लखनऊ: जो हम आपको बताने वाले हैं, वैसे देखा जाए तो ये बड़ा मामला नहीं है लेकिन बीजेपी जिस तरह नियम कायदे और कानून की बात करती है उससे ये मामला बड़ा हो गया है। दरअसल सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने जो ओएसडी चुने हैं, उनके बारे में शासन को किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं है। ये खुलासा एक आरटीआई के जवाब में हुआ है।
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यूपी के सीएम योगी ने 30 जून को अपने लिए 5 विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) चुने इनका चुनाव बिना किसी नियम, अधिनियम के सिर्फ योगी के आदेश पर हुआ ओएसडी पद पर नियुक्ति हेतु 5 अस्थाई निःसंवर्गीय पदों का सृजन कर इन पदों पर राजभूषण सिंह रावत, अभिषेक कौशिक, संजीव सिंह, उमेश सिंह और धर्मेंद्र चौधरी को बिना किसी चयन प्रक्रिया के ही नियुक्ति दे दी।
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इसका सीधा सा अर्थ है, कि सीएम अपने जिस कृपापात्र को चाहे अपना ओएसडी बनाये फिर चाहे वह अनपढ़, नाकारा और अनुभवहीन ही क्यों न हो।
चौंकाने वाला यह खुलासा राजधानी लखनऊ के समाजसेवी संजय शर्मा द्वारा यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय में बीते 5 जून को दायर की गई एक आरटीआई पर यूपी के सचिवालय प्रशासन अनुभाग 1 के अनुभाग अधिकारी विजय कुमार मिश्र द्वारा बीते 20 जुलाई को भेजे गए जवाब से हुआ है।
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आरटीआई के जवाब में बताया गया कि मुख्यमंत्री के ओएसडी पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया के संबंध में न तो कोई शासनादेश है और न ही कोई अधिनियम प्रख्यापित है। विशेष कार्याधिकारी के पद के लिए कोई शैक्षिक अर्हता या योग्यता निर्धारित न होने की सूचना भी आरटीआई के जवाब में दी गई है।
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मजे की बात ये है कि योगी के इन 5 ओएसडी की योग्यताओं, अनुभव, पांचों को आबंटित कार्य, इनके द्वारा किये गए कार्य, इनकी चल अचल संपत्ति, इनके गृह जनपदों और इनकी राजनैतिक दलों से संबद्धता के बारे में सिर्फ सीएम को पता है शासन के पास इनकी कोई भी जानकारी नहीं है।
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आपको बता दें, ये पद एक संवेदनशील, जिम्मेदारीपूर्ण, राजपत्रित पद है और इस पद पर बिना नियम कानून की जा रही मनमानी नियुक्तियां अवैध होने के कारण विधिशून्य हैं। अयोग्य और सीएम के चापलूसों की नियुक्ति होने की दशा में इसका खामियाजा जनता को ही भुगतना पड़ता है, जबकि इनको वेतन-भत्ते जनता के टैक्स के पैसों से ही दिए जाते हैं संजय अब इस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने का मन बना रहे हैं।