आर.एस.एस: समाजव्यापी संघ साधना के 94 वर्ष, संघ को जानें तो सही

संघ अपनी विकास यात्रा के 94 वर्ष पूर्ण कर चुका है। इन वर्षों में हिन्दू संगठन के साथ-साथ आम लोगों का विश्वास जीतने और राष्ट्र जागरण के प्रयास में संघ पूर्णतया सफल रहा है। देश दुनिया में आर.एस.एस. नाम से विख्यात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है।

Update:2023-07-17 11:15 IST
डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार

बृजनन्दन राजू

हिन्दू संगठन और राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के जिस उद्देश्य को लेकर सन 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। संघ अपनी विकास यात्रा के 94 वर्ष पूर्ण कर चुका है। इन वर्षों में हिन्दू संगठन के साथ-साथ आम लोगों का विश्वास जीतने और राष्ट्र जागरण के प्रयास में संघ पूर्णतया सफल रहा है।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है

देश दुनिया में आर.एस.एस. नाम से विख्यात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है। संघ की तुलना किसी दूसरे संगठन से नहीं कर सकते क्योंकि तुलना करने के लिए भी इसके जैसा कोई होना चाहिए। इसीलिए बहुत से लोग स्वार्थवश संघ को बुरा भला कहते हैं। क्योंकि उनको संघ की असलियत पता नहीं है।

इस वटवृक्ष की छांव में भारत की संस्कृति और परम्परा पुष्पित पल्लवित हो रही है

नागपुर से शुरू हुआ संघ विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इस वटवृक्ष की छांव में भारत की संस्कृति और परम्परा पुष्पित पल्लवित हो रही है। आज 50 से अधिक संगठन विविध क्षेत्रों में संघ से प्रेरणा लेकर कार्य कर रहे हैं। यह सभी संगठन स्वायत्त जरूर हैं लेकिन उनके पीछे संघ की शक्ति ही सक्रिय है। विविध क्षेत्रों में कार्य करने वाले संघ के आनुषांगिक संगठन विश्व के शीर्ष संगठनों में शुमार हैं चाहे किसान संघ हो, मजदूर संघ हो, विद्यार्थी परिषद हो, वनवासी बंधुओं के बीच कार्य करने वाला संगठन वनवासी कल्याण आश्रम हो, धर्म के क्षेत्र में सक्रिय विश्व हिन्दू परिषद हो या फिर राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय भारतीय जनता पार्टी।

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यह सब विश्व में चोटी के संगठन हैं। भाजपा की आज देश के कई राज्यों में सरकार है वहीं प्रधानमंत्री गृहमंत्री, राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पदों पर संघ के स्वयंसेवक विराजमान हैं। इसलिए भी आज संघ के बारे में जानने को देश दुनिया में उत्सुकता बढ़ी है।

डा. हेडगेवार के जीवन के बारे में जानना होगा

किसी भी संगठन के बारे में जानने से पहले उस संगठन को शुरू करने वाले व्यक्ति के बारे में जानना जरूरी होता है। इसलिए यदि संघ को जानना है तो डा. हेडगेवार के जीवन के बारे में जानना होगा। उनके जीवन को समझे बिना संघ को नहीं समझा जा सकता।

डा. हेडगेवार क्रान्तिकारी थे। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान कलकत्ता में उनका क्रान्तिकारियों से संपर्क हुआ। पढ़ाई पूरी कर जब वह वापस नागपुर आये तो कांग्रेस में सक्रिय हो गये। कठोर परिश्रम,मितव्यी व्यवहार के कारण शीघ्र ही वह कांग्रेस में प्रान्तीय स्तर के नेता बन गये। बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद कांग्रेस का नेतृत्व महात्मा गांधी के हाथ में आ चुका था।

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तिलक की मृत्यु के पहले ही कांग्रेस नरम दल और गरम दल में विभक्त हो चुकी थी। क्रान्तिकारी अंग्रेजों की नाक में दम किये थे। कांग्रेस में तुष्टीकरण की नीति हावी हो रही थी। मुस्लिम कांग्रेसी वंदेमातरम गाने से इन्कार कर रहे थे जबकि गांधी जी ने मुस्लिमों का विश्वास जीतने के लिए देश में खिलाफत आन्दोलन शुरू कर दिया जबकि खिलाफत आन्दोलन का भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से कोई मतलब नहीं था।

क्या था मोपला विद्रोह

तुर्की के खलीफा को उसकी गद्दी से हटा देने के बाद भारत के मुसलमानों ने इस आन्दोलन को शुरू किया था। आन्दोलन असफल हो गया। क्योंकि तुर्की के मुसलमान स्वयं खलीफा नहीं चाहते थे। आन्दोलन असफल होने से हिन्दुस्थान में इसका उल्टा परिणाम हुआ। उन्होंने उल्टे हिन्दुओं पर हमले करने शुरू कर दिये। मोपला विद्रोह हुआ। मुस्लिमों ने 150 से अधिक हिन्दुओं की हत्या कर दी और 20 हजार से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। इन सब घटनाओं का डा. हेडगेवार ने बारीकी से अध्ययन किया। उस समय की परिस्थिति को देखकर यह लग रहा था कि भारत जल्द आजाद होने वाला है। लेकिन आजादी के बाद देश का भविष्य क्या होगा इस बारे में स्पष्ट कल्पना लोगों के दिमाग में नहीं थी।

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डा.हेडगेवार ने सोचा अगर हम एक नहीं हुए तो हम पिटते रहेंगे लुटते रहेंगे

डा.हेडगेवार ने सोचा आाजादी तो हमें मिल जायेगी लेकिन क्या गारंटी है कि भारत दुबारा गुलाम नहीं होगा। उन्होंने भारत की गुलामी के कारणों का अध्ययन किया तो ध्यान में आया कि भारत धनधान्य से परिपूर्ण था, बड़े -बड़े शूरवीर योद्धा, उन्नत हथियार सारे संसाधन भारत में मौजूद थे। कमी एक चीज की थी कि स्वत्व का अभाव था। यहां का समाज आपस में जातियों में बंटा था। तब ध्यान में आया कि अगर हम एक नहीं हुए तो हम पिटते रहेंगे लुटते रहेंगे और गुलाम बनते रहेंगे। डा. हेडगेवार ने निश्चय किया

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