Kalyan Singh: गुड गवर्नेंस की नींव डाली थी कल्याण सिंह ने

Kalyan Singh: कल्याण सिंह एक सख्त प्रशासक माने जाते थे और उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में कानून व्यवस्था एक दम पटरी पर रहती थी।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shweta
Update:2021-08-21 23:19 IST

कल्याण सिंह: फोटो- न्यूजट्रैक

Kalyan Singh: कल्याण सिंह एक सख्त प्रशासक माने जाते थे और उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में कानून व्यवस्था एक दम पटरी पर रहती थी। गुड गवर्नेंस क्या होती है ये कल्याण सिंह ने ही कर दिखाया था। उनमें गजब की प्रशासनिक क्षमता थी। वह सख्त निर्णय लेने और उस पर टिके रहने के लिए जाने जाते थे। उनके गुड गवर्नेंस में यूपी में शिक्षा व्यवस्था का सुधार शुमार है। कल्याण सिंह ने यूपी की शिक्षा व्यवस्था को भी सही रास्ते पर ला दिया था। उस समय यूपी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हालत काफी खस्ता थी और उसकी परीक्षाओं में नक़ल का बोलबाला रहा करता था। नक़ल के भरोसे हाईस्कूल और इंटर पास करने के लिए अन्य प्रदेशों से छात्र यूपी आया करते थे। कल्याण सिंह ने यूपी के इस बदनुमा दाग को साफ़ करने का बीड़ा उठाया। उस समय कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और राजनाथ सिंह शिक्षा मंत्री।

बोर्ड परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए कल्याण सिंह 'नकल अध्यादेश' ले आए। इस अध्यादेश में प्रावधान बनाया गया था कि बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेज दिया जाएगा। इस कानून ने कल्याण सिंह को एक ताकतवर नेता बना दिया। यूपी में किताब रख के नक़ल करने वालों के लिए यह कानून काल सा बन गया। नकल विरोधी अध्यादेश के तहत परीक्षा में नकल को गैर जमानती आपराध की श्रेणी में डाल गया था। परीक्षा में नकल करते बड़ी संख्या में पकड़े गए विद्यार्थियों को जेल भी जाना पड़ा था। इस कानून के तहत मात्र एक वर्ष ही यूपी बोर्ड की परीक्षाएं हो सकीं। उस दौरान सफल होने वाले परीक्षार्थियों की संख्या महज 14 प्रतिशत थी।

इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार हुई और सपा एवं बसपा के गठबंधन से सरकार बनी। मुख्यमंत्री बनते ही मुलायम सिंह यादव ने इस कानून को निरस्त कर दिया। 1998 के चुनाव में भाजपा और बसपा के गठबंधन में सरकार गठित हुई और मुख्यमंत्री बनने पर राजनाथ सिंह ने नकल विरोधी अध्यादेश फिर से लागू किया लेकिन अध्यादेश के प्रावधानों को कुछ हद तक नरम कर दिया गया।

1999 में छोड़ दी थी भाजपा

1999 में कल्याण सिंह ने मतभेदों के चलते भाजपा छोड़ दी और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। 2002 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव उन्होंने अपने दम पर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से लड़ा। 2004 में कल्याण सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी के आमंत्रण पर भाजपा में वापसी तो कर ली लेकिन उनका पुराना रुतबा वापस नहीं आया। 2004 के आम चुनावों में उन्होंने बुलन्दशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे।

2009 में पुनः अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कल्याण सिंह ने भाजपा का दामन छोड़ कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नजदीकियां बढ़ा लीं। लेकिन मुलायम के साथ यह दोस्ती ज्यादा नहीं चली और 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में पुनः वापसी हुई।

2014 में राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार की सिफारिश पर राजस्थान का राज्यपाल बनाया। इसके बाद कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया। कल्याण सिंह के एक पुत्र और एक पुत्री हैं। पुत्र का नाम राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया है और पुत्री का नाम प्रभा वर्मा है। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया वर्तमान में उत्तर प्रदेश की एटा लोकसभा सीट से संसद सदस्य हैं।

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