समाजवादी महाभारत में बंद है मछली की आंख, क्या निशाने पर लगेगा अर्जुन का बाण

अब इस टूटते और बिखरते राजनीतिक परिवार को एक ही डोर आपस में जोड़ सकती है क्योंकि अब तक किए सभी प्रयास विफल साबित हुए हैं। मुलायम और अखिलेश के बीच ये डोर है अखिलेश के बेटे 'अर्जुन'।

Update:2017-01-08 14:06 IST

 

Vinod Kapoor

लखनऊ: देश के सबसे बडे राजनीतिक कुनबे समाजवादी परिवार में पिछले चार महीने से चल रहे शह मात, रूठने मनाने, घात प्रतिघात, एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी के बीच ​परिवार के एक बच्चे की तस्वीर सामने आई जो इस माहौल में ताजी हवा के मानिंद थी।

तस्वीर थी सीएम अखिलेश के बेटे अर्जुन की, जो परिवार में चल रही कलह से बेपरवाह गोल्फ खलने में मस्त थे। पिछले चार महीने से परिवार की कलह की तस्वीर देखते देखते समाजवादी पार्टी के नेता, कार्यकर्ता और अखबार के पाठक बोर हो चुके थे, तो खबरिया चैलन के दर्शक भी उब गए थे। गोल्फ खेलते अर्जुन को यह तो पता होगा ही कि परिवार में क्या चल रहा है। लेकिन उनका बालमन इन सबसे बेफिक्र दिख रहा है।

कौन खोलेगा बंद रास्ते

गोल्फ के खेल के कुछ नियम और नाम होते हैं। होल में गेंद के जाने को पार कहते हैं। उसके बाद अन्य नाम बर्डी, ईगेल और बोगी होते हैं। बालपन से किशोरावस्था की ओर बढ़ रहे अर्जुन संभवत: गोल्फ के नियम और उसके नाम जान चुके होंगे।

पिता और सपा के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव पार्टी को बचाने के लिए जितना झुक सकते थे, उतना झुक चुके हैं। मनाने के खेल में उन्होंने काफी कुर्बानी भी दी है। बीच बचाव की कोशिश ​के सारे प्रयास अब विफल साबित हो चुके हैं। परिवार के लोग अगर अलग होने को तैयार बैठे हैं तो आजम खान जैसे पार्टी के चहेते इस परिवार को एक करने में अपनी कोई कसर नहीं छोड रहे हैं।

संस्कारों की आस

हिंदी में एक प्यारी सी कहावत है कि मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है। अखिलेश अगर मुलायम के लिए मूल धन हैं तो अर्जुन उसका सूद। संस्कारों से भरे हुए अर्जुन भी अपने दादा का सम्मान पिता से ज्यादा करते हैं। सार्वजनिक रूप से ये कई बार जाहिर भी हो चुका है। वो अपने दादा को पैर छू कर प्रणाम करते हैं। यही संस्कार अखिलेश के पास भी हैं। हालांकि अखिलेश अभी किसी सूद से कोसो दूर हैं।

पारिवारिक महाभारत में अर्जुन

राजनीति के जानकार मान रहे हैं कि परिवार को एक करने की अब आखिरी उम्मीद अर्जुन हैं। सवाल बड़ा ये कि पिता पुत्र के रिश्ते को पोता क्या एक कर सकता है?

अखिलेश अकेले जितना भी प्रयास कर लें, पिता के आशीर्वाद के बिना वो चुनावी बैतरणी पार नहीं कर सकते। मुलायम का पिछले 60 साल का राजनीति का अनुभव है। वो राजनीति की हर चाल से वाकिफ हैं। अखिलेश को वहां तक पहुंचने में अभी लंबा रास्ता तय करना है।

पार्टी के विधायक, सांसद और पदाधिकारी यदि उनके साथ हैं तो इसका कारण है उनका सीएम होना। कल्पना करें कि वो यूपी के सीएम नहीं होते तो क्या इतनी बडी संख्या में विधायक, विधान परिषद सदस्य उनके पास होते?

चलेगा अर्जुन का बाण

चुनाव की तारीखें आ चुकी हैं। सभी पार्टियां तैयारियों में जुट गई हैं लेकिन देश का सबसे बडा राजनीतिक परिवार आपसी झगडे में उलझा है। सपा के दोनों गुट अपनी अपनी बात निर्वाचन आयोग के पास रख रहे हैं। तैयारी, चुनावी रणनीति की बात तो अभी दीगर है। यहां तक कि मुलायम और अखिलेश दोनो में से किसी ने अभी तक एक भी चुनावी सभा नहीं की है।

अब इस टूटते और बिखरते राजनीतिक परिवार को एक ही डोर आपस में जोड़ सकती है क्योंकि अब तक किए सभी प्रयास विफल साबित हुए हैं। समझौते का प्रयास कर रहे लोगों ने भी लगता है हार मान ली है। मुलायम और अखिलेश के बीच ये डोर है अखिलेश के बेटे 'अर्जुन'।

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