Father-Son In Indian Politics: पार्टी पर भारी पुत्र मोह, किसी ने गवाईं सत्ता तो किसी की ख़त्म हुई सियासत

Father-Son In Indian Politics: भारतीय राजनीति में कई ऐसे दल और नेता हुए हैं, जिन्होंने पुत्र मोह में न केवल अपनी सत्ता गंवाई बल्कि कुछ की तो राजनीति ही खत्म होने के कगार पर पहुंच गई। तो आइए एक नजर ऐसे सियासी दलों पर डालते हैं –

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-06-23 17:16 IST

उद्धव और आदित्य ठाकरे। (Social Media)

Father-Son In Indian Politics: महाराष्ट्र में सरकार (maharashtra government) चला रही महाविकास अघाड़ी गठबंधन (Mahavikas Aghadi Alliance) में तीन पार्टी शिवसेना (Shivsena), एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) शामिल है। इन तीनों पार्टियों में सबसे कमजोर हैसियत कांग्रेस की थी। कांग्रेस नेताओं और विधायकों की असंतुष्टि समय – समय पर बाहर आते रहती थी। ऐसे में माना जा रहा था कि कभी भी कांग्रेस के नाराज नेता विद्रोह कर बीजेपी के साथ जा सकते हैं। लेकिन विद्रोह का बिगुल बजा गठबंधन में ताकतवर माने जाने वाली शिवसेना में। एमवीए सरकार की अगुवाई कर रही शिवसेना में आए भयानक सियासी भूचाल ने इस सरकार को अंत की ओर धकेल दिया है।

शिवसेना (Shivsena) में हुए इस विद्रोह के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) के पुत्रमोह का जिम्मेदार बताया जा रहा है। ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) और शिवसेना (Shivsena) की तरह भारतीय राजनीति में कई ऐसे दल और नेता हुए हैं, जिन्होंने पुत्र मोह में न केवल अपनी सत्ता गंवाई बल्कि कुछ की तो राजनीति ही खत्म होने के कगार पर पहुंच गई। तो आइए एक नजर ऐसे सियासी दलों पर डालते हैं –

उद्धव ठाकरे-आदित्य ठाकरे (Uddhav and Aditya Thackeray)

महाराष्ट्र की राजनीति में बीते पांच दशकों से शिवसेना का प्रभाव रहा है। कांग्रेस के विरोध में राजनीति करने वाली इस पार्टी का आंतरिक सिस्टम कांग्रेस (congress) जैसा ही है। जिस तरह बालासाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) के पुत्रमोह के कारण शिवसेना (Shivsena) से कई दिग्गज नेताओं ने किनारा कर लिया, वहीं हाल आज उनके बेटे और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) का है। शिवसेना और सरकार में उद्धव ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) के बाद उनके बेटे आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) का रसूख इतना अधिक हो गया कि इससे कुछ वरिष्ठ शिवसैनिक असहज महसूस करने लगे हैं। पूर्व सीएम नारायण राणे (Former CM Narayan Rane) और राज ठाकरे (Raj Thackeray) जैसे अन्य शिवसेना नेताओं ने बालासाहेब ठाकरे के पुत्रमोह के कारण पार्टी छोड़ दी थी। आज एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) जैसे अन्य शिवसैनिक भी उसी राह पर जाते नजर आ रहे हैं।


मुलायम सिंह यादव-अखिलेश यादव (Mulayam and Akhilesh Yadav)

आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी रीजनल पार्टी समाजवादी पार्टी (samajwadi Party) किसी जमाने में देश की सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी हुआ करती थी। लेकिन आज लगातार मिल रही शिकस्तों से पार्टी का बुरा हाल है। सपा की इस स्थिति के लिए पार्टी के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Former CM Mulayam Singh Yadav) के पुत्रमोह को जिम्मेदार माना जा रहा है। मुलायम ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद आस्ट्रेलिया से पढ़ाई करके लौटे अपने सुपुत्र अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को सत्ता की चाबी सौंप दी थी। अखिलेश तब मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उसका नुकसान बाद के दिनों में देखने को मिला। कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। यहां तक की यादव परिवार में भी कलह शुरू हो चुकी है।


एचडी देवगौड़ा-कुमारस्वामी (HD Deve Gowda and Kumaraswamy)

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा (Former PM HD Deve Gowda) कर्नाटक के लोकप्रिय नेताओं में गिने जाते रहे हैं। 1994 में उन्हीं की अगुवाई में जनता दल ने इस दक्षिणी राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान शानदार प्रदर्शन किया था। दो साल बाद देवगौड़ा (HD Deve Gowda) बेंगलुरू से दिल्ली चले आए और सीएम से पीएम बन गए। हालांकि, यह सफर लंबा नहीं चला। बाद में जनता दल में बिखराव के बाद उन्होंने अपनी पार्टी जनता दल सेक्युलर का गठन किया। देवगौड़ा (HD Deve Gowda) ने राजनीति में अपने परिवार के लोगों को खूब आगे बढ़ाया। उनके बेटे कुमारस्वामी (Kumaraswamy) दो बार (एकबार बीजेपी और एकबार कांग्रेस) के सहयोग से कर्नाटक के सीएम बने। इस दौरान उनके दूसरे बेटे भी सरकार में मंत्री बने। देवगौड़ा (HD Deve Gowda ) के इस पुत्रमोह ने उनकी सियासत को राज्य में कमजोर कर दिया। पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया और मौजूदा कर्नाटक सीएम बसवराज बोम्मई (Karnataka CM Basavaraj Bommai) जैसे नेताओं ने इसी कारण देवगौड़ा से दूरी बना ली। आज उनकी पार्टी राज्य में तीसरे दर्जे की पार्टी है और उसकी स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। उनके बेटे और पूर्व सीएम कुमारस्वामी के पार्टी चलाने के तरीके पर लगातार सवाल उठते रहे हैं।


अजीत सिंह-जयंत चौधरी (Ajit Singh and Jayant Choudhary)

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेता और राष्ट्रीय लोक दल के संस्थापक चौधरी अजीत सिंह (Rashtriya Lok Dal founder Chaudhary Ajit Singh) अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उन्होंने अपने जीवनकाल में ही अपना सियासी उत्तराधिकारी अपने पुत्र जयंत चौधरी (Jayant Choudhary) को बना दिया। पुत्रमोह का यह एक और उदाहरण है। जयंत के राजनीति में आने के बाद भी 2014 से लगातार उनकी पार्टी चुनावों में शिकस्त खा रही है। स्वयं चौधरी अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत को लगातार दो बार लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा विधानसभा चुनावों में भी उन्हें लगातार शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में तो रालोद विधायकों की संख्या एक पर सिमट गई थी। 

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