हिंदुओं के अपमान को कभी न सहन करने वाला शहीद वीर हकीकत राय

भारत एक ऐसी महान धरती है जिसने एकसे बढ़कर एक महान वीर सपूतों को जन्म दिया है और उन सभी वीरों ने अपनी मातृभूमि व हिंदू धर्म की रक्षा के लिये प्राणों की आहुति भी दी है।इनमें कुछ बालक भी हैं जिन्होंने अपने प्राणों की बलि देकर धर्म की रक्षा की है।

Update:2021-02-14 21:09 IST
जन्म व शिक्षा-वीर बालक हकीकत राय का जन्म तत्कालीन पंजाब के सियालकोट नगर में सन 1719 में एक प्रसिद्ध व्यापारी भगमल के घर पर जन्म हुआ था।

मृत्युंजय दीक्षित

भारत एक ऐसी महान धरती है जिसने एकसे बढ़कर एक महान वीर सपूतों को जन्म दिया है और उन सभी वीरों ने अपनी मातृभूमि व हिंदू धर्म की रक्षा के लिये प्राणों की आहुति भी दी है। इनमें कुछ बालक भी हैं जिन्होंने अपने प्राणों की बलि देकर धर्म की रक्षा की है। इसी में एक बालक है वीर हकीकत राय जिसका बलिदान बसंत पंचमी के दिन ही किया गया था।

जन्म व शिक्षा-वीर बालक हकीकत राय का जन्म तत्कालीन पंजाब के सियालकोट नगर में सन 1719 में एक प्रसिद्ध व्यापारी भगमल के घर पर जन्म हुआ था। तब उनके पिता ने अपने पुत्र को फारसी सीखने के उददेष्य से एक मौलवी के पास भेजा। वह अपने पुत्र को पढ़ा लिखा कर सरकारी अधिकारी बनाना चाहते थे। इसलिये उन्होंने हकीकत को उर्दू मदरसे में पढ़ने के लिये भेजा था। कुषाग्रबुद्धि होने के कारण बालक ने मौलवी का प्रेम प्राप्त कर लिया। बालक ने बचपन से ही इतिहास व संस्कृत आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। मौलवी उसकी ओर अधिक ध्यान देकर पढ़ाते थे यह बात मुस्लिम विद्यार्थियों को पसंद नहीं आ रही थी।

तत्कालीन अराजकता का वातावरण- जिस समय वीर हकीकत का जन्म हुआ उस समय भारत का षासक मुहम्मदषाह रंगीला था और वह बहुत ही कमजोर षासक था जिसके कारण उस समय देश में चारों ओर अराजकता का वातावरण था और हिंदू समाज पूरी तरह से असुरक्षित था। मुगल गुंडे हिंदुओं की बहिन- बेटियोें को घर के अंदर से अपहरण कर ले जाते थे तथा उनका घर परिवार तथा खेती ,किसानी सबकुछ लूटपाट कर ध्वस्त कर रहे थे। हिंदुओं के मंदिरों व धार्मिक स्थलों को तहस नहस कर रहे थे। इसी का लाभ उठाकर मदरसे के मुस्लिम छात्रों ने हकीकत को मजा चखाने की सोची।

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मुस्लिम छात्र अब प्रतिदिन किसी न किसी बात पर हकीकत को परेषान करने लग गये थे। एक दिन वह अवकाष होने के कारण मदरसे से घर वापस आ रहे थे कि तभी रषीद नाम से एक छात्र ने हकीकत को आवाज देकर बुलाया और कहा कि ,”तुमने, मोैलवी साहब से मेरी षिकायत क्यों की ?अनवर बोला - मेरे जुंआ खेलने पर भी षिकायत तुमने की है। जब हकीकत कुछ नहीं बोजातब दोनो उसके पीछे पड़ गये और कहने लग गये कि, ”तुमने हम लोगों की मौलवी से षिकायत की इसीलिये अब हम तुमसे बदला लेंगे।“

तब हकीकत बोला - ”कैसा बदला लोगे ? ” वे बोले - “अरे, तू हमें नहीं जानता हम इस्लाम के बंदे हैं। तुम्हें जान से मार देंगे।“तब हकीकत ने पूरी मजबूती से कहा कि, “तुम सब चोरी करते हो जुआ खेलते हो और ऊपर से जान से मारने की धमकी भी देते हो।” इसके बाद अनवर और रषीद हकीकत पर टूट पड़े। तभी मौलवी साहब आ गये और उन्होंने सभी को डांटते हुए अलग किया और घर जाने को कहा।

