संवैधानिक के साथ-साथ आंतरिक राजनीति की वजह से गई T S Rawat की कुर्सी, जानिए इसके पीछे की कहानी
उत्तराखंड़ का राजनीतिक मिजाज कुछ अलग हीं है एनडी तिवारी को छोड़ दिया जाए तो कोई भी अपना पांच साल का कार्यकाल एक साथ पूरा नहीं कर पाया है। इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत थे जो किसी कारण से भाजपा ने सीएम पद से इस्तीफा देने को कहा था। जिसके बाद भाजपा ने गढ़वाल के सांसद को सीएम पद की पेशकश की। तीरथ सिंह रावत को लाया गया था की जो भी जनता में असंतोष त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में पनपा है उसकों भरने का प्रयास करें लेकिन हुआ इसके उलट।
लखनऊ डेस्क। उत्तराखंड़ का राजनीतिक मिजाज कुछ अलग हीं है एनडी तिवारी को छोड़ दिया जाए तो कोई भी अपना पांच साल का कार्यकाल एक साथ पूरा नहीं कर पाया है। इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत थे जो किसी कारण से उन्हे सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। जिसके बाद भाजपा ने गढ़वाल के सांसद को सीएम पद की पेशकश की। तीरथ सिंह रावत को लाया गया था की जो भी जनता में असंतोष त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में पनपा है उसकों भरने का प्रयास करें लेकिन हुआ इसके उलट।
तीरथ सिंह रावत उस समय सुर्खियों में आए थो जब उन्होंने कहा थी की लड़कियों को फटे हुए जींस नहीं पहनने चाहिए ये भारतीय संस्कृती के खिलाफ है, इसके बाद इन्होंने कोरोना में कुंभ मेले को आयोजित करने के पक्ष में तरह-तरह के तर्क दे रहे थे। इनके इस प्रकार के क्रियाकलाप से भाजपा के नेता भी असहज महसूस कर रहे थे।
तीरथ के कार्यशैली से भाजपा नेता भी थे असहज
तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड़ के नौवें मुख्यमंत्री बने थे लेकिन वे उत्तराखंड़ के किसी क्षेत्र के विधायक नहीं थे इसलिए उनकों मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए हर हाल में किसी विधानसभा से चुनाव जीतना जरुरी था। वहीं राज्य में विधान सभा के चुनाव अगले साल मार्च तक संपन्न हो जाने है अतः उपचुनाव के भी कोई संकेत चुनाव आयोग की तरफ से नहीं मिल रहा था।
कांग्रेस ने जनप्रतिनिधि कानून का हवाला दिया
वहीं भाजपा के अंदरखाने से खबर ये भी आ रही थी कोई भी तीरथ सिंह रावत के लिए अपना सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। वहीं दो सीट जो रिक्त थी वहां से तीरथ का जीतना मुश्किल लग रहा था। इसी कारण बीजेपी ने तीरथ को ही रास्ते से हटाने का फैसला किया, जिसके परिणामस्वरुप तीरथ सिंह रावत को अपने पद से इस्तीफा देना पडा। कांग्रेस के नेता व हरिश रावत सरकार में मंत्री रहे नवप्रभात ने भारतीय संविधान के सेक्शन 151 के जनप्रतिनिधि कानून 1951 का हवाले देते हुए कहा की इलेक्श कमीशन को क्लियर करना चाहिए की राज्य में किसी भी सूरत में चुनाव नहीं हो सकता है।
नरेंद्र सिंह तोमर होंगे पर्यवेक्षक
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उन्होने आगे कहा की इसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि किसी भी राज्य या केंद्र में उप-चुनाव तभी हो सकते है जब उस विधानसभा का या लोकसभा का सत्र एक साल या उससे अधिक हो। अगर ऐसा नहीं है तो उपचुनाव नहीं हो सकते हैं।वहीं दूसरी ओर राज्य के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक आज तीन बजे विधायक दल की बैठक बुलाई है जिसमें राज्य के अगले मुख्यमंत्री का फैसला होगा जिसमें पहले ये देखा जाएगा की वह नेता विधानसभा का सदस्य हो। वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पर्यवेक्षक के तौर पर दिल्ली भेजा गया है। तोमर ही पूरी प्रक्रिया को अंतिम रुप देंगे।