संस्कृति, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति की गहरी समझ रखते थे अटल

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में दिग्गज राजनेता, विदेश नीति में संसार भर में कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक अत्यंत सक्षम और संवेदनशील कवि, लेखक और पत्रकार भी थे।

Update: 2020-12-25 02:57 GMT
संस्कृति, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति की गहरी समझ रखते थे अटल

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में दिग्गज राजनेता, विदेश नीति में संसार भर में कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक अत्यंत सक्षम और संवेदनशील कवि, लेखक और पत्रकार भी थे। उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भाजपा की स्थापना की थी और फिर उसे सत्ता के शिखर पहुंचाया। भारतीय राजनीति में अटल-आडवाणी की जोड़ी सुपरहिट साबित हुई। अटल बिहारी देश के उन चुनिन्दा राजनेताओं में से एक थे, जिन्हें दूरदर्शी माना जाता था।

संस्कृति, सभ्यता, राजनीति आदि की गहरी समझ

उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में ऐसे कई फैसले लिए जिसने देश और उनके खुद के राजनीतिक छवि को काफी मजबूती दी। भारत की संस्कृति, सभ्यता, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति की इनको गहरी समझ थी। बदलते राजनैतिक पटल पर गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक बनाने, चलाने और देश को विश्व में एक शक्तिशाली गणतंत्र के रूप में प्रस्तुत कर सकने की करामात अटल जी जैसे करिश्माई नेता के बूते की ही बात थी।

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मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक मध्यवर्गीय परिवार में 25 दिसंबर, 1924 को अटल जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी को तब शायद ही अनुमान रहा होगा कि आगे चलकर उनका यह पुत्र विश्वपटल पर भारत का नाम रोशन करेगा। अटल जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज तथा कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एम. ए.की उपाधि प्राप्त की। सन् 1993 मे कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा दर्शन शास्त्र में पी.एच डी की मानद उपाधि से सम्मानित किए गए।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े

अटल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे। भारतीय स्वातंत्र्य-आंदोलन में सक्रिय योगदान कर 1942 आंदोलन में वो जेल गए तथा सन् 1951 में गठित राजनैतिक दल ‘भारतीय जनसंघ’ गठन हुआ जिसके अटल जी संस्थापक सदस्य थे। भारत के बहुदलीय लोकतंत्र में अटल जी ऐसे राजनेता थे ,जो प्रायः सभी दलों को स्वीकार्य रहे। इनके व्यक्तित्व की विशेषता के कारण ही 16 मई, 1996 से 31 मई, 1996 तथा 1998 - 99 और 13 अक्तूबर, 1990 से मई, 2004 तक तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 में बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से जनसंघ के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। उस साल जनसंघ ने उन्हें लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ाया था। लखनऊ में वह चुनाव हार गए। मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंच गए। यहीं से अटल विहारी वाजपेयी के अगले पांच दशकों के लंबे संसदीय करियर की यह शुरुआत थी।

घर जैसा रहा लखनऊ

लखनऊ उनके घर जैसा रहा है। वह यहां से कई बार सांसद बने। इसी तरह भारत रत्न, पद्म विभूषण अटल बिहारी वाजपेयी के संघर्ष और सफलता की गाथा कानपुर का डीएवी कॉलेज पूरे मन से सुनाता है। इस कॉलेज की पुरानी इमारत में उनके संघर्षों के गीत आज भी गूंजते हैं। उस दौर के उनके साथी बेशक जुबानी सुनाने को उपलब्ध न हों लेकिन, अटल जी से जुड़े रोचक संस्मरण ही इस संस्थान के लिए धरोहर बन गए हैं। अटल ने 1945-46, 1946-47 के सत्रों में यहां से राजनीति शास्त्र में एमए किया। वे पहले गैर कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रुप में अपना कार्यकाल पूरा किया। हांलांकि वे तीन बार भारत के प्रधानमंत्री के लिए चुने गए लेकिन सिर्फ एक बार ही अपना कार्यकाल पूरी कर पाए । अटलजी की शख्सियत से भारत ही नहीं विदेशों के कई दिग्गज राजनेता भी खासा प्रभावित थे।

कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे

विभिन्न संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य और विदेश मंत्री तथा प्रधानमंत्री के रूप में इन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्राएं कीं और भारतीय कूटनीति तथा विश्वबंधुत्व का ध्वज लहराया. राष्ट्र धर्म (मासिक), पाञ्चजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक), और वीर अर्जुन (दैनिक), पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे। विभिन्न विषयों पर अटल जी द्वारा रचित अनेक पुस्तकें और कविता संग्रह प्रकाशित हैं, देश की आर्थिक उन्नति, वंचितों के उत्थान और महिलाओं तथा बच्चों के कल्याण की चिंता उन्हें हरदम रहती थी।

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राष्ट्र सेवा के राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण से अलंकृत श्री वाजपेयी 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार और सर्वाेत्तम सांसद के भारतरत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार, 2015 में सर्वाेच्च सम्मान भारत रत्न सहित अनेक पुरस्कारों, सम्मानों से विभूषित थे। भाजपा के संस्थापकों में शामिल वाजपेयी 3 बार देश के प्रधानमंत्री रहे। वह पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। उन्हें देश के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

विपक्ष के नेता भी सुनते थे उनका भाषण

अटल विहारी वाजपोयी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि जब उनके भाषण होते थे तो पक्ष के नहीं विपक्ष के नेता भी उनके जनसभाओं में जाकर उनके भाषण को सुना करते थे आज उनकी कमी खलेगी कि जिसको शब्दों में बयां करना मुश्किल ही है आज पूरा देश उनके लिए रो रहा है। एक नेता, राजनेता कैसे बनता है, इसका सबसे सटीक उदाहरण वाजपेयी हैं। अपने मूल्यों और आदर्शाे से समझौता न करते हुए प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र देने की हिम्मत क्या आज के परिदृश्य में कोई प्रधानमंत्री कर सकता है? वह एक कुशल वक्ता थे और शब्दों पर उनकी कितनी जबरदस्त पकड़ थी, वह उनके भाषणों से साफ झलकती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका हिंदी में दिया भाषण आज भी गर्व की अनुभूति देता है।

संवेदनशील कवि, लेखक और पत्रकार भी थे अटल जी

राजनीति में दिग्गज राजनेता, विदेश नीति में संसार भर में समादृत कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ ये एक अत्यंत सक्षम और संवेदनशील कवि, लेखक और पत्रकार भी थे, विभिन्न संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य और विदेश मंत्री तथा प्रधानमंत्री के रूप में इन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्राएं कीं और भारतीय कूटनीति तथा विश्वबंधुत्व का ध्वज लहराया।

...भारत और अमेरिका के संबंधों नें नए स्तर को छुआ

साल 2001 में 14 जुलाई को भारत-पाक शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री परवेज मुशर्रफ तीन दिन के लिए भारत आए थे। तब अटलजी ने राष्ट्रपति भवन में मुशर्रफ के साथ रात्री भोज किया था। अटलजी और बुश के शासनकाल में भारत और अमेरिका के संबंधों नें नए स्तर को छुआ। क्योंकि इससे पहले भारत और अमेरिका के बीच के रिश्तों में बहुत फासलें थे। अटल बिहारी वाजपेयी को भारत-पाक के रिश्तों को ठीक करने के लिए भी जाना जाता है।

सन् 1999 में जब सरकार बनी तो अटलजी दो दिन (19-20 फरवरी) को पाकिस्तान यात्रा पर गए। उन्होंने दिल्ली से लाहौर बस सेवा की शुरु करने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने साल 2000 में भारत के दौरा किया था। बिल क्लिंटन 22 सालों में भारत का दौरा करने वाले पहले राष्ट्रपति बन गए थे। उनसे पहले सन् 1978 में जिमी कार्टर ने सबसे पहले भारत का दौरा किया था। इस यात्रा के दौरान क्लिंटन पांच दिन के लिए भारत में रुके। अटलजी का बांग्लादेश से भी काफी करीबी रिश्ता था।

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