Mayawati Birthday: चार बार संभाली यूपी की कमान, 2024 के चुनाव में ताकत दिखाने की बड़ी चुनौती

Mayawati Birthday: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की गिनती आज देश के प्रमुख सियासी नेताओं में की जाती है। मायावती चार बार मुख्यमंत्री के रूप में यूपी की कमान संभाल चुकी हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2023-01-15 07:05 IST

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती: Photo- Social Media

Mayawati Birthday: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती (Mayawati) की गिनती आज देश के प्रमुख सियासी नेताओं में की जाती है। बसपा के संस्थापक काशीराम से प्रभावित होने के बाद सियासी मैदान में उतरने वाली मायावती चार बार मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की कमान संभाल चुकी हैं। 15 जनवरी 1956 को पैदा होने वाली मायावती का आज 67वां जन्मदिन है। मायावती के जन्मदिन पर बसपा हमेशा शक्ति प्रदर्शन करती रही है और इस बार भी पार्टी की ओर से राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश भर में कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी है।

राजनीति के मैदान में सक्रिय होने के बाद से ही मायावती प्रमुख सियासी किरदार बनी हुई है। दलित वोट बैंक पर मायावती की मजबूत पकड़ मानी जाती रही है और इसी कारण मायावती हर चुनाव में काफी अहम फैक्टर बनकर उभरती रही हैं। वैसे पिछले एक दशक से मायावती अपनी सियासी ताकत दिखाने में नाकाम साबित हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी बसपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था। समर्थकों के बीच बहन जी के नाम से जानी जाने वाली मायावती ने इसी कारण अभी से ही 2024 की सियासी जंग की तैयारियां शुरू कर दी हैं। माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती की सियासी ताकत की अग्निपरीक्षा होनी है।

इस तरह सियासी मैदान में उतरीं मायावती

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ था। मायावती के पिता का नाम प्रभुदयाल और मां का नाम रामरती था। मायावती का पैतृक गांव बादलपुर उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में स्थित है। मायावती 6 भाई और दो बहन हैं। मायावती की मां ने अनपढ़ होने के बावजूद अपने बच्चों की पढ़ाई में खासी दिलचस्पी ली। मायावती ने 1975 में दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद 1976 में उन्होंने गाजियाबाद के वीएमएलजी कॉलेज से बीएड की डिग्री ली। बाद में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की।

शिक्षा पूरी करने के बाद मायावती ने शिक्षिका के रूप में भी काम किया मगर इसी दौरान मायावती की मुलाकात कांशीराम से हुई जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। मायावती के पिता उन्हें आईएएस बनाना चाहते थे और वे अपनी बेटी पर कांशीराम के इस असर को देखकर खुश नहीं थे मगर मायावती धीरे-धीरे काशीराम के मिशन के साथ जुड़ती चली गईं। बाद में उन्होंने सियासी मैदान में कदम रखा। सियासी मैदान में सक्रिय होने के बाद मायावती ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

चार बार संभाली यूपी की कमान

सियासी मैदान में उतरने के साथ ही मायावती ने महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। मायावती ने 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता। इसके बाद वे 1998, 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव जीतने में भी कामयाब रहीं। 1994 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं। उन्होंने भाजपा के सहयोग से 3 जून 1995 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। इसके बाद 18 अक्टूबर 1995 तक वे प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 21 मार्च 1997 को वे फिर दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनीं। मायावती को 3 मई 2002 को तीसरी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की अगुवाई में बसपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत दिखाई थी। 12 मई 2007 को चौथी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। मुख्यमंत्री के रूप में कानून व्यवस्था को लेकर मायावती ने काफी सख्त तेवर अपनाया था जिसकी आज तक मिसाल दी जाती है। इस तरह मायावती अभी तक सियासी नजरिए से काफी अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की चार बार कमान संभाल चुकी हैं।

2012 के चुनाव से कमजोर पड़ीं मायावती

उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती सियासी रूप से काफी कमजोर दिखी हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 224 सीटों पर जीत हासिल करके प्रदेश में सरकार बनाई थी जबकि बसपा 80 सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा को 47 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस 28 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी।

2017 का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए और भी खराब रहा। 2017 के चुनाव में भाजपा गठबंधन ने 324 सीटों पर जीत हासिल करके प्रचंड बहुमत हासिल किया था। भाजपा को 311 सीटों पर जीत मिली थी जबकि सहयोगी दलों अपना दल ने 9 और सुभासपा ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बसपा 19 सीटों पर सिमट गई थी।

2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती की कमजोर होती पकड़ पर पूरी तरह मुहर लगा दी। 2022 के चुनाव में भाजपा गठबंधन को 273 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि सपा गठबंधन 125 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस को दो सीटों पर कामयाबी मिली जबकि बसपा सिर्फ एक सीट ही जीत सकी।