कई दिनों के बाद अनवर और रशीद ने अपना खेल फिर शुरू कर दिया वह हकीकत को हर हालत में नीचा दिखाना चााहते थे। एक दिन कबडडी के बहाने अनवर और रषीद हकीकत को बुलाने के लिये चुनौती देने लगे। दोनों पक्षों के बीच देवी देेवताओं को लेकर तीखी नोकझोक व अपमानजनक षब्दावली का प्रयोग होने लगा। रषीद ने क्रोध में आकर कहा कि इस काफिर को अब सजा मिलनी ही चाहिये । हम इस्लाम का अपमान बर्दाष्त नहीं कर सकते। इन तीनों के तेज वाद- विवाद सुनकर मुहल्ले के बच्चे भी वहां पहुंच गये। मौलवी साहब अपे घर से ही सारे विवाद को देख व सुन रहे थे। उन्हांेने वहां पहुंचकर बच्चों से पूछा कि- अरे, हकीकत को घेर कर क्यों खड़े हो ?“

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तब अनवर ने कहा इसने हमारी रसमल जादी को गाली दी है ? मौलवी ने हकीकत से पूछा तो उसने कहा कि पहले अनवर ने मां भवानी को गाली दी थी। तब मौलवी ने हकीकत से कहा कि, “क्यांे, मोैत को दावत दे रहो हो इन लोगों से माफी मांग लो।” तब हकीकत ने पूरी मजबूती से कहा कि, ”मैं क्यों माफी मांगू मंैने कोई गुनाह नहीं किया ?” तब मौलवी ने अन्य छात्रों से कहा कि इसे बांधो और काजी साहब के पास ले चलो। वहीं इस काफिर को इसके गुनाह की सजा मिलेगी।

लेकिन मौलवी साहब भी बहुत घबरा गये थे। उनके ऊपर वपारी भगमल की बहुत कृपा थी तथा उन्हें सोने का सिक्का भी उन्हीं से मिलता था। जिसके कारण वह उसके घर की ओर चले गये और घर मे काफी घबराहट के साथ पूरी घटना की जानकारी दी। तब हकीकत के पिता भागमल तुरंत काजी के घर गये।

काजी का न्याय - मुसलमान लड़के काजी के घर पहुंचे और वहां पर उनका दरबार लग गया । मुस्लिम लड़कांे ने अपनी सारी बात मिर्च मसाला लगाकर काजी साहब को बताकर न्याय मांगा जिससे काजी साहब को गुस्सा आ गया और उन्होंने हकीकत से गुस्से में पूछा कि, तुमने रसूलजा दी को गाली देकर इस्लाम का अपमान क्यों किया ? तब हकीकत ने कहा कि, यह मेी गलती नहीं है काजी साहब पहले इन्होंने हमारी मां भवानी को गाली दी और देवी- देवताओं का अपमान किया था। हकीकत ने कहा कि मैं अपने देवी देवताओं का अपमान नहीं सहन कर सकता।

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तब काजी ने कहा कि - क्या भगवान- भगवान की रट लगा रखी है । तुम्हारा पत्थर का भगवान हमारे पवित्र इस्लाम की बराबरी कर सकता है। पत्थर के टुकडे से खुदा का क्या मुकाबला ? रसूलजादी को गाली देने का परिणाम जानते हो? इसके बाद काजी और हकीकत के बीच जोरदार बहस होने लग गयी। अंत में हकीकत ने कहा कि - ”इस्लाम को आप जैसे लोगांे ने ही बदनाम कर रखा है। आप इस्लाम के न्याय की आड़ में अत्याचार और पीड़ितों का गाल घोंटते हो। खुद तो आप नीति सिंद्धांतों पर चलते नहीं और हम हिंदुओं को काफिर कहते हो।“

तब काजी ने कहा कि तुम्हारी मासूम उम्र देखकर हम तुम्हें क्षमा कर देते पर हमारे साथ अनुचित बातें कर अपनी मौत को दावत दी है।

तब हकीकत ने कहा कि आप जैसे लोगों की दया पर जीने से मैं अपने धर्म के लिये मरना पसंद करता हूं। तब फिर काजी और हकीकत के बीच वाद विवाद षुरू हो गया जो इतिहास के पन्ने मंे दर्ज हो गया। काजी ने कहा कि तुम अपने पूरे परिवार के साथ इस्लाम कबूल कर लो या फिर मरने के लिये तैयार हो जाओ। पिता भगमल तो तुरंत अब अपने बेटे की जान बचाने के लिये इस्लाम स्वीकार करने को तैयार हो गये लेकिन वीर हककीत पूरे साहस के साथ जुटा रहा।

बाद में हकीकत को लाहौर के हाकिम षाह नाजिम के दरबार में पेष किया गया। पिता भागमल भी अपने बेटे को बचाने के लिये हाकिम के दरबार पहंुच गये। उन्होंने हाकिम साहब को पूरी बात बतायी और तभी वहां पर काजी भी पहुंच गये। काजी ने हाकिम से कहा कि हकीकत ने इस्लाम का अपमान किया है। वहां पर बडी देर तक वाद वाद- विवाद होता रहा और अंत में यही कहा गया कि इस्लाम स्वीकार कर लो। अंतत:बसंत पंचमी के दिन हकीकत राय का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। वीर हकीकत का यह बलिदान इतिहास के पन्नों में अमर हो गया है।

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