महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनना तय

महाराष्ट्र में दावे चाहे जो किए जाएं मगर वहां भाजपा का सरकार बनना तय है। उसमें समय कितना लगेगा, यह कहना तो अभी मुश्किल है, पर भाजपा ने वहां सरकार बनाने के लिए दो तरफ से चालें चलनी शुरू कर दी हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2019-11-21 17:18 IST

लखनऊ: महाराष्ट्र में दावे चाहे जो किए जाएं मगर वहां भाजपा का सरकार बनना तय है। उसमें समय कितना लगेगा, यह कहना तो अभी मुश्किल है, पर भाजपा ने वहां सरकार बनाने के लिए दो तरफ से चालें चलनी शुरू कर दी हैं। भाजपा ने सूबे में सरकार बनाने के लिए शरद पवार की एनसीपी से बातचीत शुरू कर दी है। इसके लिए सुप्रिया सुले एनसीपी की ओर से काम कर रहीं हैं। इस बातचीत की शुरुआत प्रधानमंत्री के शरद पवार की तारीफ के पहले ही हो चुकी है।

शिवसेना में बगावत की भूमिका तैयार दूसरी कोशिश शिवसेना में सेंधमारी की कोशिश के साथ तीन दिन पहले शुरू हो गयी थी। शिवसेना के लिए अपने विधायकों को बांध कर रख पाना अब मुश्किल हो रहा है। शिवसेना में बड़ी बगावत की भूमिका तैयार हो चुकी है। उधर कांग्रेस की शिवसेना से बातचीत खटाई में पड़ती नजर आ रही है। इसका कारण शिवसेना में टूट का अंदेशा है।

खतरा नहीं मोल लेना चाहती कांग्रेस कांग्रेस महाराष्ट्र में कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती है। इसलिए वह किसी फैसले की घोषणा से पहले ठोंक बजाकर यह देख लेना चाहती है कि सरकार बनाने की गणित पूरी है या नहीं। शिवसेना के लिए यह भरोसा दिला पाना मुश्किल हो रहा है। यही नहीं भाजपा इस कोशिश में भी है कि किस तरह कांग्रेस में एक बंटवारा महाराष्ट्र विधायकों के बीच करवा दिया जाए। इसके लिए कृपाशंकर सिंह ने कमान संभाल रखी है।

गौरतलब है कि 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में भाजपा को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी 54, कांग्रेस को 44, निर्दलीय को 13, एआईएमआईएम को 2, बहुजन विकास अघाड़ी को 3, माकपा को 1, जनसुराज्य शक्ति को 1, क्रांतिकारी शेतकरी पार्टी को 1, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को 1, पीजैंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया को 1, प्रहर जनशक्ति पक्ष को 2, राष्ट्रीय समाज पक्ष को 1, समाजवादी पार्टी को 2 और स्वाभिमानी पक्ष को 1 सीट पर जीत हासिल हुई है।

कांग्रेस और शिवसेना पुराना याराना वैसे कांग्रेस और शिवसेना का याराना पुराना है। बीजेपी से सिर्फ उसका तीस साल पुराना रिश्ता है। जबकि कांग्रेस से उसका काफी पुराना रिश्ता है। राष्ट्रपति पद के चुनाव में शिवसेना ने प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। प्रतिभा देवी पाटिल के साथ भी शिवसेना खड़ी थी। ये दोनों कांग्रेस के उम्मीदवार थे। मुखर्जी के सामने एनडीए ने पीए संगमा को उम्मीदवार बनाया था। जबकि प्रतिभा पटिल के सामने भैरव सिंह शेखावत प्रत्याशी थे।

ठाकरे ने किया था आपातकाल का समर्थन शिवसेना ने 1975 में आपातकाल का भी समर्थन किया था। बाल ठाकरे ने आपातकाल को साहसिक कदम बताते हुए इंदिरा गांधी को बधाई दी थी। मुंबई राजभवन में वह इंदिरा गांधी से मिलने गए थे। 1977 के लोकसभा चुनाव में भी शिवसेना कांग्रेस के साथ खड़ी थी। इसी साल मुंबई के मेयर के चुनाव में शिवसेना ने कांग्रेस उम्मीदवार मुरली देवड़ा को जितवाने में मदद की थी।

1960 के मध्य में शिवसेना की स्थापना बाल ठाकरे ने की थी। उस दौर में समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस मुंबई के बड़े नेता थे। मजदूर संगठनों पर उनका कब्जा था। उन्होंने अजेय माने जाने वाले कांग्रेसी नेता एसके पाटिल को हराकर उनकी राजनीति खत्म कर दी थी। मुंबई के कामगार वर्ग में जार्ज के दबदबे को तोडऩे के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे वसंतराव नाइक ने बहुत मदद की थी।

उन दिनों शिवसेना को मजाक में वसंत सेना भी कहा जाता था। कई कांग्रेसी सीएम ने की शिवसेना की मदद नाइक के बाद शंकरराव चव्हाण, वसंत दादा पाटिल, शरद पवार, अब्दुल रहमान अंतुले, बाबा साहेब भोसले, शिवाजी राव पाटिल समेत कई कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने शिवसेना की भरपूर मदद की। कांग्रेस के साथ तालमेल करते हुए उन्होंने जिला परिषद, नगर पालिका और नगर निगम में जगह बनाई।

ऐसे में कांग्रेस और शिवसेना को एक-दूसरे के लिए अछूत बताने वालों के लिए यह जानना जरूरी है कि दोनों के साथ आने से शिवसेना के हिंदूवादी और कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष चेहरे पर कोई असर नहीं पडऩ वाला है। शिवसेना का मराठी मानुष भी खतरे में नहीं पड़ेगा।

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