चलो जगाते हैं जीवन में आत्मनिर्भरता

सबको साथ लेकर चलने, परस्पर निर्भरता आने पर अनेक हाथ, अनेक मस्तिष्कों को लेकर अपने आपको सम्पूर्णता की ओर ले जाने का मार्ग खुलता है। पर कोई व्यक्ति पूरी टीम को साथ लेकर तब चल पाता है, जब व्यक्ति अंदर की शक्ति जगाकर आत्म निर्भर बनता है।

Update:2020-11-01 13:30 IST
आत्मनिर्भरता पर सुधांशु जी महाराज का लेख (Photo by social media)

सुधांशु जी महाराज

लखनऊ: जिंदगी की यात्रा निर्भरता से शुरू होती है, पर बड़े होते ही हम सीखते हैं आत्म निर्भरता। अर्थात् स्वयं पर निर्भर होना। उसके बाद स्वयं निर्णय लेने के संकल्प उठते हैं और जीवन में जिम्मेदारी के भाव जगते हैं। जिससे अपने सुख-दुःख के लिए, अच्छे-बुरे के लिये खुद जिम्मेदारी लेने की स्थिति आती है। आत्म-निर्भरता की यात्रा यही तो है। दूसरे शब्दो में इसे ''दूसरों पर निर्भरता से आत्म निर्भरता'' की यात्रा भी कह सकते हैं, जिसके साथ-साथ परस्पर निर्भरता का भाव विकसित होता है। परस्पर निर्भरता से समाज का मजबूत ढांचा खड़ा है। इसे हम लीडिंग पॉवर कहते हैं।

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आत्म निर्भरता से जीवन में एक लहर जन्म लेती हैं

सबको साथ लेकर चलने, परस्पर निर्भरता आने पर अनेक हाथ, अनेक मस्तिष्कों को लेकर अपने आपको सम्पूर्णता की ओर ले जाने का मार्ग खुलता है। पर कोई व्यक्ति पूरी टीम को साथ लेकर तब चल पाता है, जब व्यक्ति अंदर की शक्ति जगाकर आत्म निर्भर बनता है। आत्म निर्भरता से जीवन में एक लहर जन्म लेती हैं, बड़े निर्माण जन्म लेते हैं, बड़ी ताकत बनती है, बड़ा सृजन होता है। जब जीवन में आत्मनिर्भरता जन्म लेती है, तो ही व्यक्ति अपनी शक्ति को पहचान पाता है, तब उसे पता लगता है कि मैं एक छोटी सी जगह बैठने वाला छोटा सा मनुष्य नहीं हूं। उसी आत्मा, उसी शरीर के अंदर नया विकास हो जाता है।

आज सम्पूर्ण संसार के असंख्य लोग अपने रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी समस्याओं में घिरे पड़े हैं। लोग असहाय जीवन जीते और रोते दिखते हैं। कारण एक ही है, आत्मनिर्भरता का अभाव। इसके बिना बड़े से बड़े साधन बेकार हैं। जीवन में आत्मनिर्भरता आते ही क्षमतायें बढ़ जाती हैं। बहुत सारी समस्यायें वैसे ही भागने लग जाती हैं। आत्मनिर्भर व्यक्ति ही अपनी क्षमतायें पहचानता व ऊंचा उठने का दृढ़ प्रयास करता है। तब वह अपने जीवन का उद्देश्य बड़ा रखता, जिंदगी को बड़े रूप में देखता है।

अंदर से आत्मनिर्भरता लाने के लिए जरूरत है

अंदर से आत्मनिर्भरता लाने के लिए जरूरत है हर दिन स्वयं को पवित्र करने, पतित पावन की संगति में बैठने की। पतित पावन, पवित्र का भी पवित्र एक मात्र परम ईश्वर ही है। अतः उससे थोड़ी देर प्रार्थना करें। अपने अंदर की रचनात्मक शक्ति को याद करें। इस आधार पर यदि आपने निश्चय किया स्वयं की आत्म-निर्भरता के साथ, अन्य लोगों को आत्म निर्भर बनाने का, तो अन्तःकरण में अपने सपनों को पूरा करने की नई शक्ति जगेगी।

अपनी शक्ति भूलना ही परावलम्बन है

भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि तुम स्वयं अपनी आत्मशक्तियों को नहीं पहचान पाते, तो याद रखो कि तुम स्वयं अपने दुश्मन बन रहे हो। पहचानो अपनी शक्ति। कहते हैं कि अपनी शक्ति भूलना ही परावलम्बन है। परावलम्बन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण उदाहरण है - बाज के अण्डे को किसी ने मुर्गी के घोसले में रख दिया, अण्डे से निकला बाज का बच्चा मुर्गियों के बीच पलता रहा। उसने मुर्गियों की तरह चलना, खाना आदि सीख लिया, इस प्रकार वह भूल गया कि उसकी शक्ति क्या है? एक दिन एक बाज पक्षी आया, बाज ने उस बच्चे को सावधान किया।

समझाया, अपने जैसी आवाज निकालनी सिखाई तब बाज उड़ा, वैसे ही वह बच्चा भी उड़ने लगा। उसने देखा कि अब अन्य पक्षी उससे डर कर भाग रहे हैं। यही है आत्मनिर्भरता, जो स्वयं को स्वयं की पहचान दिलाती है। जिस दिन खुद को पहचानना शुरू कर दिया, उसी दिन चिन्तायें डरकर भाग जायेंगी। दुःख डर कर भाग जायेगा। अतः खुद को पहचानना ही आत्मनिर्भर होना है।

आत्मनिर्भरता की पहली शर्त है - सकारात्मक विचार रखें। मन को शांत रखने की कोशिश करें, संतुलन में चलें, गलत सोच से बचें। ऐसी चीजों को दिमाग में न आने दें, जो डराती हों।

अपनी शक्ति को पहचानें और अपने आपको ऊंचा उठाने की विविध ढंग से कोशिश करें

अपनी शक्ति को पहचानें और अपने आपको ऊंचा उठाने की विविध ढंग से कोशिश करें। स्वास्थ्य सम्बंधी आत्मनिर्भरता, नींद के प्रति निर्भरता, यानी अच्छी नींद लें, बेखबर होकर सोयें। इसके लिए सोने से पूर्व अपना मस्तिष्क शांत करते चलें और सोचना बंद करें। सोते समय मस्तिष्क शांत हो जिससे सबेरे जागें, तो अपने अंदर ताजगी अनुभव करें।

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दूसरा सूत्र है - प्राणायाम। थोड़ा ध्यान, फिर किसी पुस्तक का ज्ञान, या गुरु की वाणी पढ़ने, सुनने का मौका खोजें। सबेरे के समय आप अपने मन के कम्प्यूटर में जो फीड करेंगे वही चीज शाम तक आपको लाभ देगी। आप निर्णय करें कि सारा दिन मुस्कुराते हुए चलना है, मस्तिष्क को शान्त रखना है। जीवन को न तेज गति चाहिये और न बहुत धीमी गति चाहिये। संतुलित शक्ति बनाये रखना, सधी हुई गति से चलना, शांत होकर रहना और विश्वासपूर्वक मानना कि मैं हर स्थिति को पार कर जाऊंगा, मैं हर सफलता प्राप्त करूंगा, मेरे भगवान मेरे साथ हैं, ये विश्वास बनाकर जीवन में आंतरिक शक्ति जगायें। यही सब पक्ष आत्मनिर्भरता की महत्वपूर्ण सीढ़ियां हैं।

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