Ganga Expressway: ताज एक्सप्रेसवे के बाद गंगा एक्सप्रेसवे, चहेतों के हाथ में लड्डू

Ganga Expressway: इसकी कुल परिसंपत्तियाँ 11106 करोड़ रूपये की हैं पर राज्य सरकार ने इस कंपनी पर मेहरबानी दिखाते हुए 30हजार करोड़ रूपये की महत्वाकांक्षी योजना सौंप दी है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-09-15 12:19 IST

गंगा एक्सप्रेस वे (photo: social media )

Ganga Expressway: जो कंपनी पिछले पांच सालों में 165 किमी लंबे ताज एक्सप्रेस वे के निर्माण की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पायी। उसे राज्य सरकार ने 1047 किमी लंबे बलिया से नोएडा तक के गंगा एक्सप्रेस वे निर्माण का काम दे दिया है। कंपनी को चार साल में इसे पूरा करना है।

इंटरनेट पर उपलब्ध जेपी की बैलेन्स सीट के मुताबिक इसकी कुल परिसंपत्तियाँ 11106 करोड़ रूपये की हैं पर राज्य सरकार ने इस कंपनी पर मेहरबानी दिखाते हुए 30हजार करोड़ रूपये की महत्वाकांक्षी योजना सौंप दी है।

कंपनी परियोजना को पाने के लिए टेक्निकल बिड और फाइनेंशियल बिड में किस तरह खरी उतरी इसका जवाब राज्य सरकार के पास इसलिये नहीं था क्योंकि एक्सप्रेस हाईवे बनाने वाली कई विदेशी कंपनियों ने भी निविदा की मंशा जतायी थी।। वे खरे नहीं उतरे। हालांकि कंपनी के चेयरमैन जेपी गौर इसका बहुत माकूल उत्तर आउटलुक से बातचीत में इस प्रकार देते हैं ताज कॉरिडोर योजना बांके बिहारी जी की कृपा से हमें मिली थी। यह भी उन्हीं की मर्जी से मिली है।

देश की अब तक की सबसे महत्वकांक्षी सडक़ परियोजना

मुख्यमंत्री मायावती के बीते जन्मदिन पर राज्य के लोगों को बतौर सौगात दी गयी गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिह के मुताबिक देश की अब तक की सबसे महत्वकांक्षी सडक़ परियोजना के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर की भी सबसे बड़ी परियोजना है। यह बात उन्होंने मायावती के जन्मदिन के अवसर पर मुख्यमंत्री की विशेषताएं गिनाने के साथ ही कहीं थी। बलिया से नोएडा तक 1047 किमी की यह परियोजना जिस कंपनी को बीते जनवरी माह में हासिल हुई इसका लोगों को बहुत पहले से आभास था। बीते 10 दिसम्बर को केन्द्रीय सडक़ परिवहन मंत्रालय के सामने लायी गयी इस परियोजना की निविदा की तिथि 13 जनवरी तय की गयी थी। वह भी तब जब निविदा में भाग लेने वाली कई विदेशी कंपनियों ने योजना की डीपीआर समझने के लिए दिये गये समय को उपयुक्त नहीं मानते हुए उसे बढ़ाने की राज्य सरकार से गुजारिश की थी। लेकिन यह करना सरकार के लिए पता नहीं क्यों संभव नहीं हुआ। प्री क्वालीफाइंग निविदा में 14 कंपनियाँ शरीक हुई थीं। जिसमें 5 विदेशी बड़ी निर्माण कंपनियां मलेशिया के प्लस एक्सप्रेस वे, लिंग्टन इंडिया, सांग यंग एंड यूगरेज और एसएन सी लवाबिन प्रमुख थीं पर मलेशिया, दुबई और सऊदी अरब में एक्सप्रेस वे का निर्माण कर चुकी कंपनियों को दरकिनार कर जिस कंपनी को यह काम देने की पहल हुई उसके पास भवन निर्माण का अनुभव तो हैं पर सडक़ निर्माण का नहीं। निविदा में शिरकत करने वाली भारी भरकम भारतीय कंपनियां रिलायंस एनर्जी, जेपी, गल्फार-पीएनसी (जेवी), जूनम डेवलपर्स,जीएमआर, यूनिटेक और गमॉन को भी अनदेखा कर दिया गया। अपने पिछले कार्यकाल में भी मायावती ने इसी कंपनी को उस समय की महत्वाकांक्षी 165 किमी की ताज एक्सप्रेस परियोजना सौंपी थी पर कंपनी कुछ कर नहीं पायी। गंगा एक्सप्रेस वे का काम मिलने के बाद से जात एक्सप्रेस वे की खातिर जमीन अधिग्रहीत करने के लिये धारा-6 का प्रकाशन शुरू हो गया सूत्रों की माने तो इस मामले में दायर याचिका में राज्य सरकार ने कहा कि हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायधीश द्वारा जांच की जा चुकी है। कोई अनियमिततता नहीं मिली। निर्माण आदि के लिये ग्लोबल टेंडर मांगे गये थे।

