Motivational Story in Hindi: न हन्यते... जिंदगी को जीना सिखाती
Motivational Story in Hindi: हर व्यक्ति के मन में बहुत सारे भाव बनते-बिगड़ते रहते हैं। अपने मन के अंदर उपजे भावावेग को स्थिर करने के लिए अगर कोई आलम्ब न मिले तो ये भाव प्रवाह भटक जाता है, गर्त में चला जाता है। जब इस तरह का शून्य बन जाए....
Motivational Story in Hindi: हमारे जीवन में घटने वाली हर घटना हमारे जीवन को प्रभावित करती है। यही हमें आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखाती है और जमीनी वास्तविकता से रूबरू भी कराती है, यही हम सब के जीवन का सच भी है। यहां न तो लिखी, सुनी,पढ़ी बातें हैं बल्कि जो अनुभव कहता है उसे ही पन्नों पर उतार देना, उसे ही शब्दों का आकार दे देना बस यही है वो रास्ता जिसने आप जैसे सुहृदय पाठक मुझे दिए। अपने इस छोटे से लेखकीय जीवन के कुछ अनुभव आज आप सबके साथ साझा करने का यह सही समय है।
हर व्यक्ति के मन में बहुत सारे भाव बनते-बिगड़ते रहते हैं। अपने मन के अंदर उपजे भावावेग को स्थिर करने के लिए अगर कोई आलम्ब न मिले तो ये भाव प्रवाह भटक जाता है, गर्त में चला जाता है। जब इस तरह का शून्य बन जाए और उसे भरने के लिए कुछ भी नहीं होता तो हमारे अंदर डर और असुरक्षा की विकृतता उग आती है और यह अन्य तरह-तरह के भटकाव पैदा करती है। जैसे-जैसे यह भटकाव बढ़ता जाता है वैसे -वैसे व्यक्ति की मनोदशा पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और वह दिशाहीन हो जाता है। वैसे भी तुलसीदास जी ने भी कहा है -'कर्म हीन नर पावत नांही' अर्थात इस संसार में सब कुछ है अगर हम प्राप्त करना चाहे तो, जो प्रयास ही नहीं करेंगे तो कुछ भी कैसे ले सकेंगे। बस लेने का शऊर और श्रम होना चाहिए। अच्छा एक बात बताइए कि मुंह बाकर खाली बैठे रहने से क्या आपको कुछ मिलेगा? नहीं तो! फिर इस तरह से क्यों बैठे रहना है। आज जब हर रोज न जाने कितने ही स्टार्ट अप्स आ रहे हैं, स्वभाविक है कि नौकरी करने वालों के साथ -साथ फ्री लांसरो की संख्या भी बढ़ रही है।
अगर आप प्रतिभाशाली हैं, आपकी वर्किंग अच्छी है तो आपको आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले जरूरी है शुरुआत करना। छोटे-छोटे कदमों से, धीमी चाल से शुरुआत करना क्योंकि जितने छोटे कदम बढ़ाते हैं उतनी ही रास्ते की समझ विकसित होती है और अपनी क्षमता का भी भान होता है। जब आप शुरुआत कर दें तो हमेशा अपडेटेड रहने की जरूरत होती है क्योंकि यह प्रतिस्पर्धा का दौर है और जब तक एक विशेष क्षेत्र में दक्षता हासिल नहीं होगी, आगे बढ़ना बेमतलब है।
अब जब चारों तरफ गर्मी अपना रंग दिखा रही है, फलों का राजा आम नुक्कड़- नुक्कड़ पर, चौराहे- चौराहे पर, गलियों, सड़कों में हर जगह सजा बैठा है पर आम की परख रखने वाले यह जान लेते हैं ऊपर से कमोबेश एक जैसे दिखने वाले इन सबमें खास कौन सा है और यही वह खास है जो आपके उर को संतुष्ट कर तृप्त कर जाएगा। इस संतुष्टि को पाने के लिए अपने अंदर की उथल-पुथल, जिज्ञासा, कुछ सोद्देश्य या सार्थक करने की इच्छा को सिर्फ एक बूंद की आवश्यकता होती है क्योंकि उस एक बूंद में भी समुद्र की झलक मिल जाती है। अतः आपको उस खास आम को पहचानना होगा जो आपके उर को तृप्त कर सके। मांझी बनना है खुद के जीवन का क्योंकि एक मांझी ही जानता है नाव को खेने का हुनर। वह ही होता है पानी की धार, पतवार और मंझधार का जानकार, तभी तो वह हुआ मांझी। अगर खुद को अपने जीवन का मांझी बनाना है तो खुद के मर्म को पढ़ना सीखना होगा। कभी-कभी उगता हुआ सूरज उतना लालिमा पूर्ण और सुंदर नहीं होता जितना छिपता हुआ सूरज होता है। भवानी प्रसाद मिश्र जी की ये पंक्तियां याद आ गई-
' दिन भर
जैसी आभा
नहीं दी थी सूरज ने
डूबते -डूबते
दी है उसने वैसी आभा खिड़कियों को
मुझे लगता है
जीवन ने
कुछ ऐसा ही किया है मेरे साथ।'
