मोदी सुनामी: चौकीदार को सेवा विस्तार
पहले की तरह इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इसे साबित कर दिखाया और पूरे देश में मोदी सुनामी का असर दिखा। फिर उनके पास अमित शाह जैसा सिपाहसालार भी है जो संगठन क्षमता के काफी कुशल खिलाड़ी हैं और सेना की व्यूहरचना इतनी बारीकी से करते हैं जिसमें विरोधी घुस ही नहीं पाते और सेना विरोधियों को ढेर करने में कामयाब हो जाती है।
राजनीति शास्त्र में पढ़ाया जाता है कि सारे एमपी मिलकर पीएम चुनते हैं मगर 2019 के चुनाव में एक पीएम ने अपने साथियों को एमपी बना दिया। मोदी ने इस चुनाव में लगे एक नारे मोदी है तो मुमकिन हैको सार्थक कर दिखाया। पीएम नरेन्द्र मोदी एक ऐसे सेनापति हैं जो जंग जीतने के लिए अपना सबकुछ झोंक देतेहैं। मोदी की यह खासियत है कि वे सारे विरोधियों से दो-दो हाथ करने को हमेशा तैयार रहते हैं और जंग को मोदी बनाम अन्य में बदल देते हैं। फिर अपनी सेना का नेतृत्व इतनी कुशलता से करते हैं कि सारे विरोधी ढेर हो जाते हैं।
पहले की तरह इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इसे साबित कर दिखाया और पूरे देश में मोदी सुनामी का असर दिखा। फिर उनके पास अमित शाह जैसा सिपाहसालार भी है जो संगठन क्षमता के काफी कुशल खिलाड़ी हैं और सेना की व्यूहरचना इतनी बारीकी से करते हैं जिसमें विरोधी घुस ही नहीं पाते और सेना विरोधियों को ढेर करने में कामयाब हो जाती है।
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पूरे देश में किया कमाल
यह मोदी के नेतृत्व का ही कमाल था कि भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर 55.4 फीसदी वोट पाने में कामयाब रही जबकि कांग्रेस को सिर्फ 9.4 मत ही मिले। बसपा को राष्ट्रीय स्तर पर 2.2 फीसदी मत मिले तो सपा काफी फिसड्डी साबित हुई और उसे सिर्फ 0.9 प्रतिशत वोट मिले। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस का किला दरक गया तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के किले में भाजपा ने सेंधमारी कर ली। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में विजय हासिल करने वाली कांग्रेस इन राज्यों में भी मोदी सुनामी के आगे ढेर हो गई।
यदि यूपी की बात की जाए तो सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद भाजपा जातीय संतुलन साधने में कामयाब रही। भाजपा को यूपी में 49.50 प्रतिशत वोट मिले। यदि यूपी में दूसरे दलों के प्रदर्शन को देखा जाए तो बसपा को 19.29 और सपा को 18.10 प्रतिशत वोट ही मिले। यूपी में प्रियंका के धुंआधार प्रचार के बावजूद कांग्रेस काफी पिछड़ गई और उसे सूबे में सिर्फ 6.23 फीसदी वोट मिले।
मोदी के नाम पर कमजोर प्रत्याशी भी जीते
पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान सारे विरोधियों के निशाने पर मोदी ही थे। राहुल व प्रियंका गांधी ही नहीं बल्कि मायावती, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, तेजस्वी यादव, शरद पवार सबके निशाने पर मोदी ही थे और मोदी ने अपनी जनसभाओं के जरिये सबको जवाब देते हुए अपने पक्ष में माहौल बनाने में कामयाबी हासिल की।
मोदी लोगों को यह बताना नहीं भूलते थे कि यदि आपने कमल निशान पर मोहर लगाया तो वह वोट सीधे-सीधे मोदी के खाते में जाएगा। यही कारण है कि कई क्षेत्रों के मतदाता अपने सांसदों से तो नाराज थे मगर उन्होंने मोदी के नाम पर वोट भाजपा को ही दिया। साथ ही मोदी के खिलाफ विरोधियों ने जो भी नकारात्मक प्रचार किया मोदी ने उसका विनम्रता में जवाब देते हुए सकारात्मकता में बदल दिया।
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राफेल व बेरोजगारी नहीं बन सकी मुद्दा
प्रचार अभियान की खास बात यह रही कि विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ कोई एजेंडा तय करने में पूरी तरह विफल रहा। लोकसभा चुनाव के पहले यह माना जा रहा था कि विपक्ष बेरोजगारी, महंगाई और राफेल के सवाल को लेकर मोदी की तगड़ी घेरेबंदी में कामयाब हो जाएगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राफेल को भ्रष्टाचार का बड़ा मामला बताते हुए अपनी सभाओं में नारा लगाना शुरू कर दिया चौकीदार चोर है। नरेन्द्र मोदी की खासियत ही यही है कि उन्हें हमलों का जवाब देना बखूबी आता है।
