पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: जिन लोक कल्याणकारी योजनाओं के सहारे भाजपा ने यूपी में बंपर जीत हासिल की और जिनके सहारे 2019 में जीत की वैतरणी पार करने की उम्मीदें संजोई जा रही हैं, पीएम की उन योजनाओं का सीएम के आंगन में बुरा हाल है। सांसद आदर्श गांव योजना हो या उज्जवला, जनधन योजना हो या फिर कन्या समृद्धि योजना, सभी के क्रियान्वयन की गति यहां काफी धीमी है।
योगी के गोद लिए गांव में भी काम नहीं
पीएम मोदी के आदर्श गांव योजना का गोरखपुर मंडल में बुरा हाल है। मंडल के आधा दर्जन सांसदों की बात छोड़ सिर्फ मुख्यमंत्री के गोद लिए गांव जंगल औराही की पड़ताल करें तो हकीकत सामने आ जाती है। तीन साल में योगी के गोद लिए गांव जंगल औराही में मानकों के मुताबिक 35 फीसदी काम भी नहीं हो सका है। कुल 4393 वोटरों वाले इस गांव में 14 टोले हैं। इसमें विशुनपुरा, श्यामा, रेहार, छावनी/चौहान, हरिजन बस्ती, गजराज टोला, शिव मंदिर टोला, कोइरी टोला, हाता टोला, हाथी टोला, भरटोलिया, हरिजन बस्ती, परती टोला और छावनी टोला का बुरा हाल है।
गांव में पहुंचने के लिए वर्षों पहले बिछाई सडक़ गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। जलनिगम की ओर से लगवाए गए 50 हैंडपंप और योगी के खास सिपाही द्वारा साक्षरता को लेकर चलाए गए अभियान को छोड़ दें तो गांव में कुछ अलग नजर नहीं आता है। 100 दिन पहले तक योगी आदित्यनाथ गांव के पिछड़ेपन को लेकर प्रदेश की पूर्ववर्ती सपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते थे। खुद योगी सरकार के 100 दिन पूरे हो गए हैं, लेकिन गांव को बदलाव का इंतजार है।
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सवा दो लाख खातों में ट्रांजेक्शन नहीं
पीएम मोदी की अपील पर गोरखपुर में लोगों ने बैंकों के सामने कतार लगाकर जनधन खाता खुलवाया था। नोटबंदी के दौर में योजना के तहत खुले 6.73 लाख खातों को लेकर चर्चाएं तेज हुईं कि खातों में अमीरों ने करोड़ों रुपये जमा करा दिए। 29 बैंकों की 357 शाखाओं के प्रबंधकों ने जो आंकड़ा जुटाया उसके मुताबिक एक भी खाता ऐसा नहीं मिला जिसमें 50 हजार या इससे अधिक रुपये एकमुश्त जमा हुए हों। इसके साथ ही यह भी साफ हुआ कि सवा दो लाख से अधिक बैंक खातों में कभी कोई ट्रांजेक्शन हुआ ही नहीं।
यहीं नहीं लीड बैंक के आंकड़े के मुताबिक इक्का-दुक्का लोगों को ही बैलेंस ठीक रखने पर पांच हजार रुपये का लोन मिला है। बैंकों को अब इन खातों के संचालन में करोड़ों रुपये खर्च करना पड़ रहा है। जनधन खातों के बलबूते ग्रामीण इलाकों में खुले ग्राहक सेवा केन्द्रों की भी आॢथक सेहत खराब हो चुकी है। तामझाम के साथ शुरू हुई अटल पेंशन योजना का भी बुरा हाल है। लीड बैंक के मुख्य प्रबंधक आरके सिंह के मुताबिक अभी तक सिर्फ गोरखपुर में 2900 लोग ही योजना में पंजीकृत हैं।
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तीन लाख ने लिया दूसरा सिलेंडर
