शिक्षा नीति क्या मील का पत्थर साबित होगी? एक मौजूं सवाल

प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी जी ने जो बात कही है उस पर हम लोग आशा कर सकते हैं सरकार की प्राथमिकता में यह सबसे ऊपर होगा। यहाँ एक सवाल उठता है क्या हमारे पास वोह इन्फ्रास्ट्रक्चर है

Update: 2020-08-07 15:52 GMT
New Education Policy

आखिरकार एक लंबी कवायद के बाद नई शिक्षा नीति आ गई। मोदी जी का एक और मास्टर स्ट्रोक। लेकिन इसको आने में पांच साल लग गए। इसकी कवायद 2015 से चल रही थी। फ़िलहाल देर आये दुरुस्त आये।

प्रधानमंत्री जी ने नई शिक्षा के पांच स्तंभ बताएं हैं -एक्सेस (सब तक पहुँच), इक्विटी (भागीदारी), क्वालिटी (गुणवत्ता), अफफोर्डबिलिटी (किफ़ायत) और अककॉउंटबिलिटी (जबाबदेही)।

प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी जी ने जो बात कही है उस पर हम लोग आशा कर सकते हैं सरकार की प्राथमिकता में यह सबसे ऊपर होगा। यहाँ एक सवाल उठता है क्या हमारे पास वोह इन्फ्रास्ट्रक्चर है, जो नई शिक्षा नीति में व्यवस्था है उसका अमल करा सके? दूसरा क्या अलग से बजट इस मद में आवंटित करने का प्रावधान है?

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...ज़मीनी हकीकत इससे इतर

क्योकि ज़मीनी हकीकत इससे इतर है। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए जो शिक्षा के लिए बजट रखा गया है वो रु 99300 करोड़। इसमें से प्राइमरी और सेकंडरी एजुकेशन जिसमे मिड डे मील भी है बजट रु 59845 करोड़ है। इस समय भारत में दुनिया के अन्य देशों की तुलना में 5वर्ष से 24 वर्ष के ब्रैकेट में सबसे अधिक बच्चे जो करीब 50करोड़ है। यही उम्र पढ़ाई की होती है इसी में से कुछ बच्चे उच्च शिक्षा ,रिसर्च आदि करते है।इस हिसाब से प्रति बच्चों पर प्रतिदिन 2रु 35पैसे,महीने में 71रु आता है।उच्च शिक्षा का बजट रु 39468 करोड़ है।इस साल करीब 3करोड़ 82 लाख बच्चे पंजीकृत है।इस हिसाब से प्रति बच्चें पर रु 10331 साल भर में, प्रति मास रु860/और प्रति दिन करीब रु 28पैसा69 आता है।

इसका सबसे डरावना पक्ष है इस बजट में सैलरी और बिल्डिंग का एक्सपेंडिचर नही जुड़ा है।जो मोटे तौर पर रु15612 करोड़ आता है।इस तरह प्रति छात्र पर खर्चा रु 6244/वर्ष,रु521/महीने और 17 पैसे प्रतिदिन।इतने कम बजट में नई शिक्षा नीति कैसे लागू होगी?यह यक्ष प्रश्न है?

दूसरा इस नई शिक्षा नीति में 2करोड़ बच्चें जो स्कूल नही जा पाते उनको भी इस नीति के तहत लाना है।इसके लिए क्या कोई बजट है?इन 2 करोड़ बच्चों के लिए क्लास रूम,पुस्तिका,अध्यापक, फर्नीचर आदि-आदि का अनुमानित मूलयांकन कर कोई बजट क्या आवंटित है?

50 वर्षो में कुछ नही बदला

इस नई शिक्षा नीति का एक मुख्य फीचर है कि जी डी पी का 6 फ़ीसदी शिक्षा पर खर्च होगा। चौकाने वाला पहलू है कि आज से 50 साल पहले जब कोठारी कमीशन की रिपोर्ट आयी थी उसमें भी जी डी पी का 6फीसदी शिक्षा पर खर्च करने की सिफ़ारिश की गई थी। यानि 50 वर्षो में कुछ नही बदला। स्थिति आज शिक्षा को लेकर बद से बदतर है।

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सत्य बहुत ही वीभत्स है 2009 से 2014 के बीच में मनमोहन सरकार शिक्षा पर कुल बजट का औसत 3.9%,जी डी पी का 0.7%,वहीं मोदी सरकार जब आयी शिक्षा पर बजट का केवल 2.88%,जी डी पी का केवल 0.5%ही खर्च हो रहा है।जबकि प्रावधान 6%का है।कैसे टारगेट पूरा होगा?

