भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले का इस्तीफा, बगावत की शुरुआत या अंत

बीते कई महीनों से भारतीय जनता पार्टी को असहज करती आ रही बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले ने डाॅ. भीम राव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया है। लेकिन भाजपा के लिए यह एक दिक्कत का सबब है कि आखिर सावित्री बाई फुले ने जो सिलसिला शुरू किया है वह यहीं विराम लेगा या फिर और आगे बढ़ता जाएगा।

Update: 2018-12-06 14:44 GMT

योगेश मिश्र

लखनऊ: बीते कई महीनों से भारतीय जनता पार्टी को असहज करती आ रही बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले ने डाॅ. भीम राव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया है। लेकिन भाजपा के लिए यह एक दिक्कत का सबब है कि आखिर सावित्री बाई फुले ने जो सिलसिला शुरू किया है वह यहीं विराम लेगा या फिर और आगे बढ़ता जाएगा। क्योंकि सावित्री बाई फुले ही नहीं और भी कई सांसद न केवल अपनी उपेक्षा से दुखी हैं, बल्कि अगले लोकसभा चुनाव में टिकट कटने के अंदेशों के मद्देनजर अपनी-अपनी जगह तलाश रहे हैं। इसमें कुछ वे सांसद हैं जो अपनी पुरानी पार्टी में लौटने का रास्ता तलाश रहे हैं।

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कुछ सूबे में गठबंधन के मद्देनजर अपनी हैसियत के मुताबिक अपने इलाके के मुफीद पार्टी के मुखिया के संपर्क में हैं। सावित्री बाई फुले अगली बार गठबंधन की उम्मीदवार बने तो कोई हैरत नहीं होना चाहिए। उनके चाचा दलितों की पार्टी- दलित मुक्ति मोर्चा पहले से चला रहे हैं। सांसद ही क्यों जिस तरह ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा और राज्य सरकार के खिलाफ फ्रंट खोल रखा है। उससे भी साफ है कि राजभर अपने लिए मुकाम पक्का कर चुके हैं। भाजपा के दलित सांसद उदित राज की इन दिनों की बयानबाजी और रामविलास पासवान के मौसम के मिजाज की समझ के बाद भाजपा की दबे छुपे ही सही आलोचना या चुंगली करती है कि यह सिलसिला थमने वाला नहीं।

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इटावा के सांसद अशोक दोहरे के लिए भी पार्टी में रहना अब भारी पड़ रहा है। वे पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा से भाजपा में आये थे। बसपा सरकार में वह विधायक व मंत्री भी रहे। हालांकि सावित्री बाई फुले भी मूलतः बसपा की है। 14 साल की उम्र में बहराइच में इन्होंने मायावती की एक रैली में भाषण किया था। उसी समय इन्होंने बसपा ज्वाइन किया। लेकिन वर्ष 2000 में मायावती ने उन्हें निलंबित कर दिया। वर्ष 2001 में जिला पंचायत का चुनाव लड़ीं। 2002, 2007 और 2012 में वह लगातार भाजपा के टिकट पर बलहा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनती रहीं। 2012 में विधायक बनी और 2014 में लोकसभा का सदस्य बन गईं। सावित्री बाई फुले नमो बुद्ध जनसेवा समिति संचालित करती हैं। इन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान को ढकोसला बताया था। अयोध्या के विवादित स्थल पर बुद्ध की प्रतिमा लगाने की वकालत की थी।

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उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार पर हमला करते हुए यहां तक कहा कि बाबा साहब ने भारत के संविधान में बहुजन समाज के लिए जो व्यवस्था दी है। उसकी आज धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। संविधान और आरक्षण के साथ जिस तरह छेड़छाड़ हो रही है उसके खिलाफ हम सब को आगे आना चाहिए। उन्होंने इस बात पर पीड़ा जताई कि उन्हें सांसद न कह कर दलित सांसद कहा जाता है। योगी सरकार में पिछड़ों की उपेक्षा पर दिव्यांग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर के बयान को सही ठहराया था। उन्होंने एक बयान यह भी दिया था कि अगर मुझे सम्मान मिला होता तो पार्टी के खिलाफ आंदोलन नहीं करतीं। गरीबी-भुखमरी जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए जानबूझ कर जिन्ना जैसे मुद्दे उछाले जाते हैं। उन्होंने केंद्र सरकार को दलित विरोधी भी कई बार ठहराया है।

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