पाक की नापाक चाल, इससे तो खुद डूब जाएंगे इमरान

पाकिस्तान के नेता रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि अगर भारत बम बनाता है, तो हमें भले ही घास खानी पड़े, भूखा रहना पड़े, हम भी बम बनायेंगे। भुट्टो 1971-73 तक राष्ट्रपति और 1973 से 77 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे।

Update:2023-06-03 16:01 IST

योगेश मिश्र

लखनऊ: पाकिस्तान के नेता रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि अगर भारत बम बनाता है, तो हमें भले ही घास खानी पड़े, भूखा रहना पड़े, हम भी बम बनायेंगे। भुट्टो 1971-73 तक राष्ट्रपति और 1973 से 77 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे। तकरीबन 50 साल बाद भुट्टो के पाकिस्तान को प्रधानमंत्री इमरान खान ने उनके कहे की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।

इमरान की पहली यात्रा कर्ज के लिए

हद तो यह है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले के अपने चुनावी अभियान में इमरान खान कहा करते थे कि वह खुदकुशी करना पसंद करेंगे। पर कहीं कर्ज मांगने नहीं जायेंगे। लेकिन इमरान को अपनी पहली विदेश यात्रा ही कर्ज मांगने के लिए करनी पड़ी। आज पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, खाड़ी देशों और चीन के सामने झोली फैला रखी है। अमेरिका ने पहले ही पाकिस्तान को कर्ज देने के नाम पर न कह रखा है।

जुल्फिकार अली भुट्टो

चीन, अमेरिका से दोतरफा मार

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से पाकिस्तान पर अमेरिकी भरोसा कम हुआ है। अमेरिका ने आर्थिक और सैन्य मदद बंद कर दी है। अमेरिका पाकिस्तान को 1.3 अरब डॉलर की मदद देता रहा है। चीन के कर्जों के बोझ ने पाकिस्तान की कमर तोड़कर रख दी है। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के रुख ने पाकिस्तान के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। ट्रंप द्वारा खड़ी की गई मुसीबतें पाकिस्तान पर दोतरफा मार कर रही हैं। पहला, पाकिस्तान को आतंकवाद और भारत द्वारा 370 के खत्म किए जाने पर दी जा रही प्रतिक्रिया पर लानत भेजी है। मोदी और ट्रंप जिस तरह करीब आए हैं वह वैसे ही पाकिस्तान के लिए बेहद मुसीबत वाला सबब है।

इमरान से छुट्टी चाहती है आवाम

पाकिस्तान की आवाम घरेलू समस्याओं के चलते इमरान से छुट्टी चाहती है। उनके खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी चल रही है। लेकिन इमरान हैं कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने को अपने लिए संजीवनी बनाने में जुटे हैं। इस्लामाबाद के बाजार कश्मीरी झंडों से अटे पड़े हैं। यह संयोग है कि भारत स्थित जम्मू कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर दोनों में एक ही तरह के झंडे इस्तेमाल होते रहे हैं। हालांकि 370 के खात्मे के बाद जम्मू कश्मीर से दो झंड़ा दो निशान समाप्त हो गया। लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर में अभी भी दो झंडे लगते हैं, प्रधानमंत्री होता है। पहले जम्मू कश्मीर में भी मुख्यमंत्री के लिए प्रधानमंत्री शब्द का प्रयोग होता था। इंदिरा गांधी ने इसे खत्म किया।

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बाजारों में कुछ भी पाक का नहीं

