लव जिहाद पर कानून: समाज की कीमत पर नहीं है धर्म परिवर्तन का अधिकार

अंकिता तोमर हत्याकांड के बाद एक बार फिर से धर्म परिवर्तन पर बहस तेज हो गई है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य सरकारें दबाव में धर्म परिवर्तन के विरुद्ध कानून बनाने को लेकर विचार कर रही हैं, साथ ही केंद्र सरकार भी ऐसे मामलो पर सख्त कानून बनाने की बात कर रही है।

Update:2020-11-23 20:56 IST
पुलिस भी हरकत में आ गई है। आरोपी की धर पकड़ के लिए जगह-जगह दबिश दी जा रही है। अभी तक उसके बारें में पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल पाया है।

अंकिता तोमर हत्याकांड के बाद एक बार फिर से धर्म परिवर्तन पर बहस तेज हो गई है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य सरकारें दबाव में धर्म परिवर्तन के विरुद्ध कानून बनाने को लेकर विचार कर रही हैं, साथ ही केंद्र सरकार भी ऐसे मामलो पर सख्त कानून बनाने की बात कर रही है।

इन राज्यों में पहले से बनाये गये हैं कानून

पहले से ही 28 राज्यों में से आठ राज्यों में 'एन्टी कन्वर्शन लॉ 'पर कानून बनाये गए हैं और अलग अलग राज्यों में इसे लेकर दो साल की सज़ा और 10 से 25 हज़ार तक के जुर्माने के प्रावधान भी किये गए हैं। उड़ीसा ,अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, राज्य में 'एन्टी कन्वर्शन लॉ 'जारी है।

भारत मे अनेक धर्म और पंथ के मानने वाले लोग

भारत मे अनेकानेक धर्म और पंथ के मानने वाले लोग हैं। हिन्दू बहुसंख्यक है मुस्लिम, ईसाई, जैन आदि अल्पसंख्यक हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(1) के अनुसार सभी को अन्तः कारण की स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक दिया गया है। परंतु धर्म के आधार पर ऐसे कार्य नहीं किया जा सकता जिससे समाज प्रभावित हो। इसी अनुच्छेद में धर्म के प्रचार करने की भी स्वतंत्रता दी गयी है।

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यानी विचारों को दूसरों तक से प्रेषित करना ही नहीं वरन उसको मनवाने के लिए समझाने-बुझाने का भी अधिकार शामिल है बशर्ते कि इसमें कोई दवाब का तत्व न हो। 1930 से 1940 के मध्य पहली बार धर्मांतरण को लेकर कानून बनाने पर गौर किया गया था।ब्रिटिश मिशनरी के खिलाफ दर्जनों रजवाडों ने कानून बनाये थे। इसमें कोटा, बीकानेर, जोधपुर, रायगढ़ स्टेट कन्वर्शन एक्ट 1936, उदयपुर स्टेट एन्टी कन्वर्शन एक्ट 1946 आदि उल्लेखनीय हैं।

नंदिता झा, वरिष्ठ अधिवक्ता दिल्ली हाई कोर्ट

1954 में पहली बार धर्मांतरण कानून पर लाया गया था बिल, लेकिन...

आज़ादी के बाद 1954 में पहली बार धर्मांतरण को लेकर कानून बनाने के लिए बिल लाया गया लेकिन व्यापक सहमति न मिलने के कारण कानून पारित नहीं हो सका। 1980 के दशक में 'एन्टी कन्वर्शन कानून मुस्लिम धर्म के लोगों द्वारा ईसाई धर्म को धर्मांतरण की ओर ध्यान आकर्षित करता है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने रत्तीलाल पानाचंद बनाम बम्बई राज्य में अहम फैसला देते हुए कहा "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत व्यक्ति को अपना धर्म मानने ,व्यवहार में लाने और उसका प्रचार करने की पूरी आज़ादी है उनका मौलिक अधिकार है।"

