सरकारी स्कूलों में पढ़कर राज्यभर में टॉप करना कोई छोटी बात नहीं
आज ये साबित हो गया है कि मात्र सौ रुपये की फीस देकर भी लाखों की फीस भरकर कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का मुकाबला ही नहीं पछाड़ा भी जा सकता है।
हाल ही में हमारे प्रधामंत्री मोदी जी ने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में हरियाणा की उन बेटियों का जिक्र किया जो सरकारी स्कूल में पढ़कर विभिन्न संकायों में राज्यभर में प्रथम स्थान पर रही। हरियाणा के ग्रामीण आँचल में सरकारी स्कूलों में पढ़कर राज्यभर में टॉप करना कोई छोटी बात नहीं है। इन बेटियों को सलाम और प्रणाम उन पूजनीय गुरु चरणों में जिन्होंने निजीकरण में इस दौर में सरकारी और कम सुविधा वाले स्कूलों में इन बच्चों को सच्ची शिक्षा प्रदान कर वास्तविक ज्ञान की राह दिखला दी।
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आज ये साबित हो गया है कि मात्र सौ रुपये की फीस देकर भी लाखों की फीस भरकर कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का मुकाबला ही नहीं किया जा सकता, उनको राज्यस्तर एवं देश स्तर पर पछाड़ा भी जा सकता है। इस सफलता के पीछे बच्चों के मेहनत तो है ही, उन अध्यापको की लगन भी है जो अपनी तनख्वाह पक्की मानकर केवल बैठे नहीं, उन्होंने ख्वाब देखे और बच्चों को दिखाए। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई। जहां तक मेरी सोच है पिछले दस सालों में हरियाणा के सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदली है।
खासकर अध्यापक भर्ती में पात्रता लागू होने के बाद, इससे वही लोग इस पेशे में आये जो काबिल थे और परिणाम आप देख रहें है। इस सफलता के चर्चे आज देश भर में नहीं, विश्व स्तर पर है। हरियाणा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ने बताया कि इस परीक्षा में कला संकाय में सिहमा के रा.व.मा.वि. (महेंद्रगढ़) की छात्रा मनीषा पुत्री मनोज कुमार ने 500 में से 499 अंक अर्जित करके प्रथम स्थान प्राप्त किया। द्वितीय स्थान पर रा०व०मा०वि० (चमारखेड़ा, हिसार) की मोनिका पुत्री अजय कुमार, तृतीय स्थान पर रा.व.मा.वि. (जाड़रा , रेवाड़ी) की वर्षा पुत्री श्री आजाद सिंह ने 500 में से 495 अंक प्राप्त किए।
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विज्ञान संकाय में प्रथम स्थान पर रा.व.मा.वि. (बोडिया कमालपुर, रेवाड़ी) की छात्रा भावना यादव पुत्री बिजेंद्र कुमार रही। रा.व.मा.वि. (बहौली, कुरूक्षेत्र) की श्रुतिका पुत्री जगमेंद्र ने 500 में से 495 अंक प्राप्त दूसरा स्थान प्राप्त किया। बेटी मनीषा अपनी इस सफलता में अपने माता-पिता, दोस्तों और शिक्षकों का खास योगदान मानती हैं। इन सब बेटियों का कहना है कि उन्हें रोज स्कूल जाने के लिए एक दूरी तय करनी पड़ती थी। मनीषा कहती हैं कि उन्होंने स्कूल में टॉप करने की सोची थी, लेकिन ये नहीं जानती थी कि वो राज्य में टॉप करेंगी। मनीषा कहती हैं कि लोगों के अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए, आज लड़कियां लड़कों से आगे हैं।
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सरकारी स्कूल में पढ़कर पर ये अचीवमेंट पाई जा सकती है। क्या जबरदस्त परिणाम आया है, बाकी सरकारी शिक्षकों को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कि बाकी कर सकते है तो आप भी कर सकते है, आपके स्कूलों के बच्चे भी इतिहास लिख सकते है। सभी सरकारी शिक्षक अपने आपको कर्मचारी न समझे। अपने फ़र्ज़ अदा करें ताकि सबको, खासकर गरीब तबके के बच्चों को शिक्षा मिल सके। इससे इन सरकारी स्कूलों की खोई हुई जमीन वापस लौटेगी और लोगों का रुझान बढ़ेगा। एक दिन सब अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजेंगे। आप ऐसे परिणामों के लिए प्रयास करते रहिये।
