World Earth Day 2021: पहले पानी तो अब हवा खरीदने की आ गई नौबत

पहले तो शराब ही बोतलों में बिकती थी। अब साँसें भी बोतलों में बिकने लगी है। बोतल खत्म तो साँसे भी खत्म।

Reporter :  Praveen Pandey
Published By :  Chitra Singh
Update:2021-04-22 21:56 IST

पृथ्वी दिवस (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

मैनपुरी: आखिर वह दिन आ ही गया, जिसके बारे में हमारे वैज्ञानिक, डॉक्टर्स, बुद्धिजीवी तथा प्रकृति प्रेमी वर्षों से हमें आगाह कर रहे थे। सरकारों ने तेल बचाओ के साथ-साथ पानी बचाओ का भी नारा दिया। पर वह नारे निकम्मे अधिकारियों के कारण सिर्फ अखबारों की सुर्खियां बन कर रह गए। जमीन पर कुछ नहीं किया गया। सरकारों ने पानी बचाने के लिए कई योजनाएं बनाईं, पर सारा पैसा भ्रष्ट अधिकारियों की जेब में चला गया।

सरकारें प्रतिवर्ष वृक्षारोपण का अभियान चलाती हैं। अखबारों में गलत सूचनाएं दीं जातीं हैं कि फलां अधिकारी ने इतने पौधे लगाए। स्कूल, कॉलेज, बड़े-बड़े संस्थान, सरकारी खाली पड़ी जमीनों पर अधिकारी खुदे हुए गड्ढे में एक पौधे को पकड़ कर फोटो खिंचवा लेता है और अगले रोज लोग पढ़ते हैं कि फलां अधिकारी ने इतने पौधे रोपे। अब प्रश्न उठता है कि आखिर प्रति वर्ष रोपे जाने वाले करोड़ों पौधों में से जीवित बचते कितने हैं ? शायद एक भी नहीं। फोटो छपने के बाद कोई अधिकारी यह जानने का प्रयास भी नहीं करता कि रोपे गए पौधों को पानी दिया गया है अथवा नहीं। जानवरों ने कितने पौधे नष्ट किये तथा कितने बचे। किसी को कोई मतलब नहीं। सरकार द्वारा दिया गया बजट भी चट।

किशनी में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा हरियाली प्रोजेक्ट के तहत करीब एक करोड़ पौधे लगवाये गए थे। सरकार की विशेष रुचि के कारण देखभाल भी हुई, पर वह काफी नहीं रही। पर संतोष व्यक्त करना होगा कि आज वहां पर नीम, पीपल तथा करंज के काफी पौधे जो अब बड़े होकर पेड़ बन गए लोगों को राहत दे रहे हैं।

विश्व पृथ्वी दिवस (फोटो- सोशल मीडिया)

मेरी राय में किसी अधिकारी को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसे क्या लेना देना, आज जनपद मैनपुरी में हूँ, कल कहीं अन्यत्र चला जाना है। यदि यही मानसिकता प्राचीन काल के राजाओं तथा शेरशाह सूरी की होती तो आज न जी.टी. रोड होता, न ही सड़कों के किनारे लाखों की संख्या में लगाये गए छायादार व फलदार वृक्ष होते। यह अलग बात है कि हमने उन वृक्षों को निर्ममता के साथ काट डाला और उनकी जगह दूसरे पेड़ नहीं लगाए। परिणाम सामने है। अभी भी हम अपनी गलतियों से सबक लेने की जगह ऑक्सीजन के लिए सरकारों को कोस रहे हैं। पहले तो शराब ही बोतलों में बिकती थी। उसके बाद नंबर पानी का आया। अब साँसें भी बोतलों में बिकने लगी है। बोतल खत्म तो साँसे भी खत्म।

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