हिजाब पर विवाद, नाहक तकरार
कर्नाटक के कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद हिजाब विवाद महज एक पहनावे के मुद्दे की ओर से हटकर एक धार्मिक मुद्दा बन गया है। गौरतलब है की दुनिया के बहुत से देशों में हिजाब पहनने पर प्रतिबन्ध है।
हिजाब कितना ज़रूरी है। क्या इसका धर्म से रिश्ता है। इसका विरोध करना क्या हिंदुत्व की धार पर शान चढ़ाना हैं। स्कूल में ड्रेस कोड की जगह हिजाब पहने कर जाना कितना उचित है। हिजाब का सवाल या विवाद किया देश के लिए चिंता सबब होना चाहिए? इन दिनों इस तरह के अनेक सवाल अपना उत्तर तलाश रहे हैं। ये तलाश केवल हिन्दुओं से नहीं है, मुसलमानों से भी है? जो देश, काल परिस्थितियों के साथ खुद को बदलने को तैयार नहीं हैं। कर्नाटक के मंड्या का भी एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें हिजाब पहनने पर एक मुस्लिम छात्रा के खिलाफ हिंदूवादी छात्र भगवा डाल कर नारेबाज़ी कर रहे हैं। छात्रा भी अल्लाहु अकबर कह कर जवाब देती है। इन दोनों में कौन नहीं दोषी है? यह तलाशना होगा? हम ऐसे विवादों में तलाशने लगते हैं कि कौन दोषी है? इससे इन सवालों का जवाब नहीं मिल सकता।
हिजाब विवाद कीं शुरुआत में हमें यह देखना ज़रूरी हो जाता है कि हिजाब का सवाल पहचान से ज़्यादा पसंद का है। पोशाक व्यक्ति के अभिव्यक्ति का हिस्सा है।
यह एक तरह की अभिव्यक्ति ही है। हमारे यहाँ हर तरह के लोगों के लिए अलग अलग पोशाक है। संतों व महिलाओं को ढीले कपड़े पहनने की सलाह है। सैनिकों के लिए कसे हुए कपड़े ज़रूरी बताये गये हैं।
हिजाब एक अरबी शब्द है, जो 'हा-जा-बा' से बना है जिसका अर्थ है ढकना। सीधे शब्दों में, हिजाब का अर्थ है हेडस्कार्फ़ । जो मुस्लिम महिलाओं द्वारा सर और गर्दन को कवर करने के लिए पहना जाता है। विभिन्न शब्दकोशों और कुरान के अनुसार, हिजाब के अर्थ हैं - एक चीज जो रोकती है, बाधा डालती है या वह वस्तु जो ढकती है, छिपाती है, या निहारने से रक्षा करती है। हिजाब मुस्लिम महिलाओं के लिए शालीनता, हया और गोपनीयता का प्रतीक है।
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इस्लाम एंड मुस्लिम वर्ल्ड के अनुसार, शील पुरुषों और महिलाओं दोनों की निगाह - चाल, वस्त्र और जननांग से संबंधित है। कुरान मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों को शालीन कपड़े पहनने का निर्देश देती है। कुछ इस्लामी कानूनी प्रणालियाँ इस प्रकार के कपड़ों को चेहरे और हाथों को कलाई तक छोड़कर सब कुछ ढकने के रूप में परिभाषित करती हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कुरान ही यह नहीं कहता कि महिलाओं को हिजाब पहनने की जरूरत है। कुरान की आयतों में, हिजाब शब्द का अर्थ एक परदा है। एक मान्यता यह है कि ये पर्दा आगंतुकों को पैगम्बर के मुख्य घर में उनकी पत्नियों के आवासीय आवास से अलग करता है। इस व्याख्या के आधार पर कुछ लोगों का यह दावा है कि हिजाब पहनने का कुरान का आदेश केवल पैगम्बर की पत्नियों पर लागू होता है, न कि संपूर्ण महिलाओं पर।
बहरहाल, हाल के दशकों में, दुनिया भर में हिजाब उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि हुई है और हिजाब फैशन में एक नया चलन बन गया है।
मुस्लिम महिलाओं के पहनावे
