ममता को मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा कम, वोट के लिए उठाया ये कदम

इस बार ममता बनर्जी ने 42 विधानसभा सीटों पर ही मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। मुस्लिम उम्मीदवारों की अपेक्षा ममता बनर्जी ने महिला उम्मीदवारों पर ज्यादा भरोसा जताया है। 50 महिलाओं को टिकट देकर ममता ने आधी आबादी के समीकरण को साधने की कोशिश की है।

Update:2021-03-06 10:50 IST
ममता को मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा कम, वोट के लिए उठाया ये कदम

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने इस बार कम मुस्लिमों पर भरोसा जताया है। इस बार ममता बनर्जी ने 42 विधानसभा सीटों पर ही मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। मुस्लिम उम्मीदवारों की अपेक्षा ममता बनर्जी ने महिला उम्मीदवारों पर ज्यादा भरोसा जताया है। 50 महिलाओं को टिकट देकर ममता ने आधी आबादी के समीकरण को साधने की कोशिश की है।

इस कारण मुस्लिमों को कम टिकट

यदि पिछले दो विधानसभा चुनावों में टीएमसी के मुस्लिम उम्मीदवारों का विश्लेषण किया जाए तो पिछले दो चुनावों में ममता ने 20 फ़ीसदी मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे जबकि इस बार उन्होंने सिर्फ साढ़े 14 फ़ीसदी मुस्लिम उम्मीदवारों को ही टिकट दिया है। माना जा रहा है कि हिंदू मतों का ध्रुवीकरण रोकने के लिए ममता नया कदम उठाया है। ममता भाजपा के पक्ष में हिंदू मतों की गोलबंदी रोकने की कोशिश में जुटी हुई हैं।

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नए चेहरों पर जताया ज्यादा भरोसा

ममता बनर्जी ने इस बार के चुनाव में नए चेहरों पर ज्यादा भरोसा जताया है और 100 नए उम्मीदवार मैदान में उतारकर भाजपा की चुनौतियों से निपटने की कोशिश की है। इस बार के चुनाव में ममता ने मुस्लिमों से ज्यादा भरोसा दलित समुदाय के उम्मीदवारों पर जताया है। ममता ने 42 मुस्लिम उम्मीदवारों को ही टिकट दिया है जबकि दलित समुदाय के 79 प्रत्याशी मैदान में उतारे गए हैं। ममता ने 17 सीटों पर एसटी उम्मीदवारों को टिकट दिया है। ममता ने 27 मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है और इसे लेकर पार्टी में काफी नाराजगी भी है। बंगाल के कई जिलों में टिकट काटे जाने के खिलाफ नारेबाजी, प्रदर्शन और तोड़फोड़ तक की गई।

 

2016 में दिया था 57 मुस्लिमों को टिकट

यदि 2016 के पिछले विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो ममता बनर्जी ने राज्य की सभी 294 विधानसभा सीटों पर टीएमसी के उम्मीदवार उतारे थे और 57 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। यदि कुल सीटों के हिसाब से देखा जाए तो ममता बनर्जी ने करीब 20 फ़ीसदी मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा जताया था। पिछले चुनाव में ममता बनर्जी ने 45 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए थे। इस चुनाव में ममता बनर्जी को मुस्लिमों का खूब समर्थन भी हासिल हुआ था जिसकी वजह से सत्ता बरकरार रखने में कामयाब हुई थी।

2011 में 20 फ़ीसदी टिकट मुस्लिमों को

इसी तरह यदि 2011 के विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो उस चुनाव में टीएमसी कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी थी। टीएमसी ने राज्य की 184 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उस समय भी ममता बनर्जी ने 38 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए थे जो कि कुल सीटों का करीब 20 फीसदी होता है। 2011 के चुनाव में ममता ने 31 महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था।

इस बार घट गई मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या

मौजूदा विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी के सियासी जीवन की सबसे बड़ी जंग माना जा रहा है और इस बार उन्होंने 291 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इस बार ममता बनर्जी ने 42 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। यदि कुल सीटों के हिसाब से देखा जाए तो ममता ने साढ़े 14 फ़ीसदी टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए हैं। इस तरह पिछले दो चुनावों की अपेक्षा इस बार ममता बनर्जी ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर कम भरोसा जताया है।

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सौ सीटों पर मुस्लिम असरदार

पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की आबादी करीब 28 फ़ीसदी है और करीब 100 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता किसी भी प्रत्याशी की हार-जीत में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ऐसे में ममता की ओर से इस बार कम मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने पर कई सियासी जानकारों को भी अचरज हुआ है।

महिलाओं को साधने की ममता की कोशिश

जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी ने इस बार मुस्लिमों की अपेक्षा महिलाओं को ज्यादा टिकट देकर आधी आबादी के समीकरण को साधने की कोशिश की है। राज्य के कुल मतदाताओं में महिला मतदाताओं की संख्या करीब 49 फ़ीसदी है। राज्य में कुल 294 विधानसभा सीटों पर 7.18 करोड़ मतदाताओं में से 3.15 करोड़ मतदाता महिलाएं हैं। यह संख्या इतनी बड़ी है जिसकी अनदेखी किसी भी पार्टी की ओर से नहीं की जा सकती। बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी महिला मतदाताओं ने एनडीए के पक्ष में चुनावी नतीजों में बड़ी भूमिका निभाई थी। ऐसे में ममता बनर्जी की ओर से महिला मतदाताओं को साधने का प्रयास आसानी से समझा जा सकता है।

पिछले दो चुनावों में मिला महिलाओं का समर्थन

पश्चिम बंगाल में ममता से पहले वामपंथियों को महिलाओं का व्यापक समर्थन मिलता रहा है मगर 2006-07 में सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के बाद ममता महिलाओं का समर्थन जीतने में कामयाब हो गईं। 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता को महिलाओं का व्यापक समर्थन मिला और यह उनके सत्ता में आने का बड़ा कारण बना। अब एक बार फिर ममता ने महिलाओं पर भरोसा जताया है।

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सौ उम्मीदवार 50 साल से कम उम्र के

महिलाओं के साथ ही ममता ने नए चेहरों को भी इस बार ज्यादा मौका दिया है और कई सीटों पर फेरबदल भी किया है। पार्टी की ओर से जमीनी स्तर पर छवि और भ्रष्टाचार मुक्त चेहरों को ज्यादा महत्व दिया गया है। पार्टी के घोषित उम्मीदवारों में से सौ उम्मीदवार ऐसे हैं जो 50 साल से कम उम्र के हैं। इनमें से 30 की उम्र तो 40 साल से भी कम है। ममता ने इस बार 80 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को टिकट देने से परहेज किया है। सियासी जानकारों का मानना है कि ममता ने पार्टी की सूची फाइनल करने में काफी मशक्कत की है और अब देखने वाली बात यह होगी कि वे भाजपा की चुनौतियों से कैसे निपटती हैं।

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