मार्टिन लूथर: ईसाई धर्म के क्रांति दूत, जानें उनके बारे में सबकुछ

आज मार्टिन लूथर की जयंती है। वो मार्टिन लूथर जिनके चलते ईसाई धर्म में क्रांति आई और आगे चल कर पश्चिमी यूरोप की तस्वीर बदल गई। बहुत से लोग मार्टिन लूथर और मार्टिन लूथर किंग जूनियर को एक ही समझते हैं लेकिन दोनों अलग अलग महान शख्स थे।

Update: 2020-11-09 05:14 GMT
मार्टिन लूथर: ईसाई धर्म के क्रांति दूत

लखनऊ: आज मार्टिन लूथर की जयंती है। वो मार्टिन लूथर जिनके चलते ईसाई धर्म में क्रांति आई और आगे चल कर पश्चिमी यूरोप की तस्वीर बदल गई। बहुत से लोग मार्टिन लूथर और मार्टिन लूथर किंग जूनियर को एक ही समझते हैं लेकिन दोनों अलग अलग महान शख्स थे। लेकिन दोनों ही क्रांतिकारी थे।

जर्मनी में पैदा हुए

मार्टिन लूथर जर्मन थे और उनका असली नाम 'मार्टिन लूदर' था। उनके पिता चाहते थे कि वह कानून की पढ़ाई करें और परिवार के बिजनेस में मदद करें। लेकिन जब लूथर 21 साल के थे तो एक दिन बहुत तेज आंधी में फंस गए और मौत के करीब थे। उन्होंने वर्जिन मैरी की मां सेंट आना से अपनी जान बचाने की प्रार्थना की। उन्होंने वादा किया था कि अगर जिंदा रहे तो साधु बन जाएंगे। लूथर अपने वादे पर कायम रहे और दो साल बाद साधु बन गए।

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कैथोलिक चर्च के खिलाफ बगावत

16वीं सदी में कैथोलिक चर्च भ्रष्टाचार का अड्डा बन गए थे। चर्च के भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ बगावत करना आसान नहीं था। चर्च की इतनी मजबूत पकड़ थी कि कोई उसके खिलाफ बोल नहीं सकता था। लोगों के बीच यह बात फैलाई गई थी कि पापियों को मौत के बाद सजा भुगतनी पड़ती है। लेकिन अगर कोई इंसान चर्च की ओर से जारी की जाने वाली माफी की चिट्ठियां खरीद लें तो उसकी सजा कम हो जाती है। ये सब देखकर मार्टिन लूथर का गुस्सा भड़क गया। उनका मानना था कि इंसान कभी भगवान के साथ किसी तरह का सौदा नहीं कर सकता है।

मशहूर थीसिस

चर्च के अपराध को रोकने के मकसद से मार्टिन ने 1517 में मशहूर '95 थीसिस' लिखा । इसमें चर्च पर जनता को लूटने, गलत शिक्षा देने और अपनी ताकत का नाजायज फायदा उठाने का आरोप लगाया गया था। लूथर ने इसकी प्रतियां विद्वानों और ईसाई धर्मगुरुओं को भेजी। कहा जाता है कि इसके साथ ही 1517 के आसपास ईसाई जगत में धर्मसुधार आंदोलन शुरू हुआ।इस क्रांति के चलते प्रोटेस्टेंट नामक विचारधारा या मत चल निकला ।

प्रेस की बदौलत मार्टिन लूथर की कोशिश ने आंदोलन का रूप ले लिया। चूंकि पूरा आंदोलन चर्च के खिलाफ या प्रोटेस्ट में था सो इस आंदोलन को मानने वालों को प्रोटेस्टैंट कहा जाने लगा।

क्रिसमस डे की शुरुआत भी मार्टिन लूथर के प्रभाव में हुई। पहले ईसाई जगत में यीशू मसीह के जन्मदिन का जश्न नहीं मनाया जाता था। बल्कि जनवरी में सेंट निकोलस डे मनाया जाता था। माना जाता था कि इस दिन ही तीन महान लोगों ने बेथलेहम का भ्रमण किया था। मार्टिन का मानना था कि यीशू सर्वोच्च हैं सो सेंट निकोलस को इतना सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए। इस वजह से प्रोटेस्टैंट मत के अंदर सेंट निकोलस डे का महत्व घटता गया। उसकी जगह पर 24 दिसंबर की पूर्व संध्या पर जर्मनी और कई अन्य यूरोपी देशों में यीशू मसीह के जन्मदिन का जश्न मनाया जाने लगा।

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