इमरान पाकिस्तान में कश्मीर के शहीदों को सलाम अभियान चला रहे हैं। इस्लामाबाद की दीवारें इस नारे से अटी पड़ी है। कश्मीर चैक पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी के पुतले जलाये जाने की छूट है। इमरान यह सब इसलिए कर रहे हैं ताकि पाकिस्तान की जनता में उनको लेकर जो विद्रोह पनप रहा है। उसकी धारा मोड़ी जा सके। इमरान अपने इस अभियान में कामयाब होते हुए भी दिख रहे हैं। आम पाकिस्तानी इमरान को डूबता जहाज मान रहा था। इमरान के कार्यकाल में बुरे हाल हैं। महंगाई चरम सीमा पर है। दर दस फीसदी पहुंच चुकी है। सब्जियों का अकाल है। खाने पीने की चीजें पूरी नहीं हो रही हैं। इस्लामाबाद को छोड़कर बाकी जगह केवल तीन घंटे बिजली मिलती है। इस्लामाबाद के बाजार चीनी सामानों से अटे पड़े हैं। पाकिस्तानी बाजारों में पाकिस्तान का सिर्फ अपना सूती कपड़ा रह गया है।

डरा हुआ आवाम

पाकिस्तानी आवाम इस बात से भी नाराज है कि इमरान फाइनेंस मिनिस्ट्री भी अपने पास नहीं रख पाये। वह सेना की कठपुतली बनकर काम कर रहे हैं। पाकिस्तान में सभी वेल्फेयर स्कीम बंद कर दी गई हैं। बीते शुक्रवार को इमरान खान ने हर मस्जिद के बाहर जलसा करके जम्मू-कश्मीर में 370 हटाये जाने के खिलाफ तकरीर करने की बात कही थी। लेकिन सबसे बड़ी फजल मस्जिद के बाहर भी नहीं हुआ। पाकिस्तान में भारत के खिलाफ जो कुछ करने के लिए उकसाया जा रहा है। उससे वहां का आवाम डरा हुआ है। उसे अंदेशा है कि भारत सतलज, रावी और झेलम का पानी बंद कर देगा। पाकिस्तान का सबसे उपजाऊ इलाका रेगिस्तान हो जायेगा। इमरान के कार्यकाल में पाकिस्तानी मुद्रा 40 फीसदी गिर चुकी है। पाक मुद्रा एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी है। चीन को हटा दें तो पाकिस्तान में बीते साल विदेशी निवेश 2.67 अरब डॉलर हुआ है।

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सेना में खर्च के बाद खाने के लाले

बजट घाटा 1990 की उस स्थिति में पहुंच गया है जब देश दिवालिया हो गया था। पाकिस्तान अपनी सेना पर दुनिया में जीडीपी का सबसे अधिक हिस्सा खर्च वाला पहला देश है। पाकिस्तान इस मद पर 11 फीसदी खर्च करता है जबकि भारत का खर्च सिर्फ तीन फीसदी है। सेना पर भारी भरकम धनराशि खर्च करने की वजह से बुनियादी जरूरतों पर खर्च करने के लिए पैसा नहीं बचता। पाकिस्तान को एफटीएफ ने ग्रे लिस्ट में डाल रखा है। इसी आधार पर विदेशों से कर्जा मिलता है। पाकिस्तानी बजट का आकार 300 बिलियन डॉलर का है। पर उसके पास केवल 99 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा शेष है।

ये भी न कर पाए इमरान

अपने चुनाव अभियान के दौरान इमरान कहा करते थे कि वे डॉलर और पाकिस्तानी रुपये की विनिमय दर 90 रुपये लाएंगे। उस समय 1 डॉलर 124 पाकिस्तानी रूपये के बराबर था। आज यह तकरीबन 30-40 रुपये बढ़ गया है। पाकिस्तान के सोशल मीडिया में हैशटैग डॉलर ट्रेंड कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से पाकिस्तान को 12 अरब डॉलर रुपये की मदद चाहिए। 19वीं बार पाकिस्तान कर्ज के लिए मुद्राकोष की शरण में गया है। पाकिस्तान का चालू खाता घाटा 18 अरब डॉलर का है।

