रामचन्द्र की पुण्य तिथि पर विशेष: ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ के साथ ही रचे कई गीत
जब भी कभी आकाशवाणी में सुमधुर गीतों की धुन सुनाई पड़ती है तो उसके पीछे संगीत सीरामचन्द्र का ही होता है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि लता मंगेशकर के गाए देश प्रेम के गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’ को सी रामचद्र ने संगीतबद्व किया था।
मुम्बई। जब भी कभी आकाशवाणी में सुमधुर गीतों की धुन सुनाई पड़ती है तो उसके पीछे संगीत सीरामचन्द्र का ही होता है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि लता मंगेशकर के गाए देश प्रेम के गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’ को सी रामचद्र ने संगीतबद्व किया था।
वर्ष 1918 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक छोटे से गांव पुंतबा में जन्मे सी रामचंद्र का रुझान बचपन से ही संगीत की ओर था। उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा गंधर्व महाविद्यालय के विनाय कबुआ पटवर्धन से हासिल की।
देश प्रेम का नंबर एक गीत बना
‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’ गीत पहले लता और आशा से गवाया जाना था पर बाद में सीरामचंद्र ने इसे केवल लता मंगेशकर से गंवाने का फैसला किया जो देश प्रेम का नंबर एक गीत बना। देशभक्ति और समाज पर प्रहार करने वाले गीतों की धुनें बनाने में रामचंद्र को महारत हासिल थी। इसके के अलावा ‘देख तेरे संसार की हालत, क्या हो गई भगवान’, ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा’ और ‘आज के इंसान को ये क्या हो गया’ को सुनकर यह कहना कठिन है कि प्रदीप के शब्द श्रेष्ठतर हैं या रामचंद्र की धुन। वैसे राजेंद्र कृष्ण के साथ रामचंद्र की जोड़ी खूब जमी।
इस फिल्म से की थी करियर की शुरुआत
उन्होंने वर्ष 1951 में भगवान दादा की निर्मित फिल्म अलबेला में संगीत देकर कैरियर की शुरुआत की। इस फिल्म से लोगों ने उनके संगीत को पहचाना। फिल्म अलबेला में उनके संगीतबद्ध सभी गाने सुपरहिट हुये लेकिन खासकर शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के, भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे, मेरे पिया गये रंगून किया है वहां से टेलीफून ने पूरे भारत वर्ष में धूम मचा दी। वर्ष 1953 में प्रदीप कुमार, बीना राय अभिनीत फिल्म अनारकली की सफलता के बाद रामचंद्र शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। फिल्म अनारकली में उनके संगीत से सजे ये गीत जाग दर्दे इश्क जाग, ये जिंदगी उसी की है... श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।
इसके बाद सी रामचंन्द्र को फिल्म निर्माण करने की तमन्ना पैदा हुई और उन्होंने 1953 में न्यू सांई प्रोडक्शन का निर्माण कर झंझार, लहरें और दुनिया गोल है जैसी फिल्मों का निर्माण किया, लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुयी, जिससे उन्हें काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा।
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समाज में बढ़ रही कुरीतियों पर किया वार
इसके बाद वह फिर संगीत के अपने क्षेत्र में लौट आए और वर्ष 1954 मे प्रदर्शित फिल्म नास्तिक में उनके संगीतबद्ध गीत देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान कितना बदल गया इंसान.. समाज में बढ़ रही कुरीतियों पर उनका सीधा प्रहार था। ‘अनारकली’ के गीत लता की आवाज में, सिंधु भैरवी की छाया लिए और दादरा ताल में अब्दुल हलीम जाफर खान के सितार के साथ ‘ये जिंदगी उसी की है’ और बागेश्वरी में दादरा ताल पर ‘जाग दर्दे-इश्क जाग’ को गुनगुनाते लोग आज भी मिल जाएंगे। उनके गीतों में एक लय और एक सुर नहीं रहता था वह हमेशा प्रयोग किया करते थें।
इसके अलावा गोरे-गोरे ओ बांके छोरे’, ‘ईना मीना डीका’, ‘सबसे बड़ा रुपैया’, ‘मुहब्बत में ऐसे जमाने भी आए’, ‘तू छुपी है कहां’, ‘हम तुझसे मुहब्बत करके सनम’ जैसी धुनें देने वाले सी. रामचंद्र के संगीत की झंकार पांच जनवरी, 1982 को दुनिया से विदा हो गए। पर उनके संगीत को लोग आज भी याद करते हैं।