शायला: शायला एक चौकोर स्कार्फ होता है जिससे सिर और बालों को ढंका जाता है। इसके दोनों सिरे कंधों पर लटके रहते हैं। आम तौर पर इसमें गला दिखता रहता है। खाड़ी देशों में शायला बहुत लोकप्रिय है।
हिजाब: हिजाब में बाल, कान, गला और छाती को कवर किया जाता है। इसमें कंधों का कुछ हिस्सा भी ढंका होता है, लेकिन चेहरा दिखता है। हिजाब अलग अलग रंग का हो सकता है। दुनिया भर में मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनती हैं।
अल अमीरा: अल अमीरा एक डबल स्कार्फ होता है। इसके एक हिस्सा से सिर को पूरी तरह कवर किया जाता है जबकि दूसरा हिस्सा उसके बाद पहनना होता है, जो सिर से लेकर कंधों को ढंकते हुए छाती के आधे हिस्से तक आता है। अरब देशों में यह काफी लोकप्रिय है।
चिमार: यह भी हेड स्कार्फ से जुडा हुआ एक दूसरा स्कार्फ होता है जो काफी लंबा होता है। इसमें चेहरा दिखता रहता है, लेकिन सिर, कंधें, छाती और आधी बाहों तक शरीर पूरी तरह ढंका हुआ होता है।
चादर: जैसा कि नाम से ही जाहिर है चादर एक बड़ा कपड़ा होता है जिसके जरिए चेहरे को छोड़ कर शरीर के पूरे हिस्से को ढंका जा सकता है। ईरान में यह खासा लोकप्रिय है। इसमें भी सिर पर अलग से स्कार्फ पहना जाता है।
नकाब: नकाब में पूरे चेहरे को ढंका जाता है। सिर्फ आंखें ही दिखती हैं। अकसर लंबे काले गाउन के साथ नकाब पहना जाता है। नकाब पहनने वाली महिलाएं ज्यादातर उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में दिखायी देती हैं।
बुरका: बुरके में मुस्लिम महिलाओं का पूरा शरीर ढंका होता है। आंखों के लिए बस एक जालीनुमा कपड़ा होता है। कई देशों ने सार्वजनिक जगहों पर बुरका पहनने पर प्रतिबंध लगाया है जिसका मुस्लिम समुदाय में विरोध होता रहा है।
फैशन इंडस्ट्री और हिजाब
हिजाब या हेड स्कार्फ अब फैशन इंडस्ट्री का बड़ा हिस्सा बन गया है। इसको मलेशिया के एक उदाहारण से समझा जा सकता है कि 26 वर्षीय नूर नीलोफर एक मुस्लिम ब्यूटी क्वीन, अभिनेत्री और टेलीविजन प्रिज़ेंटर हैं। ट्विटर पर इनके 14 लाख और फेसबुक पर 22 लाख फॉलोअर्स हैं। नीलोफर एक साल में मलेशिया के सबसे बड़े हेडस्कार्फ़ ब्रांडों में से एक बन गई हैं और उनका खुद का नीलोफर ब्रांड हिजाब खूब बिकता है।
60 फीसदी मुस्लिम आबादी वाला मलेशिया एकमात्र ऐसा देश नहीं है ,जहाँ मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब की डिमांड बढ़ती जा रही है। 2014 में ग्लोबल हिजाब बाजार का मूल्य 230 अरब डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था और 2020 तक यह 327 अरब डॉलर तक पहुंच गया। भारत जैसे देशों में जहाँ कुछ साल पहले हिजाब बहुत कम देखने को मिलता था वहां अब हेडस्कार्फ़, या हिजाब की मांग बढ़ती जा रही है। अब हिजाब या हेडस्कार्फ़ एक फैशन एक्सेसरी भी बन गया है। हिजाब फैशन की बढ़ती मांग ने एक तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग भी बना दिया है।
नीलोफर ब्रांड हिजाब सिंगापुर, ब्रुनेई, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड और अमेरिका के अलावा दुनियाभर में ऑनलाइन बेचा जाता है।
हिजाब की मांग पिछले 30 साल में धीरे-धीरे बढ़ी है ।लेकिन बीते एक दशक में इसमें तेजी से उछाल आया है। इसके पीछे इस्लामिक फैशन डिज़ाइन काउंसिल भी है जिसके सदस्यों में से एक तिहाई 40 देशों के डिजाइनर हैं। तुर्की मुस्लिम फैशन का सबसे बड़ा बाजार है।
