विधानसभा इलेक्शन 2021: असम में कांग्रेस साथी दलों के भरोसे, पढ़ें पूरी खबर

असम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 जनवरी को रैली के साथ अपने अभियान की शुरुआत की थी। जबकि कांग्रेस की तरफ से राहुल गाँधी ने 14 फरवरी को एक रैली को संबोधित किया।

Update: 2021-03-07 08:44 GMT
विधानसभा इलेक्शन 2021: असम में कांग्रेस साथी दलों के भरोसे, पढ़ें पूरी खबर (PC: social media)

गुवाहाटी: असम विधानसभा चुनाव में सिक्का जमाने के लिए नेताओं और दलों ने सभी घोड़े खोल रखे हैं। जनता के बीच जा-जा कर आपनी आवाज सुनाने और जनता की आवाज सुनने की होड़ लगी हुई है। वैसे तो असम में भाजपा के दोबारा सत्ता में लौटने का अनुमान है लेकिन पार्टी कोई जोखिम नहीं उठा रही और प्रचार अभियान पूरे जोर शोर से चलाया जा रहा है।

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पीएम मोदी ने 23 जनवरी को रैली के साथ अपने अभियान की शुरुआत की थी

असम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 जनवरी को रैली के साथ अपने अभियान की शुरुआत की थी। जबकि कांग्रेस की तरफ से राहुल गाँधी ने 14 फरवरी को एक रैली को संबोधित किया। चुनाव अभियान की शुरुआत से लेकर अब तक मोदी असम का तीन बार दौरा कर चुके हैं जबकि राहुल गाँधी ने सिर्फ एक ही रैली की है। मोदी का प्रोग्राम तो असम में अभी और रैलियां करने का है लेकिन कांग्रेस या राहुल गाँधी की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है।

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दिसंबर से अब तक अमित शाह कई बड़ी रैलियों को संबोधित कर चुके हैं

मोदी-राहुल को छोड़ दें तो कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गाँधी ने अपने अभियान की शुरुआत 2 मार्च को की जबकि भाजपा की तरफ से अमित शाह ने पिचले साल दिसंबर में ही असम में भाजपा का अभियान लांच कर दिया था। दिसंबर से अब तक अमित शाह कई बड़ी रैलियों को संबोधित कर चुके हैं जबकि प्रियंका का स्कोर अब अभी मात्र एक पर अटका हुआ है। ऐसे में सवाल लाजमी है कि क्या सहयोगी दलों के भरोसे हो कर कांग्रेस उदासीन हो गयी है या जीत के प्रति इतना ज्यादा कॉन्फिडेंस है कि उसे चुनाव अभियान की जरूरत ही महसूस नहीं हो रही?

सोनोवाल मजबूत स्थिति में

वैसे तो चुनावों में सत्तासीन पार्टी के खिलाफ माहौल रहता है लेकिन चीफ मिनिस्टर सर्बनंद सोनोवाल के खिलाफ एंटी इंकम्बैन्सी जैसा कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है। इसकी वजह भाजपा सरकार द्वारा चलाई गयी ढेरों कल्याणकारी स्कीमें हैं, कोरोना महामारी से ढंग से निपटने का किया गया काम है और सीएए मसले पर उत्पन्न तनाव को सफलतापूर्वक शांत करने का काम है। इन सबके ऊपर है ध्रुवीकरण जिसे अपनी जगह पर कायदे से फिट कर दिया गया है।

कांग्रेस में ठंडेपन

असम में कांग्रेस का शासन काफी लम्बे समय तक रहा है तो फिर अब ये पार्टी अपनी खोई ग्लोरी वापस पाने के लिए प्रयास क्यों नहीं कर रही है, ये हैरान करने वाली बात है। भाजपा के नार्थ ईस्ट के संयोजक हिमंत बिस्वा सरमा जब ये कहते हैं कि राहुल प्रियंका राजनीतिक पर्यटकों की तरह असम आए तो उनकी बात सही प्रतीत होती है। कांग्रेस ने बंगाल, केरल और तमिलनाड़ु की तरह असम में गठबंधन की पॉलिटिक्स खेली है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ऐसे गठबंधन से असम में कांग्रेस को कुछ मजबूती मिली है और पार्टी कैडर में एनर्जी आई है लेकिन इसका फायदा चुनावी जीत के रूप में मिल पायेगा, ये कहना बहुत मुश्किल है। कांग्रेस ने चुनाव अभियान के नाम पर गठबंधन के अलावा सोशल मीडिया को ही पकड़ रखा है। लेकिन सिर्फ सोशल मीडिया चुनाव जितवा पायेगा ये सोच ही हैरान करने वाली है।

असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मसला बहुत महत्त्व रखता रहा है

असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मसला बहुत महत्त्व रखता रहा है। दशकों से इस राज्य की राजनीति इसी मसले पर चली है। असम के लोगों के लिए बांग्लादेशियों का मसला संवेदनशील है लेकिन अब ये उतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। शायद लोग समझ चुके हैं कि जैसी स्थिति है उसे स्वीकार करने में ही भलाई है।

सीएए का विरोध सबसे ज्यादा अपर असम में रहा था

सीएए का विरोध सबसे ज्यादा अपर असम में रहा था। अपर असम कांग्रेस का गढ़ रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में बांग्लादेशी मूल के लोगों का सर्वाधिक जमावड़ा है। कांग्रेस इस क्षेत्र में ‘अली-कुली’ की राजनीति करती रही है। अली मायने बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम लोग जो कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं। और कुली, यानी चाय बगान में काम करने वाले आदिवासी लोग। अली-कुली, दोनों ने ही कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया है।

चाय बगान के आदिवासी समुदाय ने भाजपा को अपना लिया

जहाँ अली यानी बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम लोग पाला बदल कर बदरुद्दीन अजमल की आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के साथ हो लिए वहीं कुली, यानी चाय बगान के आदिवासी समुदाय ने भाजपा को अपना लिया। इसके पीछे आरएसएस द्वारा असम में की गयी मेहनत है। चाय बगान के आदिवासियों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रियंका गांधी ने एक चाय बगान में मजदूरों के साथ चाय की पत्तियां तोड़ीं थीं। चाय बगान के मजदूर सिर्फ असम ही नहीं, बंगाल में भी महत्त्व रखते हैं।

महाजोत के भरोसे

असम में कांग्रेस नीत महाजोत (महागठबंधन) में एआईयूडीएफ, बीपीएफ, माकपा, भाकपा और आंचलिक गण मोर्चा शामिल हैं। कांग्रेस 87 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बाकी 39 सीटें महाजोत के सहयोगियों को दी जायेंगी। मुस्लिम वोट के अलावा कांग्रेस की नजर महिला मतदाताओं पर भी है। कांग्रेस ने मतदाताओं को लुभाने के लिए महिलाओं को सरकारी नौकरी में 50 फीसदी आरक्षण देने का एलान किया है। साथ ही कहा कि यदि विधानसभा चुनाव में महाजोत गंठबंधन सत्ता में आता है तो रोजगार के लिए एक अलग मंत्रालय का भी गठन किया जाएगा।

प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को सरकार बनने पर पांच बातों की गारंटी दी थी। पार्टी इन गारंटी को चुनाव प्रचार का मुख्य मुद्दा बना रही है। इनमें पांच लाख सरकारी नौकरी, हर घरेलू महिला को ढाई हजार रुपये प्रति माह भत्ता, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, सीएए को रद्द करने वाला कानून और चाय बागान में काम करने वालों की दिहाड़ी में वृद्धि शामिल है।

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अंदरूनी खटपट

इस बीच कांग्रेस में घमासान भी है। महिला कांग्रेस की मुखिया सुष्मिता देव ने कांग्रेस से इस्तीफा देने की धमकी दी हैं। सुष्मिता की नाराजगी टिकट बंटवारे को लेकर है। बताया जा रहा था कि उनको उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया में उचित सम्मान नहीं मिला जिससे वह नाराज हैं।

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कुल 126 सीटें

असम में विधानसभा की 126 सीटें हैं और चुनाव में यहां किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। मौजूदा स्थिति में कांग्रेस के 25 विधायक हैं, भाजपा के 61 और उसके सहयोगी असम गण परिषद के 14 और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के 12 सदस्य हैं। एआईयूडीएफ के 13 हैं और एक निर्दलीय सदस्य भी है। असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के समर्थन से भाजपा ने सरकार बनाई है।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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