दूसरा हरिकेन टारगेट उस पर भी सवालियां निशान है। नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा का जो 26 फीसदी से बढ़ाकर 2035 तक 50 %तक को उच्च शिक्षा देना है। टारगेट साढ़े तीन करोड़ का है। इस तरह इजाफा प्रति वर्ष 20लाख।क्या यह इस बजट में संभव है?सरकार को इस पक्ष पर गौर करना होगा। नई शिक्षा नीति बेशक़ बेजोड़ है।इसमें कोई शक नही।

उच्च शिक्षा में क्रिएटिव कॉम्बिनेशन

जो कुछ अहम बातें हैं-कला और विज्ञान संकाय के साथ वोकेशनल व अकादमिक स्ट्रीम के बीच बटवारा नही होगा। उच्च शिक्षा में क्रिएटिव कॉम्बिनेशन के साथ छात्र बीच मे विषय बदल सकेंगे। डिजिटल स्तर पर अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट बनाया जाएगा। शोध की सर्वोच्च संस्था के तौर पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का गठन होगा।हायर एजुकेशन कमीशन का गठन होगा।मेडिकल और लीगल अलग रहेंगे।सरकारी और निजी सभी संस्थानों पर एक ही तरह के नियम ,मानक लागू होंगे।इस तरह के मानक यूरोप अमेरिका में काफी कारगर हैं।इसका कारण शिक्षा वहां की सरकारों के लिए प्राथमिकता में सबसे ऊपर है।भारत की तरह शिक्षा यूरोप में राजनीतिक सोच न होकर देश के हित के लिए है।

शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन

यहां जो लोग मंत्रालय संभाल रहे है उनको अपने मंत्रालय पर चार शब्द बोलने या लिखने के लिए कह दिया जाए तो पसीने छूट जाएंगे लेकिन दावा करेंगे कि जनता की नब्ज को जानते है।आदर्श शिक्षा नीति को रखने का दावा करते है।ज़मीनी हकीक़त क्या है,क्रियान्वयन का क्या रोड मैप है।बजट का क्या प्रावधान है इस पर कोई जिक्र नही। बस दावा शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन करना है।

अगर स्कूलों की बात करे तो बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की घोर कमी है।स्कूलों में ब्लैक बोर्ड नही,पीने के पानी का इंतज़ाम नही,टॉयलेट नही।और तो और करीब 1लाख 5हज़ार स्कूल ऐसे है जो केवल एक अध्यापक से संचालित हो रहे है।जिसमें मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 17874,उत्तरप्रदेश में 17602,आंध्रप्रदेश में 13575 ,झारखंड,बिहार,हरियाणा आदि है।

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शिक्षा का स्तर जिसको लेकर यूनाइटेड नेशन्स का डाटा इसके अलावा शिक्षा मंत्रालय और उससे जुड़ी प्राइवेट संस्था "असर"और संसद की स्टैंडिंग कमेटी की कंबाइंड रिपोर्ट के अनुसार देश मे 70फीसदी शिक्षक कम जानकारी के साथ पढ़ाते हैं।50 फीसदी छात्र 5वी क्लास में है वे 2सरि क्लास की नॉलेज रखते है, इसी तरह 8वी का छात्र का ज्ञान 5वी वाला होता है। 90 नई शिक्षा नीति पर शिक्षाविद इसका जो खाका आम जन को दिखा रहे है अगर लागू हो जाये तो बेशक क्रांतिकारी परिवर्तन शिक्षा व्यवस्था में होगा। लेकिन शिक्षाविद इसका जिक्र नही कर रहे यह लागू कैसे होगा उस बजट में, जो आवंटित है। तथा वर्तमान में जो शिक्षा व्यस्था की स्थिति है जिससे हम सब वाकिब है लेकिन हमारे शिक्षाविद मौन है, कयों?

सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का हाल...

सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का हाल क्या कहने, हर चार शिक्षक में से एक अमूमन अनुपस्थित रहता है देश मे प्रदेश के सरकारी स्कूलों में, और देश मे हर दो में से एक शिक्षक स्कूल में उपस्थित तो रहता है लेकिन शिक्षण नही करता। इसका यह कारण नही कि सैलरी कम मिलती हैै। उत्तरप्रदेश में कनिष्ट अध्यापक की सैलरी रु 48918/पी एम है। देश में कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहां 10% से भी कम अध्यापक, "अध्यापक पात्रता टेस्ट "क्वालीफाई कर पाते है।

2011 से 2018 के बीच करीब 2.4 करोड़ बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़ कर प्राइवेट स्कूल में दाखिला ले लिया।जहां इनके पिता अपने बच्चों की शिक्षा पर प्रति महीने प्रति बच्चा करीब 500 से 1500 खर्च कर रहे है।जबकि सरकारी स्कूलों में मुफ्त में शिक्षा और मिड डे मील भी मिलता था।आज स्थिति यह हो गयी है कि करीब 47.5 फीसदी बच्चे प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रह है।

आज शिक्षा हाँफने लगी है

आज शिक्षा हाँफने लगी है अगर इसको बजट के नज़रिए से देखें तो पाएंगे अगर पुराने बजट की तुलना महंगाई और जनसंख्या दोनों को जोड़ कर देखा जाए तो झटके में 25 साल पीछे यानि 1995 कि स्थिति में आ गए हैं।1995 में 8399409 छात्र थे।आज 3करोड़ 74 लाख छात्र लेकिन बजट 1995 की तुलना में 2करोड़ 33लाख घट गया।आज सुविधा 1995 की तुलना में बद से बदतर हो गई है।इसकी एक छोटी सी बानगी है।

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अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद का डाटा कहता है कि मोदी सरकार के काल मे 2014-15 में 77 ,15-16 में 126, 16-17 में 163,17-18 में 134,18-19- 99 और 19-20 में 92तकनीकी संस्थान बंद हो गए।इसी तरह लॉक डाउन के चार महीनों में 180 पेशेवर कॉलेज इंजीनियरिंग और बिज़नेस के बंद हो गए।

एक तरफ तो आदर्श शिक्षा नीति की बात हो रही है दूसरी तरफ मोदी सरकार ने 762 कॉलेज में से 69 हज़ार सीटे कम कर दी।और कुछ कॉलेजों के लाइसेंस रद्ध कर दिए गए।

उच्च शिक्षा की भी हालत ठीक नही

कमोबेश उच्च शिक्षा की भी हालत ठीक नही है। लखनऊ यूनिवर्सिटी से रिसर्च कर रहे एक छात्र ने बताया कि यूनिवर्सिटी हमसे डेवलपमेंट फीस लेती है।जब हमने अपने प्रोफेसर और प्रिंसिपल से पूछा कि यह डेवलपमेंट फीस क्यों ली जाती है।तो जो उन्होंने जवाब दिया वो चौकाने वाला है"यह जो डेवलपमेंट फीस ली जा रही है उससे हम लोगों को वेतन आदि मिलता है।"इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह यूनिवर्सिटी सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा क्यों लेना चाहती हैं,क्योंकि उससे उनको यू जी सी से अनुदान मिल जाता है।आज कुछ यूनिवर्सिटी की हालत यह है कि उनके पास किताब नही ,कंप्यूटर नही और तो और इंटरनेट कनेक्शन नहीं है ।सरकार भी शिक्षा का निजीकरण करने की दिशा में अग्रसित दिखती है।

अगर ऐसा हो जाता है तो जिसके पास पैसा होगा वही पढ़ पायेगा। बाकी के लिए सरकार कोई ज़िम्मेदारी नही लेगी। अगर देखा जाए पूर्व के अनुभवों के आधार पर कोई नीति कितनी भी अच्छी क्यों न हो, वो सफल तभी होगी जब इसको लागू कराने वालों में ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा और समर्पण भाव हो।

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