रेव बनाम मध्यप्रदेश राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि धर्म के प्रचार और प्रसार करने में धर्मांतरण नहीं आता।अतः 'राइट टू प्रोपगेट ऑन्स रिलिजन' और 'राइट टू कन्वर्ट 'में अंतर है। व्यक्ति अगर स्वेच्छा से किसी धर्म का अनुयायी बनना चाहता है तो उसे आज़ादी है।लेकिन दबाब द्वारा धर्म परिवर्तन संवैधानिक नहीं हो सकता।

2017 में मथुरा से सात लोगों की गिरफ्तारी हुई

दबाव में धर्मांतरण अपराध के दायरे में लाया गया। 2017 में मथुरा (उत्तरप्रदेश) से सात लोगों की गिरफ्तारी हुई जो जबरन धर्मांतरण करने को लेकर अभियान चला रहे थे।झारखंड से 16 लोगों की गिरफ्तारी की गई जिसमें सात महिलाएं भी शामिल थी जो लोगों को दबाब बना कर ईसाई धर्म को मानने के लिए मजबूर कर रहीं थी। हाल में इलाहाबाद कोर्ट ने साफ कर दिया है कि" विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करना उचित नहीं । धर्म परिवर्तन के लिए उस धर्म को समझना और उसमें आस्था होना महत्वपूर्ण है।

वैसे तो 1954 में ही अंतर्जातीय विवाह और अंतर धर्म विवाह अधिनियम लाया गया था जिसमे प्रावधान दिए गए कि कोई भी वयस्क जोड़े जो अंतर्जातीय या अन्तरधर्म विवाह करना चाहता हैं तो वे स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के अंतर्गत उस क्षेत्राधिकार में आने वाले मैरिज रजिस्ट्रार के पास आवेदन कर सकते हैं।तीस दिनों के भीतर उनके द्वारा दिये गए व्योरे को नोटिस बोर्ड पर लगा कर जांच की जाएगी और किसी प्रकार की आपत्ति पर जांच के बाद विवाह रजिस्टर्ड किया जाएगा।

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धर्मपरिवर्तन करवाना अपराध के दायरे में माना जायेगा...

इस रजिस्टर्ड विवाह में किसी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है और न ही धर्मपरिवर्तन की जरूरत है। व्यक्ति वयस्क और मानसिक स्वस्थ होना आवश्यक है, साथ ही स्वेच्छा और सहमति अनिवार्य है लेकिन विवाह के लिए किसी प्रकार का दबाब बना कर धर्मपरिवर्तन करवाना अपराध के दायरे में माना जायेगा। इस तरह के अपराध से निपटने के लिए राज्य सरकारें 'लव जिहाद' कानून पर विचार कर रही हैं। सख्त सजा की मांग की जा रही है।ताकि ऐसे अपराध को रोका जा सके।

मध्यप्रदेश सरकार ने विधेयक पेश करने की तैयारी कर ली है

मध्यप्रदेश सरकार ने विधेयक तैयार कर पेश करने की तैयारी कर ली है और सख्त सज़ा में 5 साल की मांग की गई है। गैर -जमानती अपराध के दायरे में लाने की बात हो रही है।हरियाणा सरकार भी 'लव जिहाद 'पर कानून की मांग कर रहीं हैऔर जल्द ही लाये जाने की बात है।

धार्मिक दबाब बना कर विवाह किसी प्रकार वैध नहीं है और इस प्रकार का कृत्य अपराध है ।इसके लिए दोषियों को दंडित किया जाना न्यायसंगत होगा।धर्मांतरण अगर स्वेच्छा से पूर्ण जानकारी से की जाए तभी यह स्वीकार्य है पर दबाव या लालच देकर धर्मांतरण के विरुद्ध जनमत मजबूत हो रहा है,और कानून सख्त होगा ।धर्म को आस्था का विषय ही होना चाहिए।

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