हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा कब ?
भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन हिंदी है। देश के विकाश में मात्र एक सहायक भाषा हिंदी ही है।
हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिन्दी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था अवहट्ठ से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं। हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का भान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि - संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।
यह सबसे अधिक सरल भाषा है। यह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवाद विहीन हैं। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है। हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द रचना सामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती।अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।
हिंदी बोलने और समझने वाले 60 करोड़ से अधिक लोग
वर्तमान में हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता साठ करोड़ से भी अधिक है। हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है। हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन हिंदी है। देश के विकाश में मात्र एक सहायक भाषा हिंदी ही है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि विश्व पटल पर सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है। देश के प्रत्येक कोने में लोग हिंदी भाषा की समझ रखते हैं।
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70 दशकों के अधिक समय से हम हिंदी दिवस उत्साहपूर्वक मनाकर अपने आप को इस बात का संतोष जरुर दे पाते हैं कि हिंदी भाषा आज भी जीवित है। संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को सरकारी कामकाज की भाषा (अंग्रेजी के अतिरिक्त) के रूप में मान्यता दी गयी है और 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान में इस पर मुहर लगायी गयी। 14 सितंबर सन् 1949 को बोहार राजेंद्र सिम्हा के 50 वे जन्मदिन के रूप में चिन्हित किया गया।
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जिन्होंने हिंदी के महत्व को उजागर करने और देश की अधिकारिक भाषा के रूप में बढ़ावा देने के लिए योगदान दिया है। जिस सम्मान और अधिकारिक स्थान के योग्य हिंदी भाषा रही है उसको वह स्थान अपने मातृभूमि में ही नहीं मिला है। शहरीकरण और विदेशी प्रभावों से हम दिन प्रतिदिन और अधिक घिरते चले जा रहे हैं। आधुनिकता की दौड़ और बेहतर पाने की चाह में लोग अपनी भाषा से दूर हो रहे हैं। हम अंग्रेजी भाषा की तरफ तेजी से झुकते चले जा रहें हैं।
देश की उन्नति तभी होगी जब देश की भाषा की उन्नति हो
आज अनेकों लोगों की सोच के अनुसार आप जेंटलमैन तभी कह लाएंगे जबकि आप भार्राटेदार अंग्रेजी बोल सकें। वहीं हिंदी भाषियों को अशिक्षित मानने से भी गुरेज नहीं करते है। अनेकों संघर्ष और चल रही मांग के बावजूद हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा आज तक प्राप्त नहीं हुआ है। सन् 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में गांधी जी ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने को कहा था। काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास और अनेकों महानविभूतियों की हार्दिक इच्छा हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की रही है।
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अपनी कई खूबियों की वजह से हिंदी राष्ट्र भाषा बनने की पूर्ण हकदार है। भारत की जनसंख्या वर्ष 2011 के आकड़ों के अनुसार 121 करोड़ रही है। विश्व के कुल 142 देशों की कुल आबादी में भारत की आबादी का हिस्सा 17.12% है। यह अपनी जनसंख्या के आधार पर विश्व में दूसरा स्थान रखती है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा समय - समय पर जारी आकड़ों, वैश्विक स्तर सकल घरेलू उत्पाद, चीन और जापान का प्रदर्शन बेहतर रहा है वहीं भारत इनसे पीछे रहा है।
