37 दिनों में दो बार डिप्टी सीएम बनने वाले पहले नेता बने पवार

महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की उद्धव ठाकरे सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में अजित पवार को बड़ी जिम्मेदारी मिलना पहले से ही तय माना जा रहा था। पवार एनसीपी के कद्दावर नेता हैं और माना जा रहा है कि इसी कारण शरद पवार की ओर से उन्हें डिप्टी सीएम बनाने की हरी झंडी दी गई।

Update: 2019-12-30 11:13 GMT

नई दिल्ली: देश की राजनीति में अजित पवार शायद ऐसी पहली सियासी शख्सियत हैं जिन्हें 37 दिनों में दो परस्पर विरोधी गठबंधन में डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलाई गई है। पवार ने 23 नवंबर को भी डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी और अब 30 दिसंबर को उन्हें दुबारा इसी पद की शपथ दिलाई गई है। अंतर सिर्फ इतना है कि पहली बार वे भाजपा से मिलकर डिप्टी सीएम बने थे और अब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की सरकार में डिप्टी सीएम बने हैं। पाला बदलकर इतनी जल्दी दो गठबंधनों से डिप्टी सीएम बनने वाले शायद वे पहले राजनेता हैं। इसके साथ ही उनका विवादों से गहरा नाता है।

शरद पवार ने भतीजे को संतुष्ट किया

महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की उद्धव ठाकरे सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में अजित पवार को बड़ी जिम्मेदारी मिलना पहले से ही तय माना जा रहा था। पवार एनसीपी के कद्दावर नेता हैं और माना जा रहा है कि इसी कारण शरद पवार की ओर से उन्हें डिप्टी सीएम बनाने की हरी झंडी दी गई। यह भी कहा जा रहा है कि अजित पवार को देवेन्द्र फडणवीस से दूर करने के लिए सम्मानजनक तरीके से एडजस्ट करने का वादा किया गया था और शरद पवार ने अपने वादे को पूरा कर अपने भतीजे को संतुष्ट कर दिया है।

भाजपा के साथ जाने पर हुई थी हैरत

अजित पवार ने जिस समय बगावत करके महाराष्ट्र में भाजपा से हाथ मिलाया था तब लोगों को एकबारगी उनके इस फैसले पर आश्चर्य हुआ था क्योंकि शरद पवार को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है।

लोगों के लिए यह हैरानी वाली बात थी कि वे अपने भतीजे को ही कैसे अपने साथ नहीं रख सके। उस समय अजित पवार को भी यह उम्मीद थी कि उनके साथ एनसीपी के कुछ विधायक आ जाएंगे और वे फडणवीस को बहुमत की नदी पार करने में मददगार साबित होंगे मगर ऐसा नहीं हो सका। अजित पवार को उम्मीद के मुताबिक विधायकों का समर्थन नहीं मिला और आखिरकार फिर शरद पवार के पास लौट आए। हालांकि इसके पहल दो-तीन दिनों तक उनके रुठने-मनाने का सिलसिला भी चला।

चौथी बार बने हैं डिप्टी सीएम

जानकारों का कहना है कि शरद अपने विश्वस्तों के माध्यम से अजित के पास यह संदेश भेजा कि उनकी सम्मानजनक वापसी होगी और उन्हें वह पद दिया जाएगा जिस पर वे फडणवीस की कैबिनेट में शामिल हुए हैं। उद्धव मंत्रिमंडल के पहले विस्तार में शरद पवार ने अजित पवार से किया वादा पूरा कर दिया है। वैसे बता दें कि अजित पवार रिकॉर्ड चौथी बार उपमुख्यमंत्री बने हैं। इससे पहले वह 2010 और 2012 में भी उपमुख्यमंत्री के पद पर रह चुके हैं।

शरद के गढ़ से सातवीं बार जीते हैं अजित

अजित पवार शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार के बेटे हैं। वे महाराष्ट्र की बारामती विधानसभा सीट से विधायक चुने गए हैं। बारामती विधानसभा सीट पर पिछले 52 सालों में सिर्फ दो ही लोग विधायक बने हैं और ये दोनों ही पवार परिवार के ही हैं यानी शरद पवार और अजित पवार। चाचा शरद ने इस सीट से छह बार और भतीजे अजित ने इस सीट पर सात बार चुनाव जीता है। पवार परिवार ने इस सीट को आठ बार कांग्रेस के लिए और चार बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए फतह किया।

शरद पवार सन 1967 से 1990 तक निरंतर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडक़र विजय हासिल करने में कामयाब रहे। इसके बाद में अजित पवार ने भी दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। बाद में शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ दी और एनसीपी बनाई। तब से लेकर अब तक चार बार अजित पवार एनसीपी से यहां जीतते रहे हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में अजित सातवीं बार बारामती से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं।

पिता चाहते थे फिल्म में करियर

अजित के पिता अनंतराव मशहूर फिल्म निर्देशक वी शांताराम के साथ काम करते थे। पिता की इच्छा थी कि अजित भी फिल्म इंडस्ट्री में अपना करियर बनाएं, लेकिन अजित ने अपने चाचा शरद पवार की राह चुनी। 1982 में अजित राजनीति के मैदान में उतरे और कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री के बोर्ड में चुने हुए। वे पुणे जिला कोऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन भी रहे।

इसी दौरान बारामती से लोकसभा सांसद भी निर्वाचित हुए। बाद में उन्होंने शरद पवार के लिए यह सीट खाली कर दी थी। 60 वर्षीय अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार हैं। हायर सेकेंडरी तक शिक्षित अजित पवार के दो पुत्र पार्थ पवार और जय पवार हैं।

अजित का विवादों से पुराना नाता

अजित पवार का विवादों से पुराना नाता रहा है। महाराष्ट्र के बड़े घोटालों में भी उनका नाम उछल चुका है मगर फिर भी शरद पवार का सिर पर हाथ होने के कारण उनका सियासी रसूख कायम है।

साल 2010 में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार में अजित पवार पहली बार वे डिप्टी सीएम बने थे मगर दो साल बाद सितंबर 2012 में एक घोटाले के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में एनसीपी ने एक श्वेत पत्र जारी कर उन्हें पूरी तरह बेदाग बताया। उनका नाम महाराष्ट्र में 1500 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले से भी जुड़ा और वे इस मामले में आरोपी हैं।

2013 में अजित पवार अपने बयान को लेकर भी विवादों में आ गए थे। उन्होंने सूखे को लेकर 55 दिनों तक उपवास करने वाले कार्यकर्ता पर विवादित टिप्पणी की थी। बाद में उन्हें इसके लिए माफी मांगनी पड़ी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बारामती में अपनी चचेरी बहन सुप्रिया सुले के चुनाव प्रचार के दौरान उन पर ग्रामीणों को धमकाने का आरोप लगा था। मीडिया की खबरों के मुताबिक उन्होंने धमकी दी थी कि सुले को वोट न पर पानी की सप्लाई काट दी जाएगी।

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