निकाय चुनाव गोरखपुर : महिला सशक्तिकरण का दावा बेदम

Update:2017-11-17 14:24 IST

गोरखपुर: पंचायत और निकाय चुनाव में महिलाओं को 33 फीसदी भागीदारी की गारंटी देकर राजनीतिक पार्टियां भले ही अपनी पीठ ठोंके लेकिन हकीकत की धरातल पर महिला सशक्तिकरण का दावा बेदम ही नजर आता है। गांव से लेकर शहर तक महिलाओं द्वारा जीत दर्ज करने के बाद भी जिस तरह पुरूषों का रसूख कायम है उसे देखकर मजबूत लोकतंत्र के सवाल पर चिंताएं स्वभाविक है। गांव और शहरी क्षेत्र में खास बदलाव नहीं दिखता है।

नगर निगम, नगर पालिका से लेकर टाउन एरिया में महिलाएं भले ही जीत दर्ज कर रही हों लेकिन हकीकत में पद पर कब्जा पति, देवर या बेटे का ही दिखता है। गोरखपुर-बस्ती मंडल में निकाय चुनाव की तस्वीर को देखकर साफ नजर आ रही है कि मजबूरी में नेताजी बनीं महिलाएं फिर किचेन में पहुंच चुकी हैं। इक्का-दुक्का महिलाएं ही अपने दम पर पुरूषों से मोर्चा ले रही हैं।

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नगर निगम गोरखपुर में पिछले बार महापौर की सीट महिला के लिए आरक्षित थी। राजनीति में सक्रिय रहीं डॉ सत्या पाण्डेय ने भाजपा के टिकट पर जीत भी दर्ज की। लेकिन इसबार उनकी बोर्ड की 26 महिलाएं आरक्षण की स्थिति बदलने पर वापस किचेन में पहुंच गई। महापौर की सीट पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होने के बाद महिला उम्मीदवार पूरे परिदृष्य से ही गायब हो गई हैं।

14 उम्मीदवारों में एक भी महिला नहीं हैं। वहीं पिछली बार नगर निगम के सदन में पहुंची 26 में से सिर्फ तीन महिला पार्षद ही चुनावी मैदान में नजर आ रही है। शेष 23 या तो आरक्षण के चलते मैदान से बाहर हो गईं या फिर आरक्षण मुफीद होने के बाद बेटे या पति चुनावी समर में कूद गए हैं। पांच साल पहले जीतकर गोरखपुर नगर निगम पहुंचने वाली सिर्फ तीन पार्षद इसबार भी चुनाव मैदान में हैं।

लोहियानगर से जीतीं ज्ञानमती यादव, नरसिंहपुर से नजमा बेगम और बिछिया रेलवे कॉलोनी से जीतीं शकुन मिश्रा फिर चुनाव में हैं। निवर्तमान पार्षद ज्ञानमती यादव और शकुन मिश्रा पुरूष उम्मीदवारों को हराकर सदन पहुंची थीं। लेकिन ऐसी महिला पार्षदों की लंबी फेहरिस्त है जो आरक्षण का कांटा हटने के बाद मैदान से हटा दी गई हैं। जहां महिला पार्षदों के लडऩे की संभावना है वहां उनके पति या बेटे चुनाव मैदान ताल ठोक रहें हैं।

महादेव झारखण्डी टुकड़ा नंबर एक से सुनीता देवी, सेमरा से संगीता यादव, चरगांवा से गेना देवी और शिपपुर शहबाजगंज से छाया निगम आरक्षण के पेच में चलते बिना लड़े ही मैदान से बाहर हो गई हैं। वहीं जंगल तुलसीराम पश्चिमी से जीतीं पुष्पा देवी के पति राजेश कुमार, जनप्रिय विहार से जीतीं रेखा देवी वर्मा के पुत्र ऋषि मोहन वर्मा खुद मैदान में आ डटे हैं।

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इसी क्रम में शाहपुर से ज्ञानमती देवी के बेटे चन्द्रशेखर सिंह, बेतियाहाता से श्रीमती विजय लक्ष्मी के पति विष्णु कांत शुक्ला, जटेपुर से श्रीमती अन्नू देवी के पति मनोज यादव, शक्तिनगर से आशा श्रीवास्तव की जगह पर उनके पति चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव खुद ही दावेदारी कर रहे हैं।

रायगंज से निवर्तमान पार्षद नीलम यादव की जगह परिवार अशोक यादव, हांसूपुर में आरती श्रीवास्तव के पति संजय श्रीवास्तव, भेडिय़ागढ़ में बेबी यादव की जगह अजय यादव, महुईसुधरपुर से मनोरमा देवी के स्थान पर पति राम दयाल खुद मैदान में आ डटे हैं। तमाम दिग्गज ऐसे हैं जो आरक्षण के चलते मैदान से बाहर हो गए हैं लेकिन वह महिलाओं की बैशाखी के भरोसे सदन में ताकझांक करने को बेचैन हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी पार्षद रणंजय सिंह जुगनू ने अपनी मां को चुनावी समर में उतारा है। वहीं निर्वतमान रमेश गुप्ता, रामजनम यादव, श्याम यादव, मन्ता लाल यादव, चन्द्रभान प्रजापति अपने परिवार की महिला सदस्यों को आगे कर सदन में पहुंचने की कोशिशों में हैं।

