Coronavirus Third Wave: महामारी का अगला दौर, अपनी जान अपने हाथ
महामारी की अगली लहर अब आने को है, एक्सपर्ट्स इस बारे में एकमत हैं।
Coronavirus Third Wave: पहली लहर थमी। दूसरी चल रही है। तीसरी लहर के आने का अंदेशा सबके सिर पर नंगी तलवार की तरह लटक रहा है। शायद ही कोई ऐसा हो जिसके परिवार में या फिर रिश्तेदारी में या साथ काम करने वाले अथवा अग़ल बग़ल का कोई न कोई दूसरी लहर की चपेट में अपनी ज़िंदगी न गंवा बैठा हो। कोई भी आदमी अपने मोबाइल की कांटैक्ट लिस्ट पलटे या फिर उसको क्रास चेक करें तो भी कोई ऐसा सौभाग्यशाली बिरले मिलेगा, जिसे अपनी लिस्ट से कुछ नाम हटाने न पड़ें। इसके बाद भी तुर्रा कि ' मत कहो आकाश में कोहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।' जनता को सहिष्णु बनने की नसीहत देने वाली सरकारें, उसके नेता, उसके हुक्मरान इस हद तक असहिष्णु हो गये हैं कि बेड ख़ाली न होने, डाक्टर के विज़िट न करने, सरकारी अस्पतालों में दवाओं की कमी की बात करने, आक्सीजन न होने पर मर जाने का ज़िक्र करना इतना नागवार लगता है कि पूछिये मत।
यही नहीं, सरकार के पास कोरोना से हुई मौत का डेथ सार्टिफिकेट देने का दस्तावेज व दस्तावेज में कॉलम ही नहीं हैं। देश में किसी के पास उसके सगे संबंधी या परिजन के कोविड से डेथ का सार्टिफिकेट हो तो बताइयेगा। भूख से मरने का भी प्रमाणपत्र देश में देना अपशकुन व दंडकारी माना जाता है। मुलायम सिंह जी मुख्यमंत्री थे, तब हमने बहुत कोशिश करके भूख से मौत होने की कुशीनगर ज़िले में प्राथमिकी लिखवाने में सफलता पायी थी। पर दूसरी सरकारें होतीं तो भूख से मौत की बात करना संभव नहीं हो पाता। प्राथमिकी लिखवाने की कोशिश करने वाला राजद्रोह का अधिकारी होता।
इस तरह की समझ के नाते ही कोरोना महामारी न तो अभी ख़त्म हुई है और न ऐसा जल्द होने के आसार हैं। सच्चाई तो यह है कि सभी देशों में महामारी का ग्राफ ऊपर नीचे हो रहा है। भारत में भी यही स्थिति है। इन दिनों महामारी की दूसरी लहर का ग्राफ काफी नीचे जा चुका है सो तमाम राज्यों ने सरकारों ने या तो बंदिशें हटा दीं हैं या काफी ढील दे दी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अब महामारी का ग्राफ बहुत दिनों तक नीचे ही रहेगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये मोहलत चंद हफ़्तों की साबित हो सकती है। ऐसे में सभी के लिए यही चेतावनी है कि बीमारी का अगला दौर झेलने के लिए अपनी तैयारियां कर लीजिए। तीन हफ्ते से लेकर तीन महीने के बीच कभी भी संक्रमण की लहर आ सकती है। सरकार ने तो ऑक्सीजन सप्लाई और अस्पतालों में बेड्स का इंतजाम कर लेने के दावे कर दिये हैं । लेकिन जनता को वायरस की चपेट में आने से बचने के उपाय खुद करने हैं।
महामारी की अगली लहर अब आने को है, एक्सपर्ट्स इस बारे में एकमत हैं। बस टाइमिंग को लेकर विचार अलग अलग हैं। एक्सपर्ट्स ने अगली लहर का अनुमान देश में अनलॉकिंग और जनता के व्यवहार को देख कर लगाया है। लगभग सभी राज्यों में कोरोना के चलते लगी बंदिशें हटाई जा चुकी हैं। लोग सड़कों, बाजारों में स्वच्छंद रूप से निकलने - घूमने लगे हैं। मौजूदा स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार की टास्क फोर्स का आंकलन है कि दो से चार हफ्ते में मुंबई समेत महाराष्ट्र में अगली लहर आ जायेगी।
मेडिकल विशेषज्ञों के बीच एक सर्वे में निष्कर्ष निकाला गया है कि भारत में इस साल अगस्त से अक्टूबर के बीच कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे सकती है। इस सर्वे में दुनियाभर के 40 डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, वायरोलॉजिस्टों, महामारी विशेषज्ञों और प्रोफेसरों आदि ने हिस्सा लिया था। दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि भारत में तीसरी लहर को टाला नहीं जा सकता है। यह छह से आठ सप्ताह में दस्तक दे सकती है।