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यदि इसी बात को दूसरे आधार पर प्रस्तुत किया जाए तो चीन जनसंख्या के आधार पर नंबर 1 है और भारत नंबर 2 पर आर्थिक कई गतिविधियों में चीन से भारत काफी पीछे रहा है। यदि चीन के विकास की गति के पीछे का मुख्य कारण जाना जाए तो वहां बोली जाने वाली भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है। चीन में चाइनीज भाषा न केवल बोली जाती है बल्कि समस्त क्रियान्वयन इसी भाषा में किये जाते हैं। ठीक यही हाल विश्व की सकल घरेलू उत्पाद में अति महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जापान का भी है।
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जहाँ पर न केवल जापानीज भाषा बोली जाती है बल्कि सारे क्रियान्वयन जापानीज भाषा में किये जाते हैं। इन बातों से एक बात निकलकर सामने आती है कि किसी देश कि उन्नति तभी हो सकती है। जबकि उस देश की भाषा कि उन्नति हो। और वह तभी संभव है जबकि उस देश कि भाषा को सभी क्रियान्वयन में अनिवार्य किया जाए। आज अंग्रेजी भाषा शान का प्रतीक भी बन चूकी है।
विश्व की सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में हिंदी का तीसरा स्थान
जहां एक तरफ़ हम उद्योग का विकास सिर्फ इसलिए नहीं कर पा रहे हैं कि हमारे यहाँ व्यावसायिक वातावरण नहीं है। वहीं हम अपनी जमीनी सच्चाई को भूलकर अंग्रेजी के गुलाम बनते चले जा रहे है। देश की वर्ष 2011 के जनसंख्या के आंकड़ों पर गौर करें तो कुल आबादी का मात्र 12 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी भाषा कि समझ रखते है जबकि अन्य लोग हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा की समझ रखते है। हिंदी भाषा की बात करें तो कुल आबादी का 41.03 प्रतिशत लोग हिंदी भाषा को प्रयोग करते हैं।
संख्या में 42 करोड़ से भी अधिक लोग हिंदी भाषा को बोलते है। भारत के जिस क्षेत्र में हिंदी भाषा नहीं बोली जाती वहां हिंदी से मिलती जुलती भाषा ही बोली जाती है और वो समस्त लोग हिंदी भाषा को अच्छी तरह से समझते हैं। हिंदी भाषा कि अपनी कई विशेषताएं हैं और यह दुनिया में बोली जाने वाली समस्त भाषाओँ में अपनी खास योग्यता कि वजह से अहम स्थान रखती है। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आंकड़े मिलते हैं। उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता है।
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सन् 1997 में सैन्सस ऑफ़ इंडिया का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है। किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेजी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेजी भाषियों से अधिक है।
सरकार को देना चाहिए हिंदी की तरफ ध्यान
इतिहास इस बात का गवाह रहा है की किसी समाज, राज्य देश का विकास तभी सम्भव है। जबकि वहां पर सभी कार्य राष्ट्र भाषा में सम्पादित किये जाएं। और यह सरकार द्वारा अनिवार्य भी किया गया हो। जापान और चीन दो ऐसे देश इस बात के जीवंत उदहारण हैं। कोरोना-वायरस की इस महामारी में देश की आर्थिक गतिविधि को गति देने के उद्देश्य से माननीय प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान का नारा दिया हुआ है जिसे हिंदी के राष्ट् भाषा की मांग को बल मिलता है।
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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हिंदी भाषा को महत्वपूर्ण स्थान देना भी साहसिक और स्वागत योग्य कदम माना जा सकता है। हिंदी का जन्म अपने देश में हुआ है। फिर भी हम अपनी भाषा को सम्मान नहीं दिला पा रहें हैं। हम आजादी के कई दशक बाद भी अंग्रेजी भाषा से मुक्त नहीं हो पाए हैं।
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शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, न्याय और दैनिक दिनचर्या में जिस तरह से अंग्रेजी भाषा का प्रयोग में लगातार वृद्धि हो रही है वो दिन दूर नहीं जब हिंदी बिलुप्त भाषा के रूप में जानी जाएगी। भविष्य बनाने और इतिहास को सही करने का यह उचित समय है। जरूरत है तो इस मुद्दों पर सरकार द्वारा स्वतंत्र रूप से त्वरित निर्णय लेने की। यदि इतनी खूबियों के बावजूद हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं बन पाती है तो हिंदी दिवस मनाना किसी औपचारिकता से कम नहीं....!