जिधर देखिये ‘रबर स्टैम्प’ चेयरपर्सन

गोरखपुर बस्ती मंडल में नगर निगम गोरखपुर में महापौर डॉ सत्या पाण्डेय को छोड़ दें तो कमोवेश सभी महिला चेयरपर्सन रबर स्टैम्प की ही भूमिका में रहीं। महराजगंज की दो नगर पालिका और तीन टाउन एरिया में तीन सीटों पर महिलाओं का कब्जा था। नौतनवां से मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजाकाट रहे पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी के करीबी गुडडू खान की पत्नी नायला खान जीती थीं तो महराजगंज सदर में कांग्रेस नेता चन्द्रजीत भारती की पत्नी रीता देवी ने जी दर्ज की थी।

नायला खान भले ही अपने पति के साथ कार्यक्रमों में नजर आती रहीं लेकिन चेयरमैन के पद पर असल कब्जा पति का ही रहा। यही हाल रीता देवी का भी रहा। निचलौल टाउन एरिया में भाजपा नेता अरूण जायसवाल ने अपनी पत्नी डॉ अर्चना जायसवाल को इस दावे के साथ मैदान में उतारा था कि वह कस्बे का विकास करेगीं। लेकिन पांच साल के कार्यकाल में चेयरपर्सन निर्वाचित हुईं डॉ अर्चना सदन में सिर्फ हस्ताक्षर वुमेन ही बनकर आती रहीं।

आरक्षण का काटा हटा तो महिला उम्मीदवार पूरे परिदृश्य से बाहर हो गई हैं। पहली बार सृजित हुई सोनौली टाउन एरिया की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित हुई है। यहां प्रत्याशी तो महिला हैं लेकिन नाम पूछने पर राजनीतिक दल भी पुरूष का ही नाम बता रहे हैं।

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सीयूजी भी नहीं रखतीं महिला अध्यक्ष

गोरखपुर नगर निगम में पिछले वर्ष निर्वाचित हुईं 26 पार्षदों में से सिर्फ ज्ञानमती यादव ही अपना सीयूजी मोबाइल उठाती थीं। अन्य महिला पार्षदों के सीयूजी नंबर पर फोन करने पर या तो पति या फिर बेटा ही कॉल रिसीव करता था। महराजगंज की नौतनवां नगर पालिका सीट पर जीतीं नायला खान की जगह उनके पति और पूर्व चेयरमैन गुडडू खान ही फोन रिसीव करते हैं। वहीं सदर सीट पर जीतीं रीता देवी के पति चन्द्रजीत भारती ही चेयरमैन कह कर पुकारे जाते थे। रीता देवी सिर्फ सदन की बैठकों की ही शोभा बढ़ाती रहीं।

प्रतिष्ठा बचाने को योगी करेंगे ताबड़तोड़ सभाएं

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद योगी आदित्यनाथ निकाय चुनाव के रूप में होने वाली अपनी पहली परीक्षा को लेकर कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते हैं। अमूमन निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री प्रचार करते नहीं दिखते हैं लेकिन योगी आदित्यनाथ घर में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए 16, 19 और 20 को गोरखपुर, देवरिया और बस्ती में ताबाड़तोड़ सभाएं करेंगे।

गोरखपुर में महापौर और 70 पार्षदों की जीत के लिए योगी 4 जनसभाओं को संबोधित करेंगे। भीतरघात से जूझ रही भाजपा को जीत दिलाने को लेकर योगी की कड़ी परीक्षा होनी है। गोरखपुर मेयर चुनाव में योगी धर्मेन्द्र सिंह को टिकट दिलाना चाहते थे लेकिन संघ के चलते टिकट सीताराम जायसवाल को मिल गया। अब यहां कोई अनहोनी होती है तो योगी पर सवाल उठना लाजिमी है। नगर निगम की 70 सीटों में से 15 पर भाजपा के बागी ताल ठोक रहे हैं। उधर, बसपा के प्रत्याशियों की जीत को लेकर पंडित हरिशंकर तिवारी के परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

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बसपा उम्मीदवारों के पक्ष में पूर्व सभापति गणेश शंकर पाण्डेय, चिल्लूपार विधायक विनय शंकर तिवारी, पूर्व सांसद भीष्म शंकर तिवारी ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे हैं। कांग्रेस ने 51 वरिष्ठ नेताओं की समिति बनाकर प्रचार में जुटी हुई है। गोरखपुर में समाजवादी पार्टी का मेयर प्रत्याशी भले न जीता हो लेकिन पार्टी के पार्षद प्रत्याशियों को बड़ी जीत मिली है। पिछले कार्यकाल में भी सपा पार्षदों का बहुमत था। सपा जीत के पुराने समीकरण केा दोहराने के लिए प्रयास कर रही है। हालांकि सपा का कोई बड़ा नेता प्रचार में नहीं आ रहा है, जिससे प्रत्याशियों में बेचैनी है।

=पूर्णिमा श्रीवास्तव

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