हिजाब पहनने वाली महिलाएं पश्चिमी देशों में भी अधिक दिखाई देने लगी हैं जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। लंदन फैशन वीक में मलेशियाई कपड़ों के ब्रांड मिम्पिकिता ने एक शो में सिर्फ हिजाबों पर फोकस किया था। पश्चिमी डिजाइनरों ने भी मुस्लिम महिलाओं के लिए फैशन में रुचि दिखाई है। नाइके, टॉमी हिलफिगर और मैंगो जैसे ब्रांड्स रमजान के दौरान बड़ी तादाद में हिजाब और कबाया बेचते हैं।
फैशन के चलन से हिजाब के प्रति धारणा धीरे-धीरे प्रभावित हुई है। हाल के दशकों में, दुनिया भर में हिजाब उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि हुई है और हिजाब फैशन लाइन में एक नया चलन बन गया। अब गैर-मुसलमानों की भी हिजाब में दिलचस्पी बढ़ रही है।
2016 में न्यूयॉर्क फैशन वीक में पहली बार इंडोनेशिया की फैशन डिजाइनर एनीसा हसीबुआन ने भाग लिया। हसीबुआन ने एक अलग तरह का इतिहास भी बनाया। न्यूयॉर्क फैशन वीक के इतिहास में पहली बार कैटवाक पर हिजाब पहने मॉडल दिखाई पड़ीं। हसीबुआन की मॉडल रेशम के गाउन और पैंट में थीं और सभी के सिर ढके हुए थे। आज, मुस्लिम फैशन एक आकर्षक वैश्विक उद्योग है जिसमें इंडोनेशिया, मलेशिया और तुर्की जैसे देश सबसे आगे हैं। 2010 में तुर्की के अखबार मील्लियत ने इस्लामिक कपड़ों के ग्लोबल बाजार का अनुमान लगभग 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लगाया था। 2014-2015 के लिए ग्लोबल इस्लामिक इकोनॉमी रिपोर्ट ने संकेत दिया कि कपड़ों और जूतों पर मुस्लिम उपभक्ताओं का खर्च 266 बिलियन डॉलर हो गया था। 2019 तक ये बाजार 488 अरब डॉलर के पार हो चुका था।
टेक्सास विश्वविद्यालय में मिडिल ईस्ट स्टडीज की प्रोफ़ेसर फ़ैघेह शिराज़ियो के एक शोध के अनुसार, मुसलमान सामान्य आबादी की तुलना में अधिक ब्रांड जागरूक हैं। बढ़ती मुस्लिम आबादी के साथ युवाओं के लिए मामूली लेकिन फैशनेबल कपड़ों की भी मांग बढ़ रही है। आज का उपभोक्तावाद आधुनिक और मुस्लिम होने का मतलब बदल रहा है। जैसा कि मिडिल ईस्ट के विद्वान वली नस्र बताते हैं - मुस्लिम दुनिया की आत्मा के लिए महान लड़ाई धर्म पर नहीं बल्कि बाजार पूंजीवाद पर लड़ी जाएगी।
बहुत से देशों में बैन है हिजाब
कई ऐसे देश हैं जहां हिजाब अनिवार्य है जबकि कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने हिजाब और नकाब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। कहीं पर सिर्फ नकाब पर प्रतिबंध है तो कहीं हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया है। हिजाब सिर्फ एक स्कार्फ है जिसे अपने सिर को ढकने के लिए इस्तेमाल करते हैं जबकि नकाब कपड़े का एक टुकड़ा है जो बालों, सिर और चेहरे को ढकता है। मध्य पूर्व अरब राज्य, अफगानिस्तान और ईरान ऐसे देश हैं जहां हिजाब अनिवार्य है।
नीदरलैंड
नीदरलैंड में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साथ-साथ स्कूलों, अस्पतालों और सरकारी भवनों में बुर्का और चेहरे का नकाब पहनने पर प्रतिबंध है। यहाँ के कैबिनेट ने पिछले साल हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की योजना को मंजूरी दी थी लेकिन इस बिल को अभी भी सीनेट से मंजूरी की जरूरत है।
