जंगल जंगल फूल खिलाने वाले किपलिंग की जयंती आज, जानिए उनसे जुड़ीं रोचक बातें
ब्रिटिश लेखक और कवि रुडयार्ड किपलिंग का नाम सुनकर उनकी लिखी किताब ‘द जंगल बुक’ ,‘किम’ और ‘द मैन हु वुड बी किंग’ दिमाग में आती है। उन्हें दुनिया के बेहतरीन लेखक और कवि के तौर पर याद किया जाता है।
ब्रिटिश लेखक और कवि रुडयार्ड किपलिंग का नाम सुनकर उनकी लिखी किताब ‘द जंगल बुक’ ,‘किम’ और ‘द मैन हु वुड बी किंग’ दिमाग में आती है। उन्हें दुनिया के बेहतरीन लेखक और कवि के तौर पर याद किया जाता है। रुडयार्ड किपलिंग सबसे कम उम्र में नोबल पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार के साथ ही अपने समय के मशहूर पत्रकार, उपन्यासकार और कवि भी थे। जंगल बुक और इसके हीरो मोगली को शायद ही कोई बच्चा न जानता होगा। जंगल बुक की कहानियों को पढ़ते समय मोगली अपना दोस्त सा लगने लगता है। इस कमाल की कहानी के लेखक रुडयार्ड किपलिंग का आज (30 दिसंबर) जन्मदिन है।
रुडयार्ड किपलिंग का जन्म मुंबई में हुआ। उनके माता-पिता तब भारत में रहते थे। उनका नाम रुडयार्ड रखे जाने की कहानी भी बड़ी मजेदार है। दरअसल रुडयार्ड किपलिंग के माता-पिता ने रुडयार्ड नामक झील के पास शादी की थी। जब उनका पहला बच्चा हुआ, तो उन्होंने झील के नाम पर ही अपने बेटे का नाम रुडयार्ड रख दिया। जंगल बुक की कहानियां 1893 से 1894 के बीच लिखी गईं। कहते हैं कि उन्होंने ये कहानियां अपनी बेटी जोसेफिन के लिए लिखी थीं। इन कहानियों का केंद्र मध्य प्रदेश के जंगल हैं।
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अकेलेपन में बीता बचपन
किपलिंग के भाई और बहन का बाल्यकाल बोर्डिंग हाउस में बीता और ये उनके सबसे भयानक साल थे। किपलिंग ने कई कहानियों में उन परेशानियों का जिक्र किया है। डेवोन कॉलेज में अपने वर्षों के दौरान, किपलिंग ने अपनी पहली कहानियाँ लिखीं। वे 1882 में भारत लौटे और एक अखबार में नौकरी शुरू की और अपनी रचनाएँ प्रकाशित करने के लिए अपनी मातृभूमि लौट आए। एक संवाददाता के रूप में उनके काम ने अन्य देशों के लिए अपना रास्ता खोल दिया।
दुनिया भर में किया भ्रमण
किपलिंग ने दुनिया भर से सक्रिय रूप से यात्रायें कीं। इन्हीं यात्राओं के दौरान उन्होंने सबसे ज्यादा लेखन किया। उनकी कहानियां और निबंध तेजी से लोकप्रिय हुए और किपलिंग ने नई किताबें प्रकाशित कीं।
1890 में वो इंग्लैंड चले गए जहाँ अपना समय अधिक गंभीर कामों के लिए समर्पित किया। 1901 में उनका उपन्यास ‘किम’ प्रकाशित हुआ।
नोबेल प्राइज
1907 में उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वे अंग्रेजी भाषा के पहले लेखक बने जिन्हें ये पुरस्कार मिला और आज तक इतनी कम उम्र में किसी और को ये पुरस्कार नहीं मिला है। दूसरे सम्मानों में उन्हें ब्रिटिश पोएट लौरिएटशिप और कई अवसरों पर नाइटहुड दी गई थी लेकि इन सभी उपाधियों को ग्रहण करने से उन्होंने मना कर दिया था।
बेटे को युद्ध में गंवाया
प्रथम विश्व युद्ध के समय राष्ट्रवाद से सराबोर हो रुडयार्ड किपलिंग ने भी ब्रिटेन को युद्ध में लड़ने की हिमायत की थी। वह इस कदर युद्ध के हिमायती बन गए थे कि उन्होंने अपने 18 साल के बेटे जॉन किपलिंग को अपनी पहचान के दम पर सेना में भर्ती करवाया था, किंतु कुछ समय बाद ही उन्हें युद्ध को लेकर अपने विचार बदलने पड़े।
1915 में जॉन किपलिंग युद्ध के लिए फ्रांस गए, जिसके बाद वहां हुई बैटल ऑफ लूस में उन्हें लापता घोषित कर दिया गया। 1915 से लेकर 1919 तक वो अपने बेटे को ढूंढते रहे लेकिन सिवाय मायूसी के उनके हाथ कुछ ना लगा। आखिरकार थक हारकर 1919 में उन्हें मानना पड़ा कि वो अपने एकलौते बेटे को युद्ध में हार गए।
हाथी और स्वस्तिक
रुडयार्ड का भारत के प्रति प्रेम इतना गहरा था कि उनके लगभग हर उपन्यास के कवर में कमल का फूल, हाथी और स्वस्तिक का चिन्ह छपा होता था। वो दौर द्वितीय विश्व युद्ध का था इसलिए स्वस्तिक को हिटलर की नाज़ी पार्टी से जोड़कर देखा जाता था। लेकिन स्वस्तिक का इस्तेमाल किपलिंग बहुत पहले से कर रहे थे जबकि स्वस्तिक के साथ नाज़ी कनेक्शन 1920 के बाद स्थापित हुआ था।
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औपनिवेशिक चरित्र
रुडयार्ड किपलिंग की रचनाओं में औपनिवेशिक हुक्मरानों का चरित्र भी मुखर हुआ है। ‘द टॉम्ब ऑफ हिज़ एन्सेस्टर्स’ में किपलिंग ने लिखा कि यह एशियाई समाजों की दिक्कत है कि वो ‘बिना नंगी तलवार देखे किसी कानून का पालन नहीं करते।‘
‘द रिडल ऑफ द एम्पायर’ में किपलिंग ने लिखा ‘इन समाजों में हमारे आने से पहले चारों ओर हत्या, यातना और खून-खराबे का माहौल था’ और अंग्रेजों ने यहां आकर इस तरह के समाजों पर उपकार किया था।
नीलमणि लाल