एक साथ कई निशाने साधे मोदी ने

पीएम मोदी ने वैक्सीन लगवाकर न केवल सुर्ख़ियाँ हासिल की बल्कि सारे विरोधों के स्वर सिल दिये। उनके बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि जहां सबकी सोच ख़त्म होती है, वहाँ से नरेंद्र मोदी सोचना शुरू करते हैं। तभी तो उन्होंने बुजुर्गों की पंक्ति की शुरूआत की। देश में तमाम दिक़्क़तें झेल रहे बुजुर्गों के बीच खड़े होकर नरेंद्र मोदी ने बड़ा संदेश दे दिया।

Update:2021-03-02 16:04 IST
एक साथ कई निशाने साधे मोदी ने

योगेश मिश्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कुछ भी अनुमान लगा पाना न तो राजनीतिक पंडितों के वश की बात है। न ही मीडिया के लोगों के वश में है। क्योंकि प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनके केवल एक फ़ैसले के बारे में मीडिया को भनक लग पायी। वह यह कि दूसरे कार्यकाल में अमित शाह गृह मंत्री होंगे। इसके अलावा सभी फ़ैसलों के बारे में जानकारी खुद नरेंद्र मोदी ही देते हैं।

वैक्सीन लगवाकर विरोधों के सिल दिए स्वर

जब दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष कोविड-19 की वैक्सीन लगवाकर सोशल मीडिया पर अपनी फ़ोटो लगा नाम कमा रहे थे। तब नरेंद्र मोदी देश के तमाम लोगों की आलोचना के केंद्र में थे। कहा तो यहाँ तक जा रहा था कि भारत में बनी कोविड वैक्सीन उतनी कारगर नहीं है, यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने टीकाकरण का शुरूआत खुद से नहीं की। लेकिन सोमवार को सुबह जब वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान केंद्र (एम्स) में जा कर भारत बायोटेक का टीका को वैक्सीन की पहली डोज लगवाया तब उन्होंने न केवल सुर्ख़ियाँ हासिल की बल्कि सारे विरोधों के स्वर सिल दिये।

टीकाकरण के बाद कही ये बात

उन्होंने यह संदेश देने में भी कामयाबी पा ली की देश में नियम व क़ानून सबसे ज़रूरी व सबसे बड़े हैं। तभी तो जिस दिन देश के साँठ साल के नागरिकों को टीका लगवाने का अवसर सरकार ने दिया, उसी दिन देश के साठ साल से ऊपर की उम्र वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टीका लगवाया। टीका लगवाने के बाद उन्होंने ट्वीट करके कहा-यह उल्लेखनीय है कि कैसे हमारे डाक्टरों और वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई को मज़बूत करने के लिए तेजी से काम किया है। चलिये मिलकर भारत को कोविड-19 मुक्त बनाते हैं।

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अमर प्रेम फ़िल्म का गाना है- कुछ तो लोग कहेंगे। लोगों का काम है कहना। यह भले ही महज़ एक गाना हो। पर इसे भारतीय लोकतंत्र के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परिप्रेक्ष्य में देखा व समझा जाये तो इसकी और बड़ी प्रासंगिकता रेखांकित की जा सकती है। तभी तो प्रधानमंत्री द्वारा वैक्सीन लगवाने के बाद कहा जाने लगा-दाढी बंगाल की, गमछा असम का, नर्स केरल और पुडुचेरी की और वैक्सीन भारत बायोटेक का, जिसके फाउंडर कृष्णा एल्ला तमिलनाडु के हैं।

(फोटो- ट्विटर)

जहां सबकी सोच खत्म होती है, वहां से मोदी सोचना शुरू करते हैं

एक साथ पांच चुनावी राज्यों को कवर कर लिया। पर यह कहने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जहां सबकी सोच ख़त्म होती है, वहाँ से नरेंद्र मोदी सोचना शुरू करते हैं। तभी तो उन्होंने बुजुर्गों की पंक्ति की शुरूआत की। देश में तमाम दिक़्क़तें झेल रहे बुजुर्गों के बीच खड़े होकर नरेंद्र मोदी ने बड़ा संदेश दे दिया।

भारत में कितनी है बुजुर्गों की संख्या

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 10 करोड़ 40 लाख जनसंख्या 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग है। 2026 में इस आबादी के 17.30 करोड़ हो जाने की संभावना है। अनुमान है कि 2050 तक भारत की लगभग 20 फीसदी आबादी वृद्ध होगी, जो वर्तमान 8.6 फीसदी से एक बड़ी बढ़ोतरी को दर्शाती है। इसके अलावा औसत भारतीय की जीवन प्रत्याशा 60 वर्ष की आयु पूरी करने के पश्चात् कम से कम 18 वर्ष अधिक होने की सम्भावना व्यक्त की गयी है। यानी हमारे देश में बुजुर्गो की संख्या निरंतर बढ़ रही है।

क्या है बुजुर्गों को तकलीफ

ग्रामीण क्षेत्रों में 71 फ़ीसदी वृद्ध लोग हैं। जबकि 29 फ़ीसदी बुजुर्ग शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं। इनमें 37 फ़ीसदी बुजुर्ग अपने जीवन में दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। जबकि 20 फ़ीसदी को प्रतिबंधित सामाजिक जीवन जीना पड़ रहा है। 13 फीसद बुजुर्ग अपने साथ मानसिक यातना और गाली गलौज की बात बताते हैं।

उन्हें जरूरी वस्तुएं भी नहीं मिलती हैं 9 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि उनके साथ शारीरिक तौर पर दुर्व्यवहार किया गया है। जबकि 8 फ़ीसदी बुजुर्ग अन्य तरीके के हैरेसमेंट का शिकार हुए हैं।

