Punjab ka kalah: क्या राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है पंजाब?
Punjab ka kalah: पंजाब कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सुनील जाखड़ के नाम का एलान हो गया होता अगर सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सिख और गैर सिख का पेंच न फंसाया होता।
Punjab ka kalah: पंजाब (Punjab) में नेतृत्व की लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है। राज्य में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) और नवजोत सिद्धू (Navjot Sidhu) के बीच शुरू हुई इस लड़ाई में अब सिख और गैर सिख की लड़ाई का प्रवेश हो गया है। क्योंकि सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) के नाम पर सहमति बनाने की कांग्रेस हाईकमान की कोशिशों पर पानी फिर गया है। दो धुरंधरों की लड़ाई में तीसरे यानी सुखजिंदर सिंह रंधावा (Sukhjinder Singh Randhawa) का प्रवेश हो चुका है, जिनका तर्क है मैं क्यों नहीं हो सकता सीएम। वहीं केंद्र सरकार की पंजाब के घटनाक्रम पर पैनी नजर है । ऐसे में राज्य में राजनीतिक संकट उसे एक बार फिर राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाता दिख रहा है।
शनिवार को पंजाब कांग्रेस विधायक दल की बैठक में धुरंधर कांग्रेसी रहे बलराम जाखड़ के पुत्र सुनील जाखड़ के नाम का एलान हो गया होता अगर सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सिख और गैर सिख का पेंच न फंसाया होता। उधर कैप्टन के इस्तीफे के झटके से अभी हाईकमान संभल भी नहीं पाया था कि वरिष्ठ नेता शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने पार्टी में तुरंत नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठाते हुए सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
पंजाब भाजपा की ओर से कांग्रेस से नाराज कैप्टन को अपने पाले में लाने की कसरत शुरू हो गयी है। लेकिन असली पेंच कैप्टन की तीन कृषि कानून वापस लेने की मांग पर अड़ जाने से फंस गया है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि इन हालात में कैप्टन आम आदमी का दामन भी थाम सकते हैं। यदि कैप्टन कांग्रेस को छोड़ते हैं तो कांग्रेस विधायकों का एक बड़ा तबका उनके साथ चला जाएगा । ऐसे में राष्ट्रपति शासन लागू करने का केंद्र सरकार को आधार मिल जाएगा जो कि भाजपा नेतृत्व की इच्छा के अनुरूप हो जाएगा।
पंजाब की बात करें तो राज्य में अब तक नौ बार राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है। पंजाब में सबसे पहले 20 जून, 1951 से 17 अप्रैल, 1952 के बीच राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब कुल 3,510 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा है, जो किसी भी राज्य के लिए सबसे अधिक है। जो लगभग 10 साल की अवधि है। इसका अधिकांश हिस्सा 80 के दशक में पंजाब उग्रवाद की गिरफ्त में तब का है। तब पंजाब 1987 से 1992 तक लगातार 5 वर्षों तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा था।
कौन हैं सुखजिंदर सिंह रंधावा
सुखजिंदर सिंह रंधावा अमरिंदर मंत्रिमंडल में जेल और सहकारिता के राज्य मंत्री रहे हैं। वह डेरा बाबा नानक का प्रतिनिधित्व करते हैं। रंधावा पिछले दिनों सुरक्षा मांगे जाने को लेकर भी चर्चा में आए थे । जब केंद्र सरकार ने कहा था कि रंधावा को कोई खतरा नहीं है । इसलिए सुरक्षा नहीं मिलेगी। इसके अलावा रंधावा की जाति के आधार पर आरक्षण की मांग का पंजाब बसपा अध्यक्ष जसवीर सिंह घड़ी ने विरोध करते हुए कहा था कि रंधावा की जाति के आधार पर आरक्षण की मांग अशोभनीय है। उन्होंने कैप्टन अमरिंदर को हटाने की पार्टी हाईकमान से मांग भी की थी। इसमें त्राजिंदर सिंह बाजवा ने उनका साथ दिया था। इसके बाद दोनों ने बटाला को नया जिला बनाने की भी मांग की थी।
बडबोलेपन में तो नहीं फंसे जाखड़
उधर सुनील जाखड़ भी अपने बड़बोलेपन से फंस गए लग रहे हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात से वह इतने खुश हो गए कि अपने ट्वीटर अकाउंट पर सुनील जाखड़ ने राहुल गांधी की तारीफों के पुल बांध दिये। जाखड़ ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा कि राहुल गांधी ने चल रहे झगड़े का बेहद सटीक हल निकाला है। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरा ही है, साथ ही शिरोमणि अकाली दल की रीढ़ भी टूट गई है। जाखड़ के इस ट्वीट का भी नकारात्मक असर हुआ है।
इस बीच चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा है कि मै क्यों नहीं और उन्होंने उप मुख्यमंत्री के लिए अपने नाम पर विचार किये जाने की बात कही है। हालांकि इस बवाल के बीच कांग्रेस के एक गुट को यह डर सताने लगा है कि कांग्रेस का कलह कहीं राष्ट्रपति शासन को न्योता न दे दे। उधर दिग्गज कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग करके कांग्रेस नेतृत्व को एक बार फिर असहज कर दिया है। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी पद छोड़ने की इच्छा जता चुकी हैं अगर राहुल अध्यक्ष बनना चाहते हैं तो यह तुरंत होना चाहिए।