गांव-गांव में रसोई गैस का कनेक्शन मुफ्त बांटने का दावा करने वाली सरकार खुद अपने जाल में फंस गई है। कनेक्शन बांटने वाली पेट्रोलियम एजेंसियां भी मुश्किल में हैं। दरअसल गोरखपुर मंडल में पेट्रोलियम एजेंसियों ने करीब पांच लाख रसोई गैस कनेक्शन बांटे हैं। इनमें से करीब तीन लाख उपभोक्ता ऐसे हैं जिन्होंने दोबारा रसोई गैस रिफिल ही नहीं कराया यानी ग्रामीण या तो फिर आंखों को कष्ट देकर लकड़ी पर भोजन पका रहे हैं या फिर रसोई गैस की कालाबाजारी हो रही है।
उज्जवला योजना में गांव-गांव कैंप लगाकर ग्रामीणों में कनेक्शन बांटे गए थे। गोरखपुर में 1.32 लाख, देवरिया में 99 हजार, महराजगंज में 90 हजार और कुशीनगर में सर्वाधिक 1.75 लाख कनेक्शन बांटे गए थे। पेट्रोलियम एजेंसियों की जुबान फिलहाल सिली हुई हैं, लेकिन जानकार इसे बड़ा घोटाला मान रहे हैं। अधिक से अधिक लोग कनेक्शन ले सकें,इसके लिए कंपनियों ने उपभोक्ताओं को लोन का विकल्प दिया था। चूल्हा और सिलेंडर के एवज में ली जाने वाली 3200 से 3500 रुपये की रकम को इसलिये छोड़ दिया गया कि कि इसकी भरपाई सब्सिडी के रकम से कर ली जाएगी। 3200 रुपये की वसूली तक उपभोक्ता को रिफिल के वक्त सब्सिडी का लाभ नहीं दिया जाएगा।
अब रेवड़ी की तरह बांटे गए कनेक्शन से पर्दा हटने लगा है। इससे साफ है कि ग्रामीणों ने फ्री में बंट रहे कनेक्शन को तो ले लिया, लेकिन दोबारा रिफिल कराने में उनकी हिम्मत टूट रही है। तमाम ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने पहले से कनेक्शन के बाद फ्री में कनेक्शन ले लिया और औने-पौने दाम में रसोई गैस के सिलेंडर को कालाबाजारी करने वालों को बेच दिया। उधर, पूरा प्रकरण जानने के बाद भी राजनीतिक नफा-नुकसान का आंकलन कर मोदी सरकार डिफाल्टर उपभोक्ताओं पर नरम बनी हुई है।
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खुले में शौच से मुक्ति फिलहाल सपना
अफसरों का दावा है कि गोरखपुर दिसम्बर तक खुले में शौच से मुक्त हो जाएगा, लेकिन प्रगति को देखकर फिलहाल यह दावा सपना ही नजर आता है। गोरखपुर नगर निगम में 10952 लाभाॢथयों का चयन योजना के लिए हुआ है। सिर्फ 641 लोगों को ही योजना के तहत मिलने वाली 8 हजार रुपये की रकम दी जा सकी है। 5500 से अधिक लाभार्थी अधूरे निर्माण के साथ दूसरी किस्त कर इंतजार कर रहे हैं।
बेरोजगारों को नहीं रास आ रही केंद्र की योजनाएं
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को केन्द्र सरकार बेरोजगारों के लिए वरदान मान रही है। इसके तहत रोजगार शुरू करने के लिए 50 हजार से लेकर 10 लाख रुपये तक का ऋण दिया जाता है, लेकिन बैंकों की कागजी कोरमपूत के चलते लोगों को 50 हजार से अधिक का ऋण नहीं मिल रहा है। अभी तक महज 4400 लोगों ने योजना का लाभ लिया है, लेकिन इनमें में 90 फीसदी लोगों को सिर्फ 50 हजार का ही ऋण मिल सका है। वहीं स्टैण्ड अप और स्टार्टअप योजना के तहत अनुसूचित जाति-जनजाति और महिलाओं को इस योजना के तहत 10 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक के ऋण का प्रावधान है। कागजी पेंच और जागरूकता के अभाव का नतीजा है कि योजना का लाभ एक भी व्यक्ति को नहीं मिल सका है।