लोकसभा चुनाव में भी नहीं दिखा सकीं दम

यदि लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो उससे भी साबित होता है कि मायावती की पकड़ लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा 20 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मोदी लहर ने ऐसा असर दिखाया कि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका। मायावती के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव बड़ा सियासी झटका था।

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। सपा से गठबंधन करने का मायावती को फायदा भी मिला और बसपा 2019 के चुनाव में 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। मायावती की जीत में सपा से हाथ मिलाने का भी खासा असर रहा,लेकिन चुनाव के बाद सपा से बसपा का गठबंधन टूट गया।

2024 में ताकत दिखाने की चुनौती

अब सभी सियासी दलों ने 2024 की सियासी जंग के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है। मायावती के सामने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बड़ी चुनौती होगी। दलित,मुस्लिम और अति पिछड़ा गठजोड़ मायावती की बड़ी ताकत रहा है मगर यदि प्रदेश के पिछले चुनावोंको देखा जाए तो यह वोट बैंक मायावती के हाथ से छिटकता दिख रहा है। प्रदेश के मौजूदा सियासी हालात को देखते हुए मायावती का किसी भी दूसरे राजनीतिक दल से गठबंधन होता नहीं दिख रहा है। सपा से उनका गठबंधन पहले ही टूट चुका है और भाजपा व कांग्रेस पर वे हमलावर रुख अपनाती रही हैं। ऐसे में मायावती के सामने अकेले दम पर अगले लोकसभा चुनाव में सियासी ताकत दिखाने की बड़ी चुनौती है।

दलित-मुस्लिम वोट बैंक को एक बार फिर अपने पाले में खींचने के लिए मायावती ने तैयारियां शुरू कर दी है। शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली की पार्टी में वापसी और इमरान मसूद को पार्टी से जोड़ना मायावती की इसी मुहिम का हिस्सा माना जा रहा है। हाल में अतीक अहमद की पत्नी ने भी बसपा का दामन थामा है। अपना जनाधार बढ़ाने के लिए मायावती 2024 के मास्टर प्लान पर काम शुरू कर दिया है। जातीय समीकरण साधने की दिशा में मजबूत कदम उठाते हुए मायावती ने पिछले दिनों विश्वनाथ पाल को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।

मायावती का युवाओं पर फोकस

2024 के मिशन में जुटी मायावती ने युवाओं को पार्टी से जोड़ने की तैयारी में भी जुट गई हैं। मायावती ने बसपा में 50 फ़ीसदी युवाओं की भागीदारी का आह्वान किया है। मायावती के भतीजे और बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद का कहना है कि जातीय अत्याचार खत्म करने के लिए मायावती ने बसपा में युवाओं को प्राथमिकता देने का फैसला किया है।

मिशन की सफलता के लिए उन्होंने बसपा में 50 फ़ीसदी युवाओं की भागीदारी का आह्वान किया है। मायावती की इस रणनीति से साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में बसपा में युवा नेताओं को प्राथमिकता मिलेगी। दरअसल मायावती युवा और नई पीढ़ी के मतदाताओं को लेकर भी सतर्क हो गई हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह वोटबैंक बसपा से दूर हो रहा है।

मायावती पर कैलाश खेर का विशेष गाना

बसपा की ओर से मायावती के जन्मदिन को जनकल्याणकारी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया है। लखनऊ में मुख्य कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही प्रदेश भर में प्रदेश भर के जिलों में भी इस मौके पर कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी है। मायावती के जन्मदिन के मौके पर बसपा की ओर से एक विशेष गाना भी रिलीज किया जाएगा। इस गाने को मशहूर सिंगर कैलाश खेर ने आवाज दी है। इस गाने में मायावती को जन नेता और आयरन लेडी बताया गया है।

एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक गाने में मायावती को साक्षात देवी और गौतम बुद्ध का अवतार तक बताया गया है। गाने में मायावती के शुरुआती दिनों की चुनौतियों का भी जिक्र किया गया है। इस गाने के बोल हैं नारी रतन के रूप में बहना बनके मसीहा आई। देश की सभी हस्तियों में बहना का पहला मुकाम है।

बसपा की केंद्रीय इकाई की ओर से सभी राज्य इकाइयों को निर्देश दिया गया है कि वे बहन जी के जन्मदिन के मौके पर कैलाश खेर की आवाज में रिलीज होने वाले इस गाने को जरूर बजाएं। बसपा की ओर से इससे पहले रिलीज किए गए गानों में भीमराव अंबेडकर और कांशीराम का भी जिक्र रहा करता था मगर यह गाना विशेष रूप से मायावती को केंद्र में रखकर ही तैयार किया गया है।

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