पांच राज्यों के चुनावः भाजपा के लिए बनेंगे संजीवनी या वाटरलू
असम की बात करें तो बीजेपी यहां एजीपी और यूपीपीएल के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। माना जा रहा है कि राज्य की कुल 126 सीटों में से 25 सीटें असम गण परिषद के खाते में जा सकती हैं जबकि यूपीपीएल को 12 सीटें मिल सकती है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: पांच राज्यों के होने जा रहे विधानसभा चुनाव में पूरे देश की निगाहें भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन पर टिकी हैं। यदि भाजपा इन चुनावों में कुछ कर पाती है तो निश्चय ही पार्टी के लिए इन चुनावों के नतीजे संजीवनी का काम करेंगे और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को तमाम मुसीबतों और विरोध से राहत मिल जाएगी, लेकिन अगर नतीजे विपरीत आए तो भाजपा के नेतृत्व के लिए खतरे की घंटी होंगे। साथ ही सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे विपक्ष और किसानों को मजबूती मिलेगी।
पश्चिम बंगाल में हालांकि भाजपा को 2016 के विधानसभा चुनाव में कुल 294 सीटों में मात्र तीन सीटें मिली थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने अभूतपूर्व सफलता हासिल करते हुए 18 सीटों पर जीत हासिल की थी और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटों पर रोक दिया था।
बंगाल में बीजेपी को मिले 40 फीसदी वोट
लोकसभा चुनाव के नतीजों को अगर विधानसभा सीटों के नजरिये से देखें तो 121 विधानसभा सीटों पर भाजपा को बढ़त थी और 164 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस को बढ़त थी। भाजपा को 40 फ़ीसद वोट मिला था तो दूसरी तरफ़ टीएमसी को 43 फ़ीसद ही वोट मिला था। यानी दोनों दलों के बीच केवल तीन फ़ीसद वोट का अंतर था।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने ही भाजपा का मनोबल बढ़ाया है कि वह पश्चिम बंगाल में सरकार बना सकती है। इसी लिए पिछले दो साल से भाजपा पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत लगाए हुए है। इस बार भी भाजपा सभी 294 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर कर रही है।
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टीएमसी के समर्थन में शिवसेना
हालांकि पश्चिम बंगाल में बदलाव की बयार को महसूस करते हुए इस बार के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के समर्थन में शिवसेना भी यहां उतरी है और राजद भी लेकिन शिवसेना ने इसके साथ ही एलान किया है कि वह अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी। यानी उसका मकसद यहां भाजपा के वोट काटना है। जबकि राजद को उम्मीद थी कि ममता बिहारियों की बहुलता वाली कुछ सीटें उन्हें दे सकती हैं, लेकिन ममता ने इससे इंकार कर दिया है।
75 सीटों पर चुनाव में उतरने का एलान तो जनता दल यू ने भी किया है, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि भाजपा इसे तवज्जो देगी। हालांकि भाजपा ने अभी यहां 57 लोगों की सूची ही जारी की है।
राष्ट्रीय राजनीति और प्रादेशिक राजनीति के समीकरण अलग
हालांकि लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा को सफलता मिली थी, लेकिन जानकारों का कहना है कि राष्ट्रीय राजनीति और प्रादेशिक राजनीति के समीकरण अलग होते हैं। भाजपा ममता बनर्जी को जितना कमजोर समझने की भूल कर रही है वास्तव में उसकी जड़ें उससे कहीं गहरी हैं। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस से निकले लोगों को लगातार भरकर भाजपा टीएमसी की बी टीम बन गई है। नतीजों पर इसका असर पड़ सकता है। फिलहाल लोग भाजपा के मुकाबले ममता बनर्जी की स्थिति मजबूत मान रहे हैं।
असम की बात करें तो बीजेपी यहां एजीपी और यूपीपीएल के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। माना जा रहा है कि राज्य की कुल 126 सीटों में से 25 सीटें असम गण परिषद के खाते में जा सकती हैं जबकि यूपीपीएल को 12 सीटें मिल सकती है।
वहीं, बाकी बची 89 सीटों पर भाजपा खुद चुनाव मैदान में उतरेगी। 2016 का चुनाव भाजपा, एजीपी और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने मिलकर लड़ा था। भाजपा ने 84 सीटों पर चुनाव लड़कर 60 सीटें जीती थीं, असम गण परिषद ने 24 सीटों पर चुनाव लड़कर 14 सीटें जीती थीं जबकि बीपीएफ ने 16 सीटों पर लड़कर 12 सीटें जीती थी।
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इस बार बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट भाजपा नीत गठबंधन से नाता तोड़कर कांग्रेस खेमे में आ गई है। इसके चलते भाजपा ने संतुलन साधने के यूपीपीएल को अपने साथ मिला लिया है। कुल मिलाकर असम में भाजपा की स्थिति मजबूत दिखायी दे रही है।
तमिलनाडु में भाजपा अद्रमुक के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरेगी, जिसके लिए दोनों दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर रस्साकशी जारी है। लेकिन भाजपा की 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की मंशा के विपरीत अद्रमुक पार्टी को 20-21 से ज्यादा सीटें देने को राजी नहीं है। जबकि पीएमके को वह 23 सीटें देने को तैयार है।
इसके अलावा तमिलनाडु में शशिकला के सक्रिय राजनीति से अलग हो जाने से भी भाजपा को झटका लगा है। इससे पहले रजनीकांत ने भी सक्रिय राजनीति में आने से मना कर दिया था। जिसके बाद अमित शाह को यह कहना पड़ा था कि हमने बेकार ही तमिलनाडु में छह महीने गंवाए।
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पुडुचेरी में भाजपा की स्थिति मजबूत
पर्यवेक्षक तमिलनाडु में सत्ता विरोधी रुझान को देखते हुए द्रमुक कांग्रेस गठबंधन को भाजपा अन्नाद्रमुक गठबंधन पर भारी बता रहे हैं। ऐसे में स्थितियां इस राज्य में भाजपा के लिए संतोषजनक नहीं कही जा सकती हैं। अलबत्ता पुडुचेरी में भाजपा की स्थिति मजबूत है, लेकिन अन्नाद्रमुक के सभी सीटों पर लड़ने के एलान का असर पार्टी पर पड़ सकता है। हालांकि केंद्र शासित प्रदेश में पूरी ताकत झोंकते हुए पार्टी चुनाव अभियान में अपने 10 स्टार प्रचारकों को उतार रही है।
केरल में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। केरल में चुनाव जीतना वोट प्रतिशत बढ़ने के बावजूद अभी भाजपा के लिए दूर की कौड़ी है। ऐसे में पांच राज्यों के चुनाव में असम व पुडुचेरी ही भाजपा को जीत दिलाते देख रहे हैं जबकि पं. बंगाल में अच्छी बढ़त के बावजूद भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार कम ही दिखायी दे रहे हैं।
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