यह 1962 नहीं है!
15 जून 2020 की रात्रि चीन के साथ हिसंक झड़प भारत चीन विवाद की ऐसी घटना है, जिसे आने वाले कई दशकों तक आसानी से भुलाया नहीं जा सकेगा...
ओम प्रकाश मिश्र
15 जून 2020 की रात्रि चीन के साथ हिंसक झड़प भारत चीन विवाद की ऐसी घटना है, जिसे आने वाले कई दशकों तक आसानी से भुलाया नहीं जा सकेगा। हमारी सेना के बीस जवानों (जिसमें एक कर्नल भी थे) की शहादत हर भारतीय के मन मस्तिष्क में छायी रहेगी। इसकी परिणति तात्कालिक युद्ध के मन के रूप में होगी या नहीं, परन्तु भारतीय जनमानस पूरी तरह से चीन के विरुद्ध है।
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...चीन हमारा दुश्मन नम्बर एक है
एक बार जार्ज फर्नान्डिस ने जोर देकर कहा था कि चीन हमारा दुश्मन नम्बर एक है, वह परमसत्य है। चीन 1962 के युद्ध में पंचशील के सिद्धान्तों की हत्या करने का न केवल अपराधी है, वरन 1967 व 1975 में छोटी सीखों से उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
भारत विरोध का कोई भी मौका चीन ने नहीं छोड़ा
यदि बहुत पीछे न भी जायें तो भारत विरोध का कोई भी मौका चीन ने नहीं छोड़ा। चाहे पाकिस्तान में बैठे आतंकियों का मामला हो, चाहे न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप में भारत का होना हो या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता का मामला हो, अनुच्छेद 370 में आंशिक कटौती के मामले को सुरक्षा परिषद में ले जाने का प्रयास हो, हमें कभी भी यह शक नहीं करना चाहिए कि वह हमारा दुश्मन नम्बर एक है।
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आजकल यह चर्चा गम्भीरता से हो रही है कि हम चीन में निर्मित वस्तुओं की खरीद न करें, इस पर सभी को ध्यान देने की जरूरत है, परन्तु हमें अपने उपभोग की प्रवृत्ति में सस्ती तथा यूज एण्ड थ्रो की वस्तुओं से दूर रहना होगा। जब आम नागरिक स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देगा, तभी यह सफल होगा। कम से कम एक जागरूक नागरिक के रूप में हम यह कर सकते हैं।
सैन्य दृष्टि से यह माना जाता है कि चीन बड़ा देश है
सैन्य दृष्टि से यह माना जाता है कि चीन बड़ा देश है, सैन्य संसाधन ज्यादा हैं। सीमा पर आधारभूत संरचना चीन लगातार अच्छी करता जा रहा है, परन्तु युद्ध की स्थिति होने पर यह प्रश्न उठता है कि चीन कितनी सेना व सैन्य संसाधन, भारत की सीमा पर तैनात कर सकता है। यदि युद्ध होता है तो यह निश्चित ही है कि 1962 जैसा कतई नहीं होगा। यह लगभग बराबर की लड़ाई हो सकती है, वायुसेना को हम कम समय में सीमा पर सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं।
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भारतीय सेनाओं के पास अमरीका,रूस, इजरायल जैसे देशों निर्मित हथियार व युद्धक विमान हैं। भारतीय सेना को युद्धों को लड़ने का ज्यादा अनुभव है। वीरता में भारतीय सेना का कोई सानी नहीं है।
विवेकशील भारतीय युद्ध नहीं चाहता
कोई भी विवेकशील भारतीय युद्ध नहीं चाहता, परन्तु यदि युद्ध थोपा गया तो चीन की महाशक्ति वाली छवि नष्ट हो जायेगी। चीन किसी शहर के माफिया/गुंडा जैसा है जो धमकी से काम चलाता रहा है। जापान, ताइवान, वियतनाम जैसे देशों का उदाहरण हमारे सामने है। विश्व में प्रशान्त महासागर से लेकर चारों तरफ वह माफिया/भूमाफिया/समुद्री माफिया के रूप में ही है।
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भारत से युद्ध 1962 जैसा संभव नहीं है
जो चीन कोरोना महामारी के सही आंकड़े न देता हो, वह अपने सैनिकों के मारे जाने की संख्या कैसे दे सकता है? चीन यह समझ रहा है कि भारत से युद्ध 1962 जैसा तो कतई संभव नहीं है, जब वायुसेना को इस्तेमाल नहीं होने नहीं दिया गया था, उस समय चीन की वायुसेना बहुत कमजोर थी। चीन का आर्थिक गलियारा प्रोजेक्ट, चीन की चौधराहट, महाशक्ति बनने का गुरूर, अपने पड़ोसी को गुन्डे की तरह आतंकित करने का स्वभाव, दम्भ, भारत से युद्ध में चकनाचूर होगा ही। युद्ध में दोनों पक्षों की हानि होती है, परन्तु यदि भारत से चीन का युद्ध होता है तो इस समय चीन का तथाकथित वर्चस्व का भ्रम नष्ट होगा।
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