जिस तरह सरकार पांच साल पहले जेपी एसोसिएट्स को ताज एक्सप्रेस वे देने के लिए मेहरबान थी। उससे अधिक मेहरबान इस बार गंगा एक्सप्रेस वे में वह दिखती है। पर यह कंपनी इतनी बड़ी परियोजना को पूरा करने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं दिखती। शेयर मार्केट के भरोसे मंद सूत्र के मुताबिक धनराशि इकट्ठा करने के लिये यह कंपनी अब पुराने पावर प्रोजेक्ट्स के मार्फत आईपीओ लाने की तैयारी कर रही है। यही नहीं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम उद्योगों की स्थापना एवं परिचालन हेतु 14 नवम्बर, 2006 को जारी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अधिसूचना के कई प्राविधानों की भी अनदेखी की जा रही है। विन्ध्य इनवायरमेंटर सोसाइटी के प्रदीप शुक्ल बताते हैं कि उप्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लोक सुनवाई के दौरान सूचना अधिकार के तहत अभिलेख उपलब्ध कराने के 27जुलाई , 2007 के आवेदन पत्र पर अभी तक विचार नहीं हुआ। सरकार भले ही कह रही हो कि गंगा एक्सप्रेस वे के मार्ग में संरक्षित पुरातात्विक इमारतें नहीं आतीं पर सूचना अधिकार के तहत 21 सितम्बर , 2007 को पुरातत्व विभाग द्वारा दिये गये जवाब में साफतौर पर लिखा है कानपुर में जाजमऊ का टीला , राज टिकैत राय शिव मंदिर, राजा टिकैत राय की बारादरी, बिठूर का वाल्मीकि आश्रम और नाना फडऩवीस का टीला ही नहीं, मिर्जापुर स्थित चुनार का किला, सारनाथ मंदिर, वाराणसी का वजीस खंभा, कर्मदेश्वरमहादेव मंदिर लहरतारा तालाब और गुरू धाम मंदिर संरक्षित इमारतों की सूची में आते हैं ।यहीं नहीं , यहां 1,50,000 वृक्ष ऐसे हैं जिन्हें काटे बिना परियोजना पूरी नहीं हो सकती। परियोजना की रिपोर्ट के मुताबिक 30 हजार वृक्षों के संभावित कटान से अतिरिक्त पारिस्थितिक स्रोतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए यह झूठ भी बोला गया कि पूरे क्षेत्र में वनस्पितियां लुप्त प्राय वन्य जीव प्रजातियां नहीं हैँ। जबकि हकीकत यह है कि इस इलाके में शीशम, महुआ, जामुन, बरगद अर्जुन, खजूर इत्यादि पेड़ों के साथ-साथ नील गाय, सियार, लोमड़ी, खरगोश, चिंकारा, गोरैया, कौए, मोर तथा लुप्त प्राय पक्षी धनेश भी मिलते हैं ।