अध्यापकों और अभिभावकों के अलावा सरकारों को भी अब सरकारी स्कूलों कि दशा पर विशेष ध्यान की जरूरत है। देश के लगभग आधे सरकारी स्कूलों में बिजली या खेल के मैदान नहीं हैं। निजीकरण के कारण बजटीय आवंटन में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा किए गए प्रस्तावों से 27% की कटौती देखी गई। 70 82,570 करोड़ के प्रस्तावों के बावजूद, केवल 59,845 करोड़ आवंटित किए गए। जो सही नहीं है । सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों को मजबूत करने के लिए कक्षाओं, प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों के निर्माण में धीमी प्रगति है। भारत के सरकारी स्कूल शिक्षक रिक्तियों का सामना कर रहें है, जो कुछ राज्यों में लगभग 60-70 प्रतिशत हैं।
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सरकारी स्कूलों को मुख्य योजनाओं को संशोधित अनुमान स्तर पर अतिरिक्त धनराशि मिलनी चाहिए। मानव संसाधन विकास मंत्रालय को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के साथ सहयोग करके स्कूलों की बिल्डिंग्स एवं चारदीवारी का निर्माण करना चाहिए। इसे सौर और अन्य ऊर्जा स्रोतों को प्रदान करने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के साथ भी काम करना चाहिए ताकि स्कूलों में बिजली पहुंच सके। बहुत लंबे समय तक, देश में दो प्रकार के शिक्षा मॉडल रहे हैं। एक विशेष वर्ग के लिए और दूसरा जनता के लिए। दिल्ली में आप सरकार ने इस खाई को पाटने की मांग की।
इसका दृष्टिकोण इस विश्वास से उपजा है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक आवश्यकता है, विलासिता नहीं। इसलिए, इसने एक मॉडल बनाया, जिसमें अनिवार्य रूप से पांच प्रमुख घटक होते हैं और यह राज्य के बजट के लगभग 25% द्वारा समर्थित होता है। आज हमें स्कूल के बुनियादी ढांचे का परिवर्तन,शिक्षकों और प्राचार्यों का प्रशिक्षण, स्कूल प्रबंधन समितियों (एसएमसी) का पुनर्गठन करके समुदाय के साथ जुड़ाव, शिक्षण अधिगम में पाठ्यक्रम सुधार जैसे विषयों पर विशेष सुधार करने की जरूरत है।
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सरकारी प्रीस्कूल प्रणाली का प्रबंधन केंद्र की बाल विकास योजना के माध्यम से किया जाता है, महिलाओं और बाल विकास मंत्रालय के तहत, जबकि स्कूल केंद्र और राज्यों में शिक्षा मंत्रालयों के अंतर्गत आते हैं। भारत में बचपन के कार्यक्रम में भारी निवेश किया गया है, जिसे इक्ड्स के तहत 1.2 मिलियन आंगनवाड़ियों के माध्यम से प्रशासित किया गया है। एएसईआर 2019 के निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि इन प्रारंभिक बचपन शिक्षा केंद्रों को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि वे उपयुक्त "स्कूल-तत्परता" गतिविधियों को लागू करें।
बचपन की शिक्षा के नीति निर्धारण में सुधार के लिए केंद्रीय मंत्रालयों के बीच तालमेल जरूरी है, लेकिन राज्य और जिला प्रशासन को प्रोत्साहित करने से बेहतर है कि प्रारंभिक शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए अधिक से अधिक कहा जाए। एक न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार, हाल के दिनों में हरियाणा में सरकारी स्कूल में कोरोना काल में नए दाखिले 43,000 का आंकड़ा पार कर चुके हैं। वहीँ स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट के लिए 82,000 अभ्यर्थी आवेदन कर चुके हैं !
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अब शिक्षकों के बिना स्कूल कैसे काम करेंगे यह चिंतनीय है। ऐसे में सरकार का गैर ज़िम्मेदाराना रवैया उससे भी ज्यादा चिंतनीय है। देश के प्रधानमंत्री मोदी जी को एक मन की बात देश भर के सरकारी स्कूलों की स्थिति और अध्यापकों की भर्ती और उनकी कार्यशैली को लेकर करनी चाहिए। ताकि देश भर में एक समान शिक्षा का वातावरण ही नहीं बने सभी राज्य उनकी बात को सख्ती से लागू भी करें। शिक्षा में दोहरापन अब समाप्त होना चाहिए, सभी को एक जैसी सरकारी शिक्षा मिले। तभी भारत में भविष्य में समानता की भावना बनेगी।