वायरस कब किसे अपनी चपेट में ले लेगा, इसके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। लेकिन ज्यादा जोखिम में कौन है, ये जरूर बताया जा सकता है। ऐसे में अनुमान है कि जो लोग पहले दो दौर में संक्रमित हो चुके हैं वे शायद बीमारी की वजह से बनी इम्यूनिटी के चलते ज्यादा सुरक्षित होंगे। ऐसी स्थिति में वे वर्ग सबसे ज्यादा जोखिम वाले माने जा रहे हैं जो अभी तक संक्रमण से बचे रहे। चूंकि बच्चों पर अभी तक वायरस का ज्यादा प्रभाव नहीं देखा गया है । सो यह मुमकिन है कि वायरस का कोई म्यूटेशन बच्चों को गिरफ्त में लेना शुरू कर दे। चूंकि बच्चों को वैक्सीन भी नहीं लग रही । है सो यह भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकता है। अभी तक के दौर में समाज के गरीब वर्ग, अल्प आय वर्ग और अल्प मध्यम वर्ग के लोग वायरस से कमोबेश अछूते रहे हैं। ऐसे में इस वर्ग के अब जोखिम में रहने की आशंका है। ये वर्ग भी वैक्सीनेशन में अभी बहुत कवर नहीं हुआ है जिसकी वजह जागरूकता और पहुंच का अभाव है।
वायरस किस तरह का व्यवहार करेगा, कोई नहीं कह सकता। पहले संक्रमित हो चुके लोगों की इम्यूनिटी कितने दिन चलेगी, ये भी पक्का पता नहीं है। ऐसे में ये कतई मान कर नहीं चलना चाहिए कि एक बार संक्रमित हो चुके हैं तो आगे के लिए महफूज़ हो गए। सच्चाई तो ये है कि लोगों में कई कई बार संक्रमण के मामले सामने आ चुके हैं।
महामारी से बचाव के लिए वैक्सीनेशन बहुत बड़ा हथियार है। वैक्सीनेशन का काम भी बड़े पैमाने पर चलाया जा रहा है। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह है कि वायरस के नए नए वेरियंट के खिलाफ वैक्सीन कितना असरदार होगी, यह नहीं कहा जा सकता। पहले के दौर में यह देखा जा चुका है कि फुल डोज़ के बावजूद कई लोग संक्रमित हुए। वैक्सीनेशन के मामले में भी यह एक आँख खोलने वाली सच्चाई है कि कितने लोगों को टीका लगा है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस ज़िले में लहरते हैं।.आबादी के अनुपात में टीकाकरण में बहुत अंतर है। कुछ ज़िले में केवल तीन फ़ीसदी लोग एक डोज़ लगवा पाये हैं। यह अभियान सोलह जनवरी से शुरू हुआ है। इसी के साथ टीकाकरण की योजना, चिकित्सकीय ढाँचा, टीके के बारे में मिथक भी इस अभियान की कमजोर प्रगति के कारण हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि हर किसी व्यक्ति को चाहे वह किसी आयुवर्ग का हो, उसे कोरोना उपयुक्त व्यवहार का पालन करते रहना चाहिये।जवान है, वृद्ध हैं, पहले संक्रमित हो चुके हैं, वैक्सीन लग चुकी है - इन सबके बावजूद बेसिक नियमों का पालन जरूरी है। ये नियम वही हैं - "डबल मास्क लगाना, बार बार साबुन और पानी से हाथ धोना और भीड़ से दूर रहना। इसके अलावा अपनी इम्यूनिटी को मजबूत बनाने के लिए हरसंभव उपाय करते रहना चाहिए। "
बाहर से आयी किसी भी चीज को सेनेटाइज करें, जिस चीज या सतह को कई लोग छूते हैं उसे न छुएं या छूने के बाद हाथ धोएं। यह हमेशा ध्यान रखें कि कोरोना संक्रमण से उत्पन्न हुई बीमारी की कोई निश्चित दवा नहीं है। अब तो आइवरमेकटिन, डोक्सिसिलिन, जिंक आदि दवाओं को कोरोना के इलाज के प्रोटोकॉल से हटा दिया गया है। मल्टी विटामिन तक को प्रोटोकॉल से हटा दिया गया है। ऐसे में कोई बीमार होता है तो उसे घर पर इलाज कराने या होम आइसोलेशन में रहने पर सिर्फ बुखार उतारने की दवा लेनी होगी। इसके अलावा खांसी होने पर कफ सीरप दिया जा सकेगा। हां, अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आयी तो बात अलग है। लेकिन अब तो एन्टीबॉडी कॉकटेल भी नए वेरियंट पर बेअसर है।
बहरहाल, प्रोटोकॉल से ज्यादातर दवाएं हटाने की वजह दूसरी लहर के दौरान अंधाधुंध तरीके से स्टेरॉयड और अन्य दवाइयां दिया जाना है। समझा जाता है कि इसी अंधाधुंध इलाज के कारण कोरोना मरीजों में खतरनाक फंगल इन्फेक्शन हुआ है। फंगल इन्फेक्शन का एक और कारण अस्पतालों में ऑक्सीजन दिए जाने को भी माना जा रहा है। तीसरी लहर में अब गंभीर मरीजों के लिए इलाज का नया प्रोटोकॉल क्या होगा, ऑक्सीजन देने में क्या एहतियात बरते जायेंगे, ये देखने वाली बात होगी।
अभी तक कोरोना की कोई निश्चित दवा भी नहीं निकल पाई है, जो भी सीमित दवाएं हैं वे सब प्रायोगिक तौर पर दी जाती रही हैं और फिलहाल आगे भी यही होगा। सो ये समझ लें कि सिर्फ बचाव ही इलाज है। वायरस से खुद ही बचना होगा, इसमें कोई और कुछ नहीं कर सकता है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)