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इतिहास से नहीं लिया सबक

हर देश अपने इतिहास से सबक लेता है पर पाकिस्तान कोई सबक लेने को तैयार नहीं। 1947 में पाकिस्तान जब अस्तित्व में आया तब से लगातार गलतियां करता आया है। 1947 और 1971 दोनों समय हमला करना उसकी बड़ी भूल थी। यही नहीं 1971 में भारत के साथ युद्ध, चीन से उसकी दोस्ती उसके लिए भारी नुकसान का सबब बनी। यह संयोग नहीं है कि चीन के उभार और पाकिस्तान के पराभाव की कहानी साथ-साथ चलती है।

पाकिस्तान ने चीन की निकटता अमेरिका की निर्भरता कम करने के लिए की थी। उसे इस बात की गफलत थी कि 1971 के भारत और पाक युद्ध में अमेरिका ने उसकी मदद नहीं की थी। तटस्थ रहा था। जबकि सच यह है कि अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए सातवां बेड़ा छोड़ दिया था। उस समय के सोवियत संघ के भारत की ओर से उतरने के खतरे ने अमेरिका को अपना पांव पीछे खीचने पर मजबूर कर दिया था।

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चीन का चालाकियों भरा साथ

चीन का सहयोगियों के साथ चालाकी भरा रिश्ता होता है। उसने पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (सीपीईसी), जिसे उर्दू में पाकिस्तान चीन इकतिसादी शहदारी कहा जाता है, के लिए 60 अरब डॅालर का निवेश किया है। उसका बड़ा हिस्सा 7 फीसदी ब्याज पर है। हैरतअंगेज यह है कि पाकिस्तान के समूचे कर्ज का दो-तिहाई कर्ज सात फीसदी ब्याज पर ही है। सीपीईसी ने अमेर भाषा डैम के लिए 14 विलियन डॉलर कर्ज दिया है। सीपीईसी के मार्फत चीन का लक्ष्य अपने पश्चिमी शिजियांग प्रांत के काशगर को ग्वादर के साथ जोड़ना है। इसके अंतर्गत 35 अरब डॉलर के ऊर्जा सौदे, 11 अरब डॉलर की इंफ्रास्ट्रक्चरल परियोजनाएं शामिल हैं।

पाक की संप्रभुता के लिए खतरा है चीन

ग्वादर बंदरगाह को ऐसे विकसित किया जा रहा है ताकि उसके मार्फत 19 मिलियन टन कच्चे तेल को सीधे चीन तक पहुंचाया जा सके। पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह के बीच सड़कों के 3 हजार किलोमीटर नेटवर्क और दूसरी ढांचागत परियोजनाओं के माध्यम से संपर्क स्थापित करना है। सीपीईसी में पाकिस्तान के सामने यह विवशता है कि वह इस परियोजना के लिए सारी मशीनरी चीन से खरीदेगा। प्रशिक्षित कुशल कारीगर भी उसे चीन से ही लेने होंगे। दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान के जिवानी में एक नेवी बेस बनाने की चीन ने दिलचस्पी दिखाई है। परन्तु भारत ने ईरान की सीमा पर अफगास्तिान और ईरान से मिलकर जो चाभर पोर्ट में सैन्य बेस तैयार किया है वह जिवानी का जवाब है। अगर इस इलाके में चीनी सेनाएं रहती हैं तो पाकिस्तान की सम्प्रभुता के लिए नया खतरा है।

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गुस्सा फूटा तो निशाना इमरान ही होंगे

इमरान पाकिस्तानी आवाम में जिस तरह जम्मू कश्मीर में 370 को हटाये जाने का गुस्सा भर रहे है उससे उन्हें खुद भी इसलिए डरना चाहिए क्योंकि भारत ने अपनी सीमाएं कम से कम इन दिनों अभेद बना रखी है। भारतीय सेनाओं ने प्रो-एक्टिव नीति अपना रखी है। पाकिस्तान आवाम का गुस्सा अगर पाकिस्तान में फूटेगा तो हालात बताते हैं कि वह 370 के खिलाफ नहीं वह इमरान के खिलाफ होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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