HC ने एंटी रोमियो स्क्वाॅयड के गठन को ठहराया संवैधानिक, जरूरत पड़ने पर बने कानून

इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने महिलाओं से छेड़खानी की घटनाओं पर विराम लगाने के लिए योगी सरकार के निर्देश पर एंटी रोमियो स्क्वाॅयड के गठन को संवैधानिक बताते हुए गुरुवार (30 मार्च) को मुहर लगा दी है।

Update: 2017-03-30 15:34 GMT
HC ने एंटी रोमियो स्क्वाॅयड के गठन को ठहराया संवैधानिक, जरूरत पड़ने पर बने कानून

लखनऊ: इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने महिलाओं से छेड़खानी की घटनाओं पर विराम लगाने के लिए योगी सरकार के निर्देश पर एंटी रोमियो स्क्वाॅयड के गठन को संवैधानिक बताते हुए गुरुवार (30 मार्च) को मुहर लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई कानूनी या संवैधानिक अवरोध नहीं है। कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमिलनाडु और गोवा की तर्ज पर यूपी में भी कानून बनाने की वकालत की।

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यह आदेश जस्टिस ए पी साही और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने वकील गौरव गुप्ता की याचिका पर दिया। कोर्ट ने पुलिस के सादी वर्दी में जगह जगह छापेमारी कर महिलाओं से छेड़खानी करने वाले मजनुओें की वीडियो बनाने और उसे मीडिया, सोशल मीडिया पर वाइरल करने में कोई अवैधानिकता नही पाई।

कोर्ट ने याची की ऐसे पुलिस दलों के जरिए कार्यवाही करने पर रोक लगाने की मांग सिरे से खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि वास्तव में यह मोरल पुलिसिंग नहीं है। अपितु यह प्रिवेंटिव पुलिसिंग यानि ऐसी पुलिसिंग है जिसका काम महिलाओं के खिलाफ सरेआम छेड़खानी की घटनाओं को होने से पहले से ही रोकना है।

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याचिका दायर कर कहा गया कि एंटी रोमियो स्क्वाॅयड के जरिए पुलिस लोगों की प्राइवेसी भंग कर रही है और नवजवान जोड़ों को परेशान कर रही है। तर्क दिया गया कि संविधान ने सबको स्वछंद रूप से विचरण का अधिकार दिया है, लेकिन इस प्रकार गठित एंटी रोमियो स्क्वाॅयड इस अधिकार का हनन कर रहे हैं।

याची ने पुलिस दल का नामकरण एंटी रोमियो स्क्वाॅयड करने पर भी एतराज जताया कि इससे लोगों में भय व्याप्त हो रहा है। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते समय सरकार के खिलाफ सख्त रूख अपनाया और एसएसपी मंजिल सैनी को तलब किया कि वे बताएं किस नियम कानून के तहत इस प्रकार के स्क्वाॅयड का गठन किया गया है और किस नियम के तहत पुसिल वाले सादी वर्दी में जगह-जगह छापेमारी कर रहे हैं।

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कोर्ट के आदेश के अनुपालन में एसएसपी मंजिल सैनी दो बजे हाजिर हुईं। सरकारी वकील के जरिए उन्होंने कोर्ट को बताया कि महिलाओं के खिलाफ ज्यादती व छेड़खानी की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए पुलिस का ऐसा कार्य सीआरपीसी, आईपीसी, पुलिस एक्ट और पुलिस रेगुलेशन के प्रावधानों के तहत बिल्कुल जायज और कानूनी है।

उन्होंने डीजीपी के दिशानिर्देश और स्वयं की ओर से जारी ऑफिस मेमेारेंडम को भी कोर्ट में पेश किया। जिसमे साफ-साफ था कि किसी पर किसी प्रकार की ज्यादती न होने पाए। कहा गया कि पुलिस को महिलाओं के खिलाफ घटनाओं को रोकने के लिए विजिलेंट होने का पूरा पूरा अधिकार है।

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तर्क दिया गया कि राज्य सरकार और पुलिस ने किसी कानून या संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नही किया है अपितु वर्तमान सरकार और पुलिस महिलाओं के लिए सुरक्षात्मक माहौल बनाने के लिए कटिबद्ध है।

सारी परिस्थितियों और कानूनी प्रावधानों से संतुष्ट होने के बाद कोर्ट ने कहा कि याची की मांग के समर्थन में कोई ठोस तर्क नहीं दे पाया। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी मामले में पुलिस की ज्यादती सामने आती है तो विक्टिम के लिए कानून के दरवाजे खुले हैं।

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याची के सूबे में पुलिस बल कम होने की बात कहने पर कोर्ट ने कहा कि वह इस याचिका की विषय वस्तु नहीं है। फिर भी कोर्ट ने सरकार से पुलिस बल बढ़ाने की मंशा जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु में 1998 में महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए कानून बनाया गया है और गोवा में भी 2013 में भी कुछ ऐसा ही कानून है। इसकी तर्ज पर प्रदेश में भी जरूरत पड़ने पर कानून बनाया जा सकता है।

कोर्ट ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए कहा कि सरकार कानून और डीजीपी की ओर से जारी दिशानिर्देशों का उचित पालन करवाए और यह भी देखे कि यदि ज्यादती की घटनाएं सामने आती है तो उस पर भी कार्यवाही करें। कोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस दल के नामकरण पर आपत्ति है तो सरकार उसे बदलने को स्वतंत्र है।

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