दिल्ली से बलिया तक की दूरी दस घंटे में

तकरीबन 19 जिलों की 36 तहसीलें को लाभ पहुंचाने वाली इस परियेजना में दिल्ली से पूर्वी उप्र के अंतिम छोर बलिया तक की दूरी दस घंटे में तय करने का दावा राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है ।और कहा जा रहा है अत्याधुनिक गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना प्रदेश में गंगा नदी के किनारे लगभग 1000 किमी में बसे उन लोगों के लिए नई किस्मत लेकर आएगी जो अब तक दुर्भाग्य से विकास से अछूते रह गये हैँ इसमें 40,000 करोड़ रूपये का निवेश सार्वजनिक निजी साझेदारी से होगा तथा क्षेत्रीय विकास में 80,000 करोड़ रूपये खर्च होना है। 10,000 एकड़ में उद्योग लगाये जायेंगे । सवाल यह उठता है कि गंगा के किनारे बसे औद्योगिक शहर कानपुर से निकलनेवाली कचरे ने कापुर के पहले और बाद में गंगा का प्रदूषण स्तर जितना बढाया है,उसे ही अगर आधार माना जाये तो इस एक्सप्रेस वे पर बसने वाली चार पॉकेट्स गंगा के प्रदूषण को कहां ले जायेंगे? भाजपा नेता ओम प्रकाश सिंह कहते हैँ यह गंगा की संस्कृति और पवित्रता नष्ट करने की साजिश है। यही नहीं , इस इलाके में 35 आईटीआई, 20 पालीटेक्निक, 10 इंजीनियरिंग कालेज, 5 मेडिकल कालेज तथा पैरा मेडिकल स्कूल खोलने के लिये कृषि योग्य जमीन का उपयोग किया जायेगा और खेती पर गाज गिरेगी।राज्य सरकार ने इस परियोजना को पूरा करने में रोड़े न आए इसके लिए प्रशंसनीय पुनर्वास नीति बनायी है । पर चार साल में पूरा करने का लक्ष्य यह बताता है कि परियोजना सरकार ने अपनी उम्र के हिसाब से तय की है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कहा है गंगा एक्सप्रेस वे के निर्माण का काम जिस प्रकार एक ग्रुप विशेष को दिया है । उससे यह साफ हो गया है कि इसमें करोड़ों का घोटाला हुआ है। जो कंपनी पांच वर्षों में एक किमी सडक भी अपनी पुरानी महत्वाकांक्षी ताज एक्सप्रेस वे योजना की न बना सकी हो , सडक़ बनाने का तकनीकी अनुभव न हो , उससे हर रोज एक किमी सडक़ बनाने की उम्मीद करना सियासी हलकों को भले ही बेमानी न लगे पर सडक़ बनाने का हुनर जानने वाले इसे बेहद गैर जिम्मेदाराना लक्ष्य बताते है। हालांकि कंपनी के सर्वेसर्वा जेपी गौड़ आउटलुक से बातचीत में इसका जवाब कुछ इस तरह देते हैँ मैं एक व्यक्ति के साथ संस्था हूं। जेपी परिवार में हर तरह के लोग शामिल हैँ , जिसमें श्रेष्ठ इंजीनियर भी हैं , गंगा एक्सप्रेस वे योजना हमारे दक्ष इंजीनियर पूरा करेंगे जो एक मिसाल बनेगी। हमने समाज निर्माण का संकल्प लिया है जो सेवा एंव गुणवत्ता पर आधारित है। इस पावन कार्य को स्वयं गगंगा जी पूरा करवाना चाहती हैँ। लेकिन इस बात का जवाब क्या है कि पर्यावरण राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण सहित केन्द्रीय विभागों की आपत्तियां भी अभी पूरी तरह से खत्म नहीं करवायी जा सकी हैं।

इतना ही नहीं रात 11 बजे आनन-फानन में जनवरी महीने में औद्योगिक विकास आयुक्त रहे अतुल गुप्ता की ओर से बुलायी गयी प्रेस कांफ्रेस में संवाददाताओं के तमाम कुरेदने केबाद यह नहीं बता पाये कि फाइनेंशियल बिड किसके पक्ष में हुई है। यह बताती हैं कि सरकार अपनो को उपकृत करने की कोशिश में बहुत कुछ दबाये रखना चाहती थी। श्री गुता ने परियोजना के लिये न्यूनतम बोली 293 करोड़ रूपये की बात भले ही रात को कहीं हो पर जेपी एसोसिएट्स के कार्यकर्ता अध्यक्ष मनोज गौड़ सुबह ही मीडिया को बता चुके थे निजी क्षेत्र के इस सबसे बड़े प्रोजेक्ट का ठेका हमें मिल चुका है। हमारी बोली सबसे कम 293 करोड़ रूपये की है। यह भी कम विस्मयकारी नहीं है कि जेपी एसोसिएट्स को लागत की महज एक प्रतिशत राशि गांरटी के रूप में सरकार के पास जमा करना होगा जबकि निर्माता कंपनी 35 वर्षों तक टोल टैक्स वसूलने का अधिकार रखेगी। पर हकीकत यह है कि परियोजना चाहे जितनी भी मुफीद हो लेकिन इसको देने के लिए जिस तरह की तेजी सरकार में देखी जा रही है उससे साफ है कि इस पर कभी न कभी कहीं न कहीं ग्रहण जरूर लगेगा।

( मूल रूप से 28 July,2008 को प्रकाशित । साथ में आगरा से मनीष तिवारी एवं देहरादून से राजकुमार शर्मा)

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