चुनौतियों के बावजूद उपलब्धियां, सर्वाधिक भूकंप संवेदी है उत्तराखंड की धरती

Update:2017-11-10 15:13 IST

देहरादून : उत्तराखंड की डगर दूसरे नए राज्यों की तुलना में आसान नहीं थी। इसी के साथ पैदा हुए छत्तीसगढ़ और झारखंड के पास प्रचुर मात्रा में खनिज है मगर उत्तराखंड के पास जमीन से ज्यादा ज्यादा जंगल और नदियां हैं। यहां सर्वाधिक भूकंप संवेदी धरती है जो यहां उद्योग लगाने की गुंजाइश को बहुत क्षीण कर देती है। इसके बावजूद आर्थिक विकास के इंडेक्स में उत्तराखंड दूसरे राज्यों से बेहतर कर रहा है। जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय से लेकर मानवीय सूचकांक में उत्तराखंड ने उत्तर प्रदेश से बेहतर स्थिति हासिल की है।

सत्रह साल में आठ मुख्यमंत्री : राजनीतिक उठापटक के इतिहास के साथ तो यह काम और मुश्किल लगता है। राज्य के 17 साल के इतिहास में अभी तक 8 मुख्यमंत्री बन चुके हैं। एनडी तिवारी को छोडक़र कोई भी सीएम पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है। इसी राजनीतिक उठापठक के कारण यहां दो बार राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया।

प्रति व्यक्ति आय के मामले में देवभूमि देश के सर्वोच्च राज्यों की श्रेणी में है। साल 2000 में अपने गठन के समय देवभूमि में प्रति व्यक्ति आय महज 15 हजार रुपये थी, लेकिन आज यह एक लाख साठ हजार है। सोशल प्रोग्रेश इंडेक्स के मामले में भी उत्तराखंड की हालत बेहद सुधरी है। इस मामले में उत्तराखंड से आगे महज केरल, हिमाचल और तमिलनाडु ही हैं। ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स के मामले में राज्य की रैंक सातवीं है। 2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तराखंड की साक्षरता दर 78 फीसदी थी जबकि झारखंड की 66 और छत्तीसगढ़ की 70 फीसदी थी।

घोटालों की भरमार : सत्रह साल के सफर में उत्तराखंड घोटालों के ढेर पर बैठा दिखता है। राज्य की पहली निवार्चित सरकार पर 56 घोटालों के आरोप लगे और जिन लोगों पर आरोप लगे वे सब आज भी सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। खंडूड़ी, निशंक और फिर खंडूड़ी की सरकार पर 100 से अधिक छोटे-बड़े घोटालों के आरोप लगे थे। तीसरी निर्वाचित विधानसभा में दो सीएम हुए। उस दौरान भी कई गंभीर आरोप लगे।

चुनौतियां : विषम भौगोलिक परिस्थितियां, संसाधनों की कमी और वन भूमि की अधिकता राज्य के विकास में बाधक हैं। मूलभूत सुविधाओं पर ज्यादा लागत, पर्वतीय क्षेत्रों में जरूरी सुविधाएं पहुंचाने में कठिनाई व आपदा की दृष्टि से राज्य की संवेदनशीलता भी विकास में बाधक है। हार्टिकल्चर, पर्यटन, जल विद्युत परियोजनाओं के क्षमता के अनुरूप न होने से भी राज्य की आर्थिक परेशानी बढ़ रही है। जंगलों व नदियों के रूप में उत्तराखंड को जो वरदान मिला है वही विकास की राह की बाधा भी है और पर्यावरण का ख्याल रखते हुए विकास कर पाना ही राज्य की सबसे बड़ी चुनौती है।

एकता बिष्ट को खेल रत्न,घोषणा होते ही विवाद शुरू

उत्तराखंड सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेटर एकता बिष्ट को इस साल का खेल रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की है। एकता के लिए दोहरी ख़ुशी यह है कि सरकार ने उनके कोच लियाकत अली को द्रोणाचार्य पुरस्कार देने का भी निर्णय लिया है। खेल रत्न के रूप में राज्य सरकार पांच लाख और द्रोणाचार्य पुरस्कार के रूप में तीन लाख रुपये प्रदान करती है। एकता बिष्ट भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ऑलराउंडर हैं। महिला क्रिकेट विश्वकप के फाइनल मैच में एकता ने पांच विकेट लिए थे। इसी के आधार पर उन्हें इस साल के खेल रत्न पुरस्कार के लिए चुना गया है। लेकिन राज्य के सर्वोच्च खेल पुरस्कारों की घोषणा के साथ ही विवाद भी शुरू हो गया है। सबसे पहला और मुखर ऐतराज कुश्ती के कोच पवन कुमार शर्मा ने दर्ज करवाया।

द्रोणाचार्य पुरस्कार के खिलाफ जाएंगे कोर्ट : उन्होंने लियाकत अली को पुरस्कार देने में नियमावली की अनदेखी का आरोप लगाया और कहा कि इस फैसले के खिलाफ वो कोर्ट की शरण लेंगे। कुश्ती कोच का कहना है कि राज्य की खेल नीति के मुताबिक इन पुरस्कारों के लिए राज्य के खेल संघ की ओर से संस्तुति जरूरी है, लेकिन उत्तराखंड में किसी भी क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता नहीं है। ऐसे में क्रिकेट कोच को द्रोणाचार्य अवॉर्ड दिया जाना सही नहीं है। एथलेटिक्स कोच अनूप बिष्ट भी नाराज हैं। पिछले साल भी उन्हें खेल विभाग के अधिकारियों ने नजरअंदाज कर दिया था। अनूप के बेहतरीन प्रशिक्षण की बदौलत एथलेटिक्स में कई खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं।

इस साल मिले थे 41 आवेदन : इस साल खेलरत्न और द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए कुल 41 आवेदन मिले। इनमें से 27 खेलरत्न के लिए और 14 आवेदन द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए लिए थे। जानकारों का कहना है कि खेलरत्न पुरस्कार में खेल नीति का पालन नहीं किया गया है। राज्य में 2014 में बनाई गई खेल नीति में खेलों को 2 वर्गों, ओलंपिक और गैर ओलंपिक में विभाजित किया गया है। ओलंपिक वर्ग में 32 और गैर ओलंपिक में 9 खेलों को मान्यता दी गई है। इस खेल नीति के तहत खेलरत्न पुरस्कार उसी खिलाड़ी को दिया जा सकता है जो राष्ट्रीय स्तर पर राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुका हो और उसने 3 साल में उच्चतम उपलब्धियां हासिल की हों।

एकता भी नहीं पूरा करतीं शर्तें : अब भले ही अल्मोड़ा की निवासी एकता बिष्ट ने राज्य का नाम राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया हो, लेकिन वे खेल रत्न पुरस्कार पाने की शर्तों को पूरा नहीं करतीं। नियमानुसार राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाला खिलाड़ी ही इस पुरस्कार का हकदार होता है, लेकिन एकता बिष्ट ने कभी उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व नहीं किया। करतीं भी कैसे क्योंकि यहां क्रिकेट संघ ही नहीं है। एकता 2002 से यूपी की टीम से सेंट्रल जोन और इंडिया चैलेंजर में खेल रही हैं। वहीं प्रदर्शन के आधार पर एकता को भारतीय टीम में शामिल होकर विश्वकप खेलने का मौका मिला।

Tags:    

Similar News