कांग्रेस में प्रियंका की ताजपोशी चाहते थे पीके, राहुल गांधी के वफादारों को मंजूर नहीं था प्रस्ताव

Congress Politics: पीके का यह महत्वपूर्ण सुझाव पार्टी में राहुल गांधी के वफादारों को मंजूर नहीं था। पीके और कांग्रेस के बीच बात बनते-बनते बिगड़ने के पीछे इसे महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Monika
Update: 2022-04-27 05:43 GMT

प्रियंका गांधी-प्रशांत किशोर (photo: social media )

Congress Politics: कई दौर की बातचीत और मुलाकात के बाद एक बार फिर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और कांग्रेस (Congress) के बीच बात नहीं बन सकी। इस बार कांग्रेस नेतृत्व और पीके के बीच बातचीत आखिरी दौर तक पहुंच गई थी मगर पीके ने 2024 की सियासी जंग को लेकर जो ताना-बाना बुना था उस पर मुहर नहीं लग सकी। कांग्रेस और पीके के बीच बात न बन पाने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं मगर इनमें एक सबसे बड़ा कारण कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi)  को लेकर जुड़ा हुआ है। पीके चाहते थे कि प्रियंका गांधी को पार्टी में फ्रंट फुट पर बैटिंग करने का मौका मिलना चाहिए और उन्हें पार्टी की कमान सौंपी जानी चाहिए।

उत्तर प्रदेश में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में प्रियंका की सक्रियता के बावजूद कांग्रेस को मजबूती नहीं मिल सकी थी मगर पीके का मानना था कि प्रियंका को अध्यक्ष बनाने पर राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को बड़ा सियासी फायदा हो सकता है। पीके का यह महत्वपूर्ण सुझाव पार्टी में राहुल गांधी के वफादारों को मंजूर नहीं था। पीके और कांग्रेस के बीच बात बनते-बनते बिगड़ने के पीछे इसे महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है।

लीडरशिप की समस्या की ओर इशारा

2024 की सियासी जंग के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (कांग्रेस में प्रियंका की ताजपोशी चाहते थे पीके, राहुल गांधी के वफादारों को मंजूर नहीं था प्रस्तावSonia Gandhi) की ओर से एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 से बनाया गया है मगर पीके ने इस ग्रुप का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। इस प्रस्ताव को ठुकराने के साथ प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेतृत्व को नसीहत भी दे डाली है। उनका मानना है कि पार्टी अंदरूनी समस्याओं से जूझ रही है और इन समस्याओं से निजात पाने के लिए पार्टी को मुझसे ज्यादा लीडरशिप और मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

अपनी इस टिप्पणी के जरिए पीके ने कांग्रेस में लीडरशिप की समस्या की ओर स्पष्ट इशारा किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष के सहारे चल रही है। 2019 की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और सोनिया को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। देश की सबसे पुरानी पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस में 2019 के बाद अभी तक स्थायी अध्यक्ष का चुनाव नहीं किया जा सका। अब अगले चुनाव में एक बार फिर अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की ताजपोशी तय मानी जा रही है।

अध्यक्ष के रूप में प्रियंका की वकालत

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पीके पार्टी में बड़े बदलाव के पक्षधर थे। उनका कहना था कि पार्टी में संगठनात्मक रूप से व्यापक बदलाव किया जाना चाहिए। वे प्रियंका गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की वकालत भी कर रहे थे मगर कांग्रेस में सोनिया और राहुल के वफादारों का प्रभावशाली ग्रुप इसके लिए तैयार नहीं था। पीके की ओर से सुझाए गए कई बिंदुओं पर प्रियंका गांधी पूरी तरह सहमत थीं मगर केसी वेणुगोपाल, एके एंटनी, अंबिका सोनी और दिग्विजय सिंह जैसे नेता कई प्रस्तावों को पूरी तरह मानने के लिए तैयार नहीं थे।

पीके की ओर से पार्टी पदाधिकारियों के लिए फिक्स्ड टर्म का भी सुझाव दिया गया था और यह प्रस्ताव भी राहुल के कई करीबियों को मंजूर नहीं था। राहुल के कई करीबी बरसों से महत्वपूर्ण पदों पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं और इस प्रस्ताव को मानने के बाद उन्हें अपने पद छोड़ने पड़ते। दोनों पक्षों के बीच बात बिगड़ने का इसे भी प्रमुख कारण माना जा रहा है।

पीके का फार्मूला मंजूर नहीं

प्रशांत किशोर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच पिछले साल भी कई दौर की बातचीत हुई थी और उनकी कांग्रेस में एंट्री तय मानी जा रही थी मगर पिछले साल भी बात बनते-बनते बिगड़ गई थी। उस समय भी कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को पीके की एंट्री के बाद अपनी अहमियत कम होने का खतरा महसूस हो रहा था। हाल में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रशांत किशोर ने एक बार फिर कांग्रेस नेतृत्व को प्रेजेंटेशन के जरिए पार्टी को मजबूत बनाने की सलाह दी।

इस बार की बातचीत पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा गंभीर मानी जा रही थी और इसी कारण पीके की कांग्रेस में एंट्री मानी जा रही थी मगर आखिरकार इस बार भी बात नहीं बन सकी। दरअसल पीके ने पार्टी में बदलाव का जो फार्मूला रखा था और वे पार्टी को मजबूत बनाने में अपनी जो भूमिका चाहते थे, उसे लेकर पार्टी में सहमति नहीं बन सकी और इसी कारण पीके ने कांग्रेस से किनारा करने में ही भलाई समझी।

गांधी परिवार में भी सहमति नहीं

कांग्रेस के कई नेताओं का कहना है कि पीके को लेकर गांधी परिवार में भी सहमति नहीं थी। प्रशांत किशोर और उनके सुझावों को लेकर राहुल गांधी खुद सहज नहीं थे। काबिले गौर बात यह है कि प्रशांत किशोर का पार्टी में विरोध करने वाले अधिकांश नेता राहुल गांधी के करीबी और उनके भरोसेमंद माने जाते हैं। इस बार प्रशांत किशोर की कांग्रेस नेतृत्व के साथ कई दौर की बैठक हुई थी मगर राहुल गांधी इनमें से सिर्फ एक बैठक में ही मौजूद थे।

दूसरी और प्रियंका गांधी ने पीके की हर बैठक में हिस्सा लिया और वे उनके सुझावों से सहमत नजर आईं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी पीके के सुझावों को लेकर बहुत सहमत नहीं थीं। इस तरह पीके की कांग्रेस में एंट्री और उनके सुझावों को लेकर गांधी परिवार में ही पूरी तरह सहमति नहीं बन सकी और ऐसे में पीके ने कांग्रेस से किनारा करने का ही बड़ा फैसला ले लिया।

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