उन्होंने ट्विटर पर अपने नाम के आगे न केवल चौकीदार लिख लिया बल्कि उनकी देखादेखी भाजपा के सभी बड़े नेताओं व भाजपा समर्थकों ने अपने नाम के आगे चौकीदार लिखकर कांग्रेस को जवाब देना शुरू कर दिया। जब नरेंद्र मोदी ने ‘मैं भी चौकीदार’ कहकर हमला किया तब राहुल के नारे हवा में उड़ गए। रही सही कसर सुप्रीम कोर्ट ने उतार दी जब राहुल गांधी को इस मामले में माफी मांगने को कहा गया।राफेल के जरिये अनिल अंबानी को आर्थिक फायदा पहुंचाने का राहुल गांधी का आरोप मोदी ने ढेर कर दिया।
चुनावी नतीजे इस बात की तस्दीक करते हैं कि राफेल को लेकर राहुल के आरोप लोगों के गले नहीं उतरे और इस मुद्दे पर मोदी विरोधी अभियान की हवा निकल गई।
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पूरे चुनाव की धुरी बने रहे मोदी
पूरे चुनाव में चर्चा का केन्द्र बिन्दु मोदी ही बने रहे और यही भाजपा की जीत की बड़ी वजह रही। भाजपा भी यही चाहती थी कि पूरा चुनाव मोदी बनाम अन्य हो जाए। चुनाव के हर चरण के साथ ही मोदी की आक्रामकता बढ़ती गई। भारतीय सेना के नाम पर वोट मांगने से लेकर अभिनेता अक्षय कुमार के साथ उनके गैर राजनीतिक इंटरव्यू ने भी उन्हें चर्चा में बनाए रखा। दूसरी ओर विपक्षी नेताओं के चेहरे मीडिया में आए तो जरूर, लेकिन जनता को उनसे कोई मसाला नहीं मिला जो उसे अपनी ओर आकर्षित कर सके। विपक्ष के नेताओं के भाषणों में केवल नरेंद्र मोदी का विरोध था। जबकि नरेंद्र मोदी के भाषणों में किसी सुपरहिट फिल्म के जैसे सारे मसाले थे। मोदी ने अपने भाषणों में न केवल आक्रामकता दिखाई बल्कि विपक्ष के आरोपों का जवाब भी दिया।
विपक्ष को बता दिया महामिलावटी
चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने अपने भाषणों से भी मतदाताओं को प्रभावित करने में कामयाबी पाई। वे जिस भी लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने गए वहां की उल्लेखनीय बात का उन्होंने जिक्र जरूर किया। मोदी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत मेरठ से की और चुनाव प्रचार की शुरुआत में ही सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को महामिलावटी करार देते हुए उसे सराब की संज्ञा दे दी।
वे अपने भाषणों में लगातार इस बात का जिक्र करते रहे कि इन लोगों ने सिर्फ सत्ता हथियाने और मोदी को हटाने के लिए हाथ मिलाया है। मोदी की इन बातों का इतना असर हुआ कि मतदाता ने विपक्षी नेताओं की इन बातों पर भी गौर नहीं किया कि एनडीए भी कई दलों को मिलाकर बना है। अखिलेश लगातार अपने भाषणों में इस बात का जिक्र करते रहे मगर लोगों ने उनकी बातों पर गौर नहीं फरमाया।
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जातीय संतुलन साधने में कामयाबी
मोदी व शाह की जोड़ी की कामयाबी का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि जातीय समीकरण वाले दो बड़े हिन्दी भाषी राज्यों यूपी और बिहार में विपक्ष भाजपा के सामने ढेर हो गया। मोदी ने अपनी कई सभाओं में इस बात का भी जिक्र किया कि मुझे इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि मैं पिछड़ी जाति का हूं। इसके बाद मायावती ने इस आशंका से कि कहीं पिछड़े मोदी के साथ गोलबंध न हो जाएं, यह कहना शुरू किया कि मोदी ने खुद ही अपनी जाति को पिछड़ी जाति में शामिल कराया।
नतीजे बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव व 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा न केवल पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने में कामयाब हुई बल्कि उसने कई सीटों पर सपा के परंपरागत वोट बैंक यादव व बसपा के परंपरागत दलित वोट बैंक में भी सेंधमारी की। यही कारण है कि भाजपा यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद एनडीए 61 सीटों पर परचम फहराने में कामयाब हुई।
मजबूत नेता की छवि
इस बार के चुनाव में मोदी लोगों में यह धारणा बनाने में कामयाब रहे कि वे मजबूत नेता हैं और पूरी मजबूती से सरकार चलाने में सक्षम हैं। चुनाव से पहले पुलवामा हमले के बाद बालाकोट की एयरस्ट्राइक को भी उन्होंने चुनाव में भुना लिया। विपक्षी दल इसे लेकर मोदी की आलोचना करते रह गए मोदी खुद को मजबूत नेता साबित करने कामयाब हुए। उन्होंने लोगों को समझाया कि देश जिन स्थितियों से गुजर रहा है उनमें देश को लाचार नहीं बल्कि मजबूत सरकार की जरुरत है और यदि आप मजबूत सरकार चाहते हैं तो आप मुझे समर्थन दें। एयर स्ट्राइक को लेकर देश की जनता संतुष्ट दिखी कि भारत अब केवल हमले सहता नहीं है बल्कि पलटकर जवाब भी देता है।