फ्रांस
हिजाब या किसी भी प्रकार धार्मिक प्रतीक चिन्ह के रूप में देखे जाने वाले वस्त्र पहनने पर फ्रांसीसी सरकार का प्रतिबंध 2004 में कानून बना और उसी वर्ष सितंबर में लागू हो गया। फ़्रांस में सरकारी स्कूलों में हिजाब सहित कुछ धार्मिक प्रतीकों को पहनना प्रतिबंधित है। हिजाब पर प्रतिबंध के साथ, अन्य धार्मिक प्रतीकों को फ्रांसीसी राज्य के स्कूलों में पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिसमें सिख पगड़ी शामिल है। फ़्रांस में हिजाब पहनने वाली महिलाओं पर 30,000 यूरो का जुर्माना और एक साल की जेल हो सकती है।
बेल्जियम
बेल्जियम सार्वजनिक स्थानों पर नकाब पर प्रतिबंध लगाने वाला दूसरा देश था यहाँ जुलाई 2011 में प्रतिबंध की घोषणा की गयी। देश में चेहरा ढंकने वाली किसी भी चीज पहनने पर जुर्माना लगाया जा सकता है और सात दिन जेल की सजा हो सकती है।
बुल्गारिया
2018 में बुल्गारिया ने सुरक्षा कारणों से बुर्का और चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
स्विट्जरलैंड
2013 में स्विस मतदाताओं के बहुमत से सार्वजनिक रूप से चेहरा नकाब और बुर्के पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक विधेयक पारित किया गया था। हालांकि, प्रतिबंध 2016 में शुरू किया गया। उल्लंघन के मामले में महिलाओं पर 9,200 फ्रैंक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
इटली
इटली के सबसे धनी क्षेत्र लोम्बार्डी में बुर्का और चेहरे के नकाब पर प्रतिबंध है। प्रतिबंध की घोषणा दिसंबर 2015 में की गई थी। इसके अलावा ऐसे अन्य कानून भी हैं जो पहचान प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हेलमेट और अन्य चेहरे को ढंकने वाली चीजों पर भी प्रतिबंध लगाते हैं।
चाड
जून 2015 में लगातार दो आत्मघाती बम विस्फोटों के बाद अफ्रीकी देश चाड ने महिलाओं के चेहरे पर ढंकने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
ऑस्ट्रिया
ऑस्ट्रिया ने 2017 में महिलाओं के लिए चेहरे पर नकाब और बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
लातविया
लातविया में वैसे भी महिलाएं शायद ही कभी चेहरे को ढंकती हैं लेकिन 2016 में उन्हें देश से पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था।
कोसोवो
2009 में सार्वजनिक स्थानों, सरकारी भवनों और स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
मोरक्को
जनवरी 2017 में फेस वील और बुर्का पहनने, निर्माण, विपणन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
तुर्की
तुर्की अपनी महिला छात्रों को कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं देता है, हालांकि उन्होंने अतिथि छात्रों के लिए छूट प्रदान की है। तुर्की में हाईस्कूल में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध 2014 में हटा लिया गया था।
मिस्र
मिस्र एक और मुस्लिम देश है जहां सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का और चेहरा ढकना प्रतिबंधित है।
ताजिकिस्तान