कोई भी सफर कभी भी कहां आसान होता है चाहे वह महिला का हो या पुरुष का। हर पगडंडी पथरीली, हर रास्ता उबड़-खाबड़। पैर ठीक से रख लिया तो ठीक अन्यथा उस चोट का दर्द हमेशा महसूस होता रहेगा। सभी के लिए प्रत्येक क्षेत्र ऐसा ही रहता है, वैसा ही मेरे लिए भी यह लेखन क्षेत्र रहा। प्रेमचंद ने भी कहा है ,'लिखते तो वे लोग हैं जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वे क्या लिखेंगे।' किसी भी रचनाकार की विशिष्टता किताबों की संख्या में नहीं, बड़ी-बड़ी बातों या अनर्गल शब्दों के बड़े-बड़े आलेखों में भी नहीं होती बल्कि साधारण सी लगने वाली घटनाओं को जीवंतता देने में है, उसमें संवेदना भर देने में है। लोग कहते हैं कि हर एक व्यसन में नशा होता है, वैसा ही मेरे लिए इस लिखने में भी है। इसे शौक इसलिए नहीं कहा कि शौकीन व्यक्ति हर दम अपने शौक के पीछे आतुर नहीं होता है, ग्राह्यी नहीं होता है, छटपटाता भी नहीं है। लेकिन व्यसनी व्यक्ति आतुर होता है, ग्राह्यी होता है, उसके अंदर एक छटपटाहट होती है। सच्चे अनुभव लेखन को समर्थ बनाते हैं और सच्चे अनुभव के लिए चाहिए होता है जीवन को गहराइयों से समझना और पढ़ना।
सामाजिक जीवन की यथार्थता लेखक को स्पर्श करने वाली होनी चाहिए। लिखने वालों के लिए यह जीवन और यह समाज एक बहुत बड़ा फलक होता है, जिस फलक को देखने और समझने की सबकी अपनी-अपनी दृष्टि होती है। हमारी परंपरा, हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति, हमारी पुरानी और नई युवा पीढ़ी, चारों ओर बदलता परिवेश, पुरानी सोच और आधुनिक जिज्ञासा सभी तो समग्रत: एक सूत्र में बंधे हुए हैं। किसी एक भी सूत्र को पकड़ो तो दूसरे सूत्र तक पहुंचना कठिन नहीं होता है। बस उस उलझाव को, उसकी गांठों को खोलना आना चाहिए और हर धागा खुद ब खुद खुलता चला जाएगा। सामाजिक जीवन के विषयों के सब पहलु् परत -दर- परत उघड़ते चले जाएंगे। लेखन में अपने समय के समाज की छाप होनी चाहिए, जिससे वह एक फिल्म के समान पाठकों के सामने आ सके और उनकी समग्र अनुभूति का हिस्सा बन जाए।
सबको जिंदगी एक ही मिली है तो इसे दुःख, अकेलेपन या विषाद में क्यों बिताना? सबकी जिंदगी में कोई न कोई दुखती रग जरूर होती है तो इस दुखती रग को या तो पपोलकर बैठे रहिए, सहलाते रहिए या उसका इलाज कीजिए या फिर उसे अपने जीवन से अलग कर, आगे बढ़ने का फैसला कीजिए। यह बात समान रूप से स्त्री और पुरुष दोनों पर लागू होती है। कभी- कभी स्वाभिमान को आहत करने वाली परिस्थितियां भी पैदा होती हैं, निराशा की स्थिति भी आती है। लेकिन जब आग जलाई जाती है तो उसके धुएं और उसके जलने से बची राख से क्या डरना। तो जब दृढ़ होकर किसी क्षेत्र में जुट गए हैं तो चित्त को स्थिर और शांत करके अपना काम करना चाहिए। यह बात तय है कि चोट की चपेट से क्षमता और निखरती है। आशा -निराशा के बीच हिचकोले खाती, प्रतिकूल धारा में भी बहती नाव को ठौर पर लगा देने वाला खेवैया ही सचमुच एक बेहतरीन खेवैया होता है। हो सकता है यह कभी न खत्म होने वाले सफर की तरह लगने लगे तो अनथक यात्री की तरह रुक कर आराम की एक सांस ले लेनी चाहिए और फिर आगे की ओर देखना चाहिए। अपनी मंजिल की ओर देखना चाहिए और आगे बढ़ जाना चाहिए क्योंकि आपके मनोबल को तोड़ने के लिए बहुत कुछ हो सकता है यहां, पर उस को बनाए रखने के लिए सिर्फ एक सहारा भी बहुत होता है। अपने गिरते हुए मनोबल को संभाल कर, उसका ही बीज बोकर पानी दे देना चाहिए। स्वत: ही उसमें जड़े उगने लग जाएंगी और गिरता हुआ मनोबल भी संभल जाएगा।
और अंत में, हर उस व्यक्ति के लिए जो निराशा की मिट्टी पर खड़ा होकर भी आशा के सूरज को निहार रहा है और स्वयं पर इतना विश्वास रखता है कि अपनी इच्छाओं को, अपनी क्षमता को मरने नहीं देगा, उन सबको मेरे भावों को व्यक्त करती हुई प्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित यह पंक्तियां समर्पित हैं-
'जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफानों से लड़ा और फिर बड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा।
आप सबके प्यार के लिए धन्यवाद।