पायलट के लिए आसान नहीं होगी बीजेपी की डगर, कदम-कदम पर बिछे हैं कांटे
कांग्रेस ने काफी मान मनौव्वल के बाद उनके लिए पार्टी के दरवाजे लगभग पूरी तरह से बंद कर लिए हैं। सचिन पायलट के बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं।
जयपुर: राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत से खींचतान के बाद सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है।
कांग्रेस ने काफी मान मनौव्वल के बाद उनके लिए पार्टी के दरवाजे लगभग पूरी तरह से बंद कर लिए हैं। सचिन पायलट के बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं।
हालांकि वे पहले ही कह चुके हैं कि वे बीजेपी में नहीं जायेंगे। ऐसे में सवाल उठाता है पायलट का अगला कदम क्या होगा? सवाल ये भी उठ रहा है कि पायलट के इनकार के बावजूद उन्हें पार्टी में लेने के लिए लालायित खड़ी बीजेपी के लिए क्या वाकई ये सब कुछ इतना आसान होगा? क्या बीजेपी में बगावत नहीं हो जाएगा? आइये विस्तार से इन सभी बातों को समझने की कोशिश करते हैं:-
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क्या कहा पायलट ने?
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किए जाने के बाद सचिन पायलट ने अपनी चुप्पी तोड़ दी है। पायलट ने कहा कि मैं सौ बार कह चुका हूं कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ज्वॉइन नहीं कर रहा हूं। पिछले पांच साल के दौरान मैंने बीजेपी के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है।
सचिन पायलट ने कहा कि मैं राजस्थान कांग्रेस का हिस्सा रहते हुए बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और राजस्थान में कांग्रेस बनवाई है। अगर कोई व्यक्ति या पार्टी राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है तो यह नहीं माना जा सकता है कि मैं उनसे जुड़ जाऊंगा।
क्या है बीजेपी का रुख
दरअसल कांग्रेस सरकार के ऊपर छाए संकट के बादलों पर भारतीय जनता पार्टी वेट एंड वॉच की मुद्रा में है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि अगली कार्रवाई की योजना पर निर्णय लेने से पहले भाजपा, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शक्ति प्रदर्शन के परिणाम का इंतजार करेगी।
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सीएम पद के लिए बीजेपी में भी बढ़ सकता है टकराव
सियासी जानकारों के मुताबिक अगर मान लें कि सचिन पायलट बीजेपी में शामिल हो जाते हैं और उनके चेहरे पर बीजेपी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पटकनी दे दी, तो बीजेपी के सामने सबसे बड़ी समस्या होगी, बीजेपी का मुख्यमंत्री कौन होगा- वसुंधरा राजे सिंधिया या गजेंद्र सिंह शेखावत या फिर बीजेपी का कोई दूसरा दिग्गज।
जानकार कहते हैं कि राजस्थान में जिस तरह की राजनीति आज देखने को मिल रही है, वो कांग्रेस के लिए भले ही आज एक काला अध्याय हो, लेकिन आने वाले दिनों में बीजेपी के लिए भी सिरदर्द बन सकती है।
उनके लिए पायलट को साथ लेकर चलना आसान नहीं होगा, पायलट की विचार धारा कांग्रेस की सोच को दर्शाती है जबकि बीजेपी का हिंदुत्व को। ऐसे में बीजेपी में पायलट के लिए भी काम करना आसान नहीं होगा।
वसुंधरा राजे का कद आयेगा आड़े
बताते चले कि वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान में दो बार सीएम रह चुकी हैं और बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में उनकी गिनती होती हैं। कई बार बीजेपी नेतृत्व ने वसुंधरा राजे को दरकिनार करना चाहा लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी।
बात वर्ष 2008 की है जब विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजनाथ सिंह के अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने ये निर्णय लिया था कि वसुंधरा राजे को नेता विपक्ष पद छोड़ना होगा, उसके बाद तत्कालीन 78 विधायकों में से 63 विधायकों ने दिल्ली में राजनाथ सिंह के घर के बाहर पार्टी के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया था।
साथ ही वसुंधरा राजे ने 8 महीने तक राजनाथ सिंह के बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए नेता विपक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया था।
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राजे के खिलाफ अमित शाह भी भी नहीं ले पाएंगे एक्शन
ऐसा कहा जाता है वसुंधरा राजे के खिलाफ एक्शन लेने से पहले बीजेपी के बड़े -बड़े नेता भी सौ बार सोचते हैं। फिर चाहे वो अमित शाह ही क्यों न हो। शाह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने एक बार वसुंधरा राजे के खिलाफ एक्शन लेने के बारे में सोचा था लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए थे।
मामला कुछ यूं है कि जब नितिन गडकरी बीजेपी अध्यक्ष बने थे तो साल 2013 में वसुंधरा राजे को फिर से सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ा गया, तो बीजेपी ने दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई। साल 2014 में बीजेपी में अटल-आडवाणी अध्याय खत्म हो गया और मोदी व अमित शाह युग की शुरुआत हुई।
साल 2018 के विधानसभा चुनाव आते-आते वसुंधरा राजे और अमित शाह के बीच बहुत कुछ ठीक नहीं रहा और 2018 के चुनाव से पहले अमित शाह गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन वसुंधरा राजे के विरोध के बाद अमित शाह भी गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना पाए थे।
उस समय राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर ने रास्ता निकाला था। इसके बाद मदन सैनी को राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनी थी।
अब यह देखना बेहद महत्वपूर्ण होगा कि अशोक गहलोत की सरकार गिरती है, तो बीजेपी किसके सिर पर सेहरा बांधती है। अगर बीजेपी ने वसुंधरा राजे के अलावा किसी और के सिर पर सेहरा बांधा, तो वसुंधरा राजे के लगभग 50 से ज़्यादा समर्थक विधायक पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। पार्टी में बगावत भी शुरू हो सकती है।
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