ताजिकिस्तान ने एक नया कानून पारित किया है जो मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने से रोकेगा। कानून में लोगों से पारंपरिक राष्ट्रीय कपडे पहनने और संस्कृति का अनुसरण करने की अपेक्षा की गयी है। इस कदम को इस्लामिक कपड़ों पर कार्रवाई के रूप में देखा गया है। मध्य एशियाई देश में महिलाएं पारंपरिक रूप से हिजाब के बजाय अपने सिर के पीछे बंधा हुआ दुपट्टा पहनती हैं, जिसे ठुड्डी के नीचे लपेटा जाता है। हिजाब पहनने वाली महिलाओं के देश के सरकारी कार्यालयों में प्रवेश पर पहले से ही प्रतिबंध है।
इंडोनेशिया
सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में लड़कियों को स्कूल में हिजाब पहनने से आजादी है। सरकार ने उन स्कूलों को बैन करने का फैसला किया है जो लड़कियों के हिजाब पहनने को अनिवार्य मानते हैं।
इसके अलावा अजरबैजान में 2010 से और ट्यूनीशिया में 1981 से सार्वजनिक स्कूलों और विश्वविद्यालयों या सरकारी भवनों में बुर्के पर प्रतिबंध लगा है। सीरिया में जुलाई 2010 से चेहरे पर नकाब लगाने पर प्रतिबंध लगा है।
आरिफ मोहम्मद खान का रिएक्शन
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान इस्लामिक कट्टरता और रूढ़िवाद के खिलाफ अपनी स्पष्ट राय के लिए जाने जाते हैं। आरिफ मोहम्मद खान ने कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबन्ध का समर्थन किया है।
मौजूदा हिजाब विवाद को 'साजिश' करार देते हुए राज्यपाल ने कहा है कि यह पसंद का सवाल नहीं है, बल्कि किसी संस्था के नियमों और ड्रेस कोड के पालन की बात है। उन्होंने कहा है कि मुस्लिम लड़कियों को नीचे धकेलने की बजाय प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा की हिजाब लड़कियों को वापस घरों में धकेलने का एक और प्रयास है।
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि इस्लाम के शुरुआती इतिहास में महिलाओं के हिजाब पहनने से इनकार करने के मामले सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि हिजाब इस्लाम का हिस्सा नहीं है। कुरान में हिजाब का सात बार जिक्र है, लेकिन महिलाओं के ड्रेस कोड के संबंध में ये बात नहीं कही गयी है। यह 'पर्दे' के संबंध में है, जिसका अर्थ है कि जब आप बोलते हैं, तो आपके बीच में पर्दा होना चाहिए। यह बेतुका है कि हिजाब पहनने की तुलना पगड़ी पहनने से की जा रही है, जो सिख धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है। कुरआन में हिजाब को एक अनिवार्य भाग के रूप में वर्णित नहीं किया गया है। आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि – 'एक युवा लड़की, जो खुद पैगंबर के घर में पली-बढ़ी थी। वह पवित्र पैगंबर की पत्नी की भतीजी थी। वह लौकिक रूप से सुंदर थी। उसने कहा मैं चाहती हूं कि लोग मेरी सुंदरता देखें और मेरी सुंदरता में ईश्वर की कृपा देखें और ईश्वर का शुक्रगुजार करें। इस्लाम की पहली पीढ़ी की महिलाओं ने ऐसा व्यवहार किया था।
इन सब तथ्य व सत्य से गुजरने के बाद यह कहना ग़लत नहीं होगा कि हिजाब का सवाल देशव्यापी बनाना ग़लत है? धर्म से इस पहनावे का रिश्ता बताना आधारहीन। हिजाब पहनने को लेकर विवाद व न पहनने की वकालत दोनों समाज में ख़लल डालने के तरीक़े हैं। इन सब से बचने की ज़रूरत है। यदि नहीं बचा जा सका तो हम जिस विविधता में एकता वाली संस्कृति की बात करते है, वह ऐसे ही हो जायेगी जैसे सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा तरना लिखने वाले को पाक भा गया।