शेर ए पंजाबः जिसने हिन्दुओं को दिलाया सम्मान, सोने का था खजाना
आज शेर ए पंजाब की जयंती है। जिन्हें लोग महाराजा रणजीत सिंह के नाम से जानते हैं। रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर 1780 को हुआ था। वह पंजाब प्रांत के राजा थे। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: आज शेर ए पंजाब की जयंती है। जिन्हें लोग महाराजा रणजीत सिंह के नाम से जानते हैं। रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर 1780 को हुआ था। वह पंजाब प्रांत के राजा थे। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते। महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। अपने जीते जी अंग्रेजों को कभी पास नहीं फटकने दिया।
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पंजाब को दिलायी पहचान
महाराजा रणजीत सिंह ने न केवल पंजाब को शक्तिशाली बनाया। बल्कि पंजाब को पहचान भी दिलायी। हिन्दू धर्म के प्रति उनकी आस्था अप्रतिम थी। रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) संधावालिया महाराजा महां सिंह के घर हुआ था।
ये बात तब की है जब पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने सूबे को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था।
12 साल की उम्र में सिर से उठ गया पिता का साया
छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गई। 12 साल के हुए तो पिता चल बसे लेकिन इस मासूम ने राजपाट का सारा बोझ अपने नाजुक कंधों पर उठा लिया। और लगातार आगे बढ़ते हुए 12 अप्रैल 1801 को 31 साल की उम्र में महाराजा की उपाधि हासिल कर ली। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया।
महाराजा रणजीत ने अफगानों को पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया।
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पहली आधुनिक भारतीय सेना का श्रेय
पहली आधुनिक भारतीय सेना - "सिख खालसा सेना" गठित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी सरपरस्ती में पंजाब अब बहुत शक्तिशाली सूबा था। उन्होंने पंजाब में कानून एवं व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को मृत्युदण्ड की सजा नहीं दी।
रणजीत सिंह ने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले जजिया पर भी रोक लगाई। उन्होंने अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा। काशी विश्वनाथ मंदिर पर सोने का पत्तर चढ़ाया। वह चढ़ाना तो सोमनाथ मंदिर में कोहेनूर हीरा भी थे लेकिन उनकी ये साध अधूरी रही।