आंदोलन जिन पर टाइम्स मैग्जीन ने लिया संज्ञान क्या है समानता

शाहीन बाग का धरना समान नागरिक संहिता के विरोध में 15 दिसंबर से शुरू हुआ था जबकि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का धरना 26 नवंबर से शुरू हुआ।

Update:2021-03-06 20:20 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

शाहीन बाग का धरना और दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन। दोनों धरना प्रदर्शनों के मुद्दे अलग हैं। भीड़ सहित तमाम चीजें दोनो को एक दूसरे से बिल्कुल अलग करती हैं, फिर भी दोनों में कुछ समानता है जो अपनी ओर बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। दोनो ही ऐसे आंदोलन है जिन्होंने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। दोनो आंदोलन का प्रकट उद्देश्य सरकार की नीतियों का विरोध करना था।

नागरिक संहिता का विरोध या कृषि कानूनों का विरोध

शुरुआती दौर में दोनो को देखकर ऐसा लगा था कि वैसा कुछ होने जा रहा है जैसा विदेशी मीडिया के चश्मे से देखा जाता है। लेकिन फिर भी दोनो अलग हैं। एक में समान नागरिक संहिता का विरोध था तो दूसरे में कृषि कानूनों का विरोध। आइए तलाशते हैं दोनो आंदोलनों में वो कौन सी बातें हैं जो एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

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किसानों की नये कानूनों पर चिंताएं

यह बात बिल्कुल सच भी है और नहीं भी कि शाहीनबाग का धरना पुलिस बल से खत्म कराया गया वास्तविकता यह है कि पुलिस कार्रवाई जिस समय हुई आंदोलन लगभग खत्म हो चुका था। ये लंबा आंदोलन अपनी मौत खुद मरा था यानी बिना मांगें पूरी हुए समाप्त हुआ था। लेकिन किसान आंदोलन से जुड़े किसानों की नये कानूनों को लेकर चिंताएं निहित स्वार्थ के मुकाबले ज्यादा बड़ी लगती हैं।

किसान आंदोलन की उम्र पांच राज्यों के चुनाव

हालांकि सरकार की मंशा जो उस आंदोलन के समय थी, वही इस आंदोलन के समय भी लग रही है। फिलहाल इस आंदोलन के बिना नतीजे समाप्त होने के आसार तो नहीं लग रहे। क्योंकि किसान आंदोलन को किसी एक केंद्र से न संचालित कर उसे व्यापक रूप देते जा रहे हैं जो कि शाहीनबाग में नहीं दिखा था। हालांकि कुछ जानकार किसान आंदोलन की उम्र पांच राज्यों के चुनाव तक मानकर चल रहे हैं।

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दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का धरना 26 नवंबर से शुरू हुआ

शाहीन बाग का धरना समान नागरिक संहिता के विरोध में 15 दिसंबर से शुरू हुआ था जबकि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का धरना 26 नवंबर से शुरू हुआ। दोनो धरने सर्दियों के दौरान शुरू हुए। हालांकि शाहीनबाग एक साल पहले ही केंद्र को चुनौती का केंद्र बनने लगा था जबकि किसान आंदोलन की शुरुआत जून के आसपास पंजाब से हुई।

शाहीनबाग के धरने पर मुस्लिम महिलाओं ने मोर्चा संभाला था जिसमें महिलाओं के घेरे में पुरुष वक्ता तेजाबी भाषण से आंदोलन को धार दिया करते थे। जबकि किसान आंदोलन में शुरू से किसानों का कब्जा रहा। दिल्ली में किसानों के मंच से सीधे टकराव व भड़काने वाले भाषणों से बचने की कोशिश होती रही है। आंदोलन के बीच में उनके परिवारों के भी धरने में शामिल होने के वीडियो फोटो वायरल हुईं।

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शाहीनबाग धरने के दौरान जहां बहुत ही उग्र भाषण दिये जाते थे वहीं किसान आंदोलन के मंच पर भी यदा कदा अलगाववादी नेताओं का कब्जा दिखा लेकिन किसान नेताओं ने हमेशा इससे किनारा किया।

शाहीनबाग धरने के दौरान फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़के जिसमें 53 लोगों की मौत हुई जबकि किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा हुई जिसमें लालकिले पर एक पंथ का झंडा फहराने जैसी घटनाएं हुईं।

किसान आंदोलन में महिला किसानों का प्रदर्शन

शाहीनबाग धरने के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया कमेटी बनाई और किसान आंदोलन के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और कमेटी बनाई। सर्वोच्च अदालत के हस्तक्षेप की मुख्य वजह सड़क या सड़कों को अवरुद्ध किया जाना था।

शाहीन बाग धरने की दादी बिलकिस बानो को टाइम्स मैग्जीन ने 100 चर्चित लोगों में जगह दी और आंदोलन को सनसनीखेज बनाया वहीं किसान आंदोलन में महिला किसानों के प्रदर्शन को लेकर टाइम्स मैगजीन ने महिला किसानों के प्रदर्शन को कवर पेज पर जगह दी।

टाइम मैगजीन के इस इंटरनेशनल कवर पर एक टैगलाइन भी दी हुई है, जिसमें लिखा है- ' मुझे डराया-धमकाया नहीं जा सकता और मुझे खरीदा नहीं जा सकता।

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शाहीनबाग आंदोलन दिल्ली चुनाव तक चला था जिसका आप को जबर्दस्त फायदा मिला था। किसान आंदोलन जिसमें ज्यादातर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हैं। हाल में पंजाब में हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस को जबर्दस्त फायदा मिला है। हालांकि इस आंदोलन का सुदूरवर्ती गुजरात के निकाय चुनाव में कोई असर नहीं हुआ और वहां भाजपा को जबर्दस्त सफलता मिली।

अब किसान इस आंदोलन को चुनाव वाले पांच राज्यों में भाजपा के विरोध का हथियार बनाना चाहते हैं। शाहीनबाग आंदोलन दिल्ली चुनाव के बाद खत्म हो गया था तो क्या किसान आंदोलन पांच राज्यों के चुनाव तक चलेगा। हालांकि शाहीनबाग आंदोलन 101 दिन चला था और किसान आंदोलन के इससे ज्यादा चलने की पूरी संभावना है क्योंकि इन राज्यों के चुनाव में मतदान में अभी वक्त है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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