यूपी निकाय चुनाव : CM योगी की पहली परीक्षा में राम का सहारा !
यूपी निकाय चुनाव इस समय भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के फायरब्रांड नेता और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए बेहद अहम हैं।
लखनऊ: यूपी निकाय चुनाव इस समय भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के फायर ब्रांड नेता और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए बेहद अहम हैं। यही वजह है कि इस बार का निकाय चुनाव पिछले कई निकाय चुनाव से अलग है। पहली बार संकल्प पत्र जारी किया गया। पहली बार बाकयदा चुनाव अभियान को इवेंट बनाया गया है।
अपने पहले ही टेस्ट में राम के सहारे राम की नगरी अयोध्या से चुनावी दंगल में उतरे सीएम योगी आदित्यनाथ या ये कहें कि यूपी बीजेपी ये बात अच्छे से जानती है कि भगवान राम का मुद्दा हर चुनाव की तरह आगामी और वर्तमान चुनाव में कितना संवेदशील है। सबसे अहम है कि योगी खुद इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ चुके हैं। यह चुनाव पार्टी के साथ ही उनके राजनैतिक दक्षता का प्रमाण भी पेश करेगा।
दरअसल, विधानसभा चुनाव में 325 प्लस का प्रचंड बहुमत पाने के बाद पहली बार बीजेपी जनता के बीच जा रही है। ये चुनाव जीएसटी, व्यापारियों के गुस्से, योगी के काम काज की स्टाइल, सबका लिटमस टेस्ट है। ऐसे में पार्टी किसी तरह का कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती।
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योगी की पहली परीक्षा
बीजेपी को उसकी उम्मीद से ज्यादा यूपी के विधानसभा चुनाव में जनता ने प्रचंड बहुमत दिया। उसके बाद सीएम और दोनों डिप्टी सीएम चुने गए। योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाने के फैसले को राजनीतिक पंडितों के समीकरण पर अपने अपने ढंग से पढ़ा गया। यूपी निकाय चुनाव अब योगी स्टाइल की सरकार का पहला टेस्ट है।
गौरतलब है कि इस निकाय चुनाव से पहले अब तक कोई भी उपचुनाव नहीं हुए। सरकार को 8 महीने भी हो चुके हैं। ऐसे में सरकार के कामकाज की समीक्षा का ठीक-ठाक समय भी हो चुका है। ऐसे में योगी के फैसले चाहे वह अवैध स्लॉटर हाउस की बंदी, एंटी रोमियो स्क्वाड, गोरक्षा, जीएसटी से व्यापारियों की नाराजगी के होने का यह लिटमस टेस्ट कहा जा सकता है।
यूपी में हमेशा निकाय बीजेपी का मजबूत किला रहे हैं। तब भी जब बीजेपी की हालत यूपी में काफी पतली थी। निकाय चुनाव हमेशा से बीजेपी के पसंदीदा हैं, पर इस चुनाव को जीतने पर बीजेपी और खुद योगी आदित्यनाथ को बहुत से फायदे होने वाले हैं।
बीजेपी अगर अपनी सफलता की कहानी दोहराती है, तो बीजेपी सरकार और योगी आदित्यनाथ के जननेता होने के सवालों पर विराम लगेगा। विपक्षी जो अब तक सरकार के विकास को नकार रहे हैं उन्हें जनता का जवाब मिल जाएगा। निकाय चुनाव में अगर बीजेपी अपने दावे के मुताबिक सारे मेयर पद जीत लेती है तो उसका फायदा गुजरात चुनाव में भी मिलेगा।
दरअसल, यूपी निकाय चुनाव के रिजल्ट 1 दिसंबर को आ रहे हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव में 9 दिसंबर को पहले चरण की वोटिंग होनी है। अगर बीजेपी के पक्ष में परिणाम आए तो व्यापारियों के गुस्से की बात को खारिज करने में आसानी होगी। इसके अलावा बीजेपी सरकार के कामकाज पर जनता का मैनडेट भी मिल जाएगा।
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योगी का कद बढ़ेगा !
योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव में व्यक्तिगत रुचि ली है। इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया है। इससे पहले किसी बीजेपी के सीएम ने इस तरह निकाय चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अगर बीजेपी यह चुनाव जीतती है तो पार्टी में उनका कद और बढेगा। वह एक प्रशासक के तौर पर स्थापित होंगे और सरकार के कामकाज को जनता की हरी झंडी मिलेगी। योगी के खिलाफ उठ रही कई आवाजों की हिम्मत टूटेगी और योगी जिन पर अब तक पोस्टर बॉय के तौर पर लोकसभा 2014 के बाद हुए उपचुनावों में असफल नायक की छवि है वो इस छवि को तोड़ देंगे।
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क्या है तैयारी, कौन कैसे जुटा है रणनीति में ?
इस चुनाव की तैयारी बीजेपी पहली बार अभूतपूर्व ढंग से कर रही है। पार्टी के संगठन मंत्री सुनील बंसल का पूरा दखल है और वह पूरी तरह से इसमें प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। राज्य इकाई के लिए यह करो या मरो का प्रश्न बना है और कई केंद्रीय मंत्री जो यूपी के हैं उनकी प्रतिष्ठा की भी इसमें भागीदारी है। कहा जा रहा है कि यह चुनाव राज्य इकाई लड़ रही है पर लखनऊ में राजनाथ सिंह की सक्रियता, गाजियाबाद, नोएडा में महेश शर्मा, वीके सिंह, पूर्वांचल में कलराज मिश्र की भूमिका ये साबित करती है कि बीजेपी इसे किस तरह देख रही है।
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ब्रांडिंग पैकेजिंग राम और इवेंट हैं हथियार
बीजेपी इस चुनाव को ब्रांडिंग पैकेजिंग के फार्मूले पर ही लड़ रही है। तभी तो निकाय चुनाव का संकल्प पत्र जारी किया है। बीजेपी ने बाकयदा चुनाव प्रचार अभियान को अयोध्या से शुरू किया। अयोध्या जाकर योगी आदित्यनाथ ने संकल्पपत्र को शहरों के लिए बीजेपी का विजन करार दिया। राम की अयोध्या से प्रचार शुरू कर खास मैसेज दिया गया और 14 दिन में 40 सभा करने के हथियार से सबको मात देने की तैयारी है। हो भी क्यों न ... किसी निकाय चुनाव के परिणाम कभी इतने तरह के फलदायक थे भी तो नहीं।