चार में से तीन बुजुर्ग किसी न किसी गंभीर बीमारी के शिकार

हाल ही में भारत में बुजुर्गों के स्वास्थ्य और उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति के बारे में एक स्टडी की रिपोर्ट जारी हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश के हर चार में से तीन बुजुर्ग किसी न किसी गंभीर बीमारी के शिकार हैं। हर चौथा बुजुर्ग ऐसी कई बीमारियों से और हर पांचवां किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित है। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन घरों में बुजुर्ग हैं, उनके यहां का प्रति व्यक्ति खर्च भी इसी अस्वस्थता के कारण ज्यादा है।

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देश में 10 लोगों की आबादी में एक बुजुर्ग

फिलहाल, देश में प्रत्येक 10 लोगों की आबादी में एक बुजुर्ग हैं। हर चौथे वृद्ध को अपने रोजमर्रा के काम करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं, सस्ती स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में 90 प्रतिशत वृद्ध घर में ही अपना इलाज करते हैं, जबकि करीब 33 प्रतिशत बुजुर्ग दिल के मरीज हैं।

जहाँ तक बुजुर्गों के स्वास्थ्य की चिंताओं के बारे में सरकार के प्रयासों की बात है तो कुछ न कुछ कदम जरूर उठाये गए हैं। लेकिन वो नाकाफी हैं। मिसाल के तौर पर, देश में आयुष्मान भारत योजना लागू की गयी है, लेकिन इसमें केवल 40 प्रतिशत लोग ही शामिल हैं। अन्य देशों की बात करें तो लगभग सभी विकासशील देशों में सरकारों की नीति रही है कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य बीमा दिया जाए। इस दिशा में बहुत काम किये जाने की जरूरत है।

भारत का नाम सबसे ख़राब जगह में शुमार

हमारे देश में वृद्धों को सिर्फ हेल्थ ही नहीं बल्कि तमाम सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सम्मान और एक उपयोगी जीवन देने के बारे में भी उपाय तलाशने होंगे। वृद्धों के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन और सबसे खराब जगहों की रैंकिंग की बात की जाये तो स्विट्ज़रलैंड का नाम सबसे बेहतरीन जगह और भारत का नाम सबसे ख़राब जगह में शुमार है। हेल्पेज इंटरनेशनल नेटवर्क ने ग्लोबल एज वाच इंडेक्स तैयार किया है जिसमें भारत को ७१वां स्थान दिया गया है।

हेप्लेज इंडिया के एक सर्वे के अनुसार तिरस्कार, वित्तीय परेशानी के आलावा बुजुर्गों को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। सर्वे में शामिल 53 फीसदी बुजुर्गों का मानना है कि समाज उनके साथ भेदभाव करता है। अस्पताल, बस अड्डों, बसों, बिल भरने के दौरान और बाजार में भी बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के मामले सामने आते हैं। जीवन की भागदौड़ में बुजुर्गों की उपेक्षा लगातार बढ़ती जा रही है।भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था का चरमराना बुजुर्गों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है।

एक अनुमान के अनुसार इस समय देश में करीब 730 वृद्धाश्रम हैं। इनमें से 325 वृद्धा श्रम नि:शुल्क हैं जबकि 95 वृद्धाश्रमों में भुगतान करके रहने की सुविधा है। इसी तरह 116 वृद्धाश्रमों में नि:शुल्क और भुगतान करके रहने की सुविधा है जबकि देश में 278 वृद्धाश्रम अस्वस्थ लोगों के लिये और 101 आवास सिर्फ महिलाओं के लिये हैं।

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(फोटो- ट्विटर)

बुजुर्गों के बारे में उठाने होंगे गंभीरता से कदम

देश में 60 साल से अधिक आयु के नागरिकों की तेजी से बढ़ती आबादी को देखते हुये केन्द्र और राज्य सरकारों को बुजुर्गो के हितों की रक्षा के लिये अधिक गंभीरता से कदम उठाने की ओर सोचना होगा ताकि वे अपने ही घर परिवारों में बेगाने न हो जाएं और जब वह कुछ करने की स्थिति में न रह जाएं तो उनके साथ दुर्व्यवहार न किया जाए और मार-पीट जैसे अपराध न दोहराए जाएं।

बुजुर्गों की परेशानियां यह है कि उन्हें भोजन देने से मना किया जाता है। समय पर दवाई नहीं दिलाई जाती हैं। गाली गलौज किया जाता है। उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है। उन्हें पीटा जाता है। उन्हें नाती पोतों से मिलने नहीं दिया जाता है। बाहर के लोगों से मिलने नहीं दिया जाता। रिश्तेदारों से मिलने नहीं देते। यहां तक कि पड़ोसियों से बातचीत करनी और मिलने पर रोक लगाई जाती है।

पीएम मोदी ने बुजुर्गों को दिया ये संदेश

कई लोगों ने बताया कि उन्हें बांधकर रखा गया। जबकि वह चलने फिरने में लाचार है। मानसिक तौर पर पीड़ित होने की स्थिति में बांधकर रखा गया। भावनात्मक तौर पर भी उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है। उनके कपड़े धुलने के लिए नहीं जाते हैं। उनकी जरूरी चीजें संपत्ति, पैसे और प्रॉपर्टी के दस्तावेज छीन लिए जाते हैं। नरेंद्र मोदी ने इनकी लाइन में सबसे आगे खड़े होकर यह संदेश दे दिया है कि वह भी उन्हीं के बीच के है। उनकी दिक़्क़तों व परेशानियों पर उनकी नज़र है।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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