी-चौड़ी इफ्तार पार्टियों से बचें और उन पर खर्च होनेवाली राशियों को गरीब जरुरतमंदों पर न्यौछावर करें तो कोरोना की लड़ाई में उनका योगदान अपने पड़ौसी देशों के लिए भी एक मिसाल बन जाएगा।

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25.4.2020

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