पूर्व प्रधानमंत्री की जयंती पर दौरे-खबरां था वो!

इन्दिरा गांधी की रिपोर्टिंग (''टाइम्स आफ इंडिया'' के लिए) मैंने इक्कीस वर्षों (1963 से 1984) तक किया है। प्रेस कान्फ्रेंस और जनसभायें मिलाकर।

Update: 2020-11-20 11:11 GMT
इन्दिरा गांधी पर के. विक्रम राव का लेख (Photo by social media)

के. विक्रम राव

नई दिल्ली: इन्दिरा गांधी की रिपोर्टिंग (''टाइम्स आफ इंडिया'' के लिए) मैंने इक्कीस वर्षों (1963 से 1984) तक किया है। प्रेस कान्फ्रेंस और जनसभायें मिलाकर। स्थल भी दूर-दूर तक रहे। पहली कोलकाता (अप्रैल 1963) से और आखिरी हैदराबाद (15 अक्टूबर 1984)। उनकी हत्या के ठीक दो सप्ताह पूर्व तक। बीच में आये मुम्बई, अहमदाबाद, वडोदरा, लखनऊ, रायबरेली आदि। वे तब सरकार में थीं, उनकी पराजय के बाद भी। फिर जब दोबारा सत्तासीन हुईं। तीन दशक बीत गये। यादें धुंधली नहीं हुईं, स्मृति ताजी ही है।

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न्यायमूर्ति डीजी पालेकर बोर्ड की संस्तुति के बाद दस वर्ष बीत रहे थे

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आखिरी भेंट से प्रारम्भ करें। सोमवार का अपराह्न था (15 अक्टूबर 1984)। उस दिन हैदराबाद के हुसैन सागर से सटे राज भवन के निजामी सभागृह में इन्दिरा गांधी पधारीं थीं। पत्रकार वार्ता थी। प्रश्नोत्तर के बाद मैं मिलने मंच पर गया। आईएफडब्ल्यूजे का ज्ञापन मुझे देना था। श्रमजीवी पत्रकार वेतन बोर्ड गठित करने हेतु। न्यायमूर्ति डीजी पालेकर बोर्ड की संस्तुति के बाद दस वर्ष बीत रहे थे। ज्ञापन पढ़कर इन्दिरा गांधी का वाक्य था, '' यस यू जर्नलिस्ट्स हेव ए केस''। न्यायमूर्ति भाचावत वेतन बोर्ड बना। फिर मैंने विरोध व्यक्त किया कि पहली बार संवाददाताओं की झझकोर कर तलाशी ली गयी।

अत्यंत नम्र वाणी में वे बोलीं, ''ब्ल्यू स्टार (स्वर्ण मंदिर) घटना के बाद सुरक्षा कर्मी खुद तय कर देंते हैं।'' बड़ा सूचक जवाब था। वे काफी चिंतित लग रहीं थीं। आठवीं लोकसभा के आम चुनाव ढाई माह बाद थे। राजीव गांधी तब सांसद तथा पार्टी महासचिव थे! शेष इतिहास है। तभी मेरा मनोभाव हो रहा था कि दैवी संकेत होगा कि सर्वाधिक प्रिय का उत्सर्ग करो तो कामना पूरी होगी। मां ने कुर्बानी देकर बेटे को प्रधानमंत्री बनवा दिया होगा क्योंकि 1984 दिसंबर में कांग्रेस की पराजय निश्चित थी। राजीव गांधी को सवा ग्यारह करोड़ वोट तथा 404 सीटें मिलीं जितनी उनके नाना को भी 1952 से कभी भी नहीं मिली थीं।

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उसी वक्त मैंने प्रधानमंत्री को सूचित किया

उसी वक्त मैंने प्रधानमंत्री को सूचित किया कि ''लखनऊ में दैनिकों (नेशनल हेरल्ड, नवजीवन तथा कौंमी आवाज) के कार्मिकों को कई माह से वेतन नहीं मिला है। अत: आईएफडब्ल्यूजे की अपील पर लखनऊ के अखबार हड़ताल पर होंगे। आप जब लखनऊ में रहेगी तभी सभी दैनिक बंद रहेंगे। क्या आप चाहती है कि हेरल्ड कर्मचारियों की दीपावली अंधकारमय रहे?'' नवजीवन के चीफ रिपोर्टर हसीब सिद्दीकी ( मो. 9369774311) ने मुझे बताया था कि तब प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी से वार्ता की। वेतन का बकाया राज्य सूचना विभाग के विज्ञापन-बिलों का तुरंत भुगतान द्वारा मिली राशि दे दी गयी।

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