योजनाओं का मिला भाजपा को फायदा
मोदी सरकार की योजनाओं का फायदा भी पार्टी को मिला। उज्ज्वला योजना के जरिये पार्टी पिछड़े इलाकों की महिलाओं का विश्वास जीतने में सफल हुई। मोदी सभाओं में इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाते रहे। इसके साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय योजना, आयुष्मान योजना, सौभाग्य आदि योजनाओं से काफी संख्या में लोग लाभांवित हुए। इन लोगों का समर्थन पाने से भाजपा का वोट प्रतिशत में काफी इजाफा हुआ। मोदी के साथ ही पार्टी के अन्य नेताओं ने मोदी सरकार की लाभकारी योजनाओं को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाया और उसे वोटों में तब्दील करने में कामयाबी पाई।
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विपक्ष का नेता नहीं बन सका चेहरा
मोदी की कामयाबी की बड़ी वजह यह भी रही कि विपक्ष के पास नेता का अभाव था। हर कोई जानना चाहता था कि विपक्ष के पास पीएम पद का कौन सा चेहरा मोदी के मुकाबले में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कई क्षेत्रीय दल पीएम मानने के लिए तैयार नहीं थे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर गैर कांग्रेसी मोर्चा बनाने में लगे थे तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सपा नेता अखिलेश यादव व बसपा मुखिया मायावती अलग सुर अलाप रहे थे। मायावती ने तो खुद को पीएम पद के लिए सबसे फिट उम्मीदवार तक बता डाला था।
चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी ने यह कहकर जनता को प्रभावित किया कि यदि विपक्ष को जीत मिली तो देश को हर सप्ताह नया पीएम मिलेगा। अमित शाह तो उनसे भी आगे निकल गए और उन्होंने यहां तक कह डाला कि सप्ताह के अलग-अलग दिन अलग-अलग पीएम होंगे। कोई मजबूत चेहरा न होने से लोगों का झुकाव मोदी की तरफ हुआ और काफी संख्या में वोट इस कारण भी मोदी की झोली में गिर गए।
शाह का गजब का प्रबंधन
मोदी के जादुई नेतृत्व के साथ ही इस चुनाव में भाजपा की विजय का एक बड़ा कारण अमित शाह का प्रबंधन और चुनावी गुणा-भाग भी रहा। चुनाव में भाजपा के रणनीतिकार और अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति एक बार फिर कारगर साबित हुई। लगातार काम, छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क, बेहतर बूथ मैनजमेंट, विपक्षी को उसी के मुद्दों पर जाकर घेरना और सही उम्मीदवारों का चयन एक बार फिर से भाजपा को केंद्र की सत्ता में ले आया।
अमित शाह ने गंभीर मंथन के बाद उम्मीदवारों का चयन किया और काम न करने वाले सांसदों का टिकट काटने में तनिक भी परहेज नहीं किया। बूथ स्तर के सम्मेलन आयोजित कर पार्टी के निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं को जोड़े रखा और उनके जरिये पार्टी को मतदाताओं तक पहुंचने में कामयाबी मिली। सरकार व संगठन के बीच काफी बेहतर ताल मेल दिखा और पार्टी ने सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने में सफलता पाई।
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मसूद अजहर पर प्रतिबंध
इस चुनाव में किस्मत भी मोदी पर ही मेहरबान थी। भारत में चुनाव प्रक्रिया के दौरान अंतररास्ट्रीय जगत की कुछ घटनाओं ने भी लोगों को प्रभावित किया। चुनाव प्रक्रिया के दौरान ही मोदी को दुनिया के कई बड़े पुरस्कार मिले। इसके साथ ही देश की जनता का नरेंद्र मोदी पर विश्वास उस समय और बढ़ गया जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने पाकिस्तानी आतंकी अजहर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी करार दिया। इसे भाजपा और नरेंद्र मोदी ने इस रूप में पेश किया कि यह सब उनके प्रयासों के कारण ही संभव हुआ। चीन को मनाने का श्रेय भी इन्हें ही मिला। भाजपा की रणनीति ही रही कि आम जनता के दिमाग से वह तथ्य भी गायब हो गया कि इसी अजहर मसूद को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने रिहा किया था।