क्या आप जानते हैं जीन्स की खोज किसने की, कौन था इसका जनक

डा. खुराना ने डीएनए अणु की खोज की। आज कोरोना काल में कोरोना के अणु के प्रोटीन की पहचान में उनकी खोज बहुत मददगार साबित हुई है। खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर नामक स्थान पर 9 जनवरी 1922 में हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे।

Update:2020-11-09 10:27 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: डॉ. हरगोविंद खुराना की आज पुण्यतिथि है। उनका निधन नौ नवंबर 2011 को अमेरिका में हुआ। वह भारतीय मूल के वैज्ञानिक थे जिन्हें नोबल पुरस्कार मिला। डा. खुराना ने डीएनए अणु की खोज की। आज कोरोना काल में कोरोना के अणु के प्रोटीन की पहचान में उनकी खोज बहुत मददगार साबित हुई है। खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक स्थान पर 9 जनवरी 1922 में हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। अपने माता-पिता के चार पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे।

पिता के निधन के बाद भाई ने लिया पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा

गरीबी के बावजूद हरगोविंद के पिता ने अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया जिसके कारण खुराना ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया। जब वह मात्र 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और ऐसी परिस्थिति में बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा संभाला। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में ही हुई।

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डॉ खुराना ने पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी.एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की। पंजाब विश्वविद्यालय में महान सिंह उनके निरीक्षक थे।

इसके पश्चात भारत सरकार की छात्रवृत्ति पाकर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रफेसर रॉजर जे.एस. बियर के देख-रेख में अनुसंधान किया और डाक्टरेट की उपाधि अर्जित की। इसके उपरांत वह भारत वापस आ गए लेकिन यहां उनके मन मुताबिक काम नहीं मिला और एक बार फिर भारत सरकार की शोधवृत्ति से वे जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलजी में प्रफेसर वी. प्रेलॉग के साथ शोध कार्य में लगे।

डॉ. खुराना ने वर्ष 1952 में स्विटजरलैण्डट के एक संसद सदस्यर की पुत्री से विवाह किया। डॉक्टर खुराना को अपनी पत्नी से पूर्ण सहयोग मिला। उनकी पत्नी भी एक वैज्ञानिक थीं और अपने पति के मनोभावों को समझती थीं।

1960 में डॉ. हरगोविंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्जाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद पर कार्य किया। वह इस संस्था के निदेशक रहे। यहां उन्होंने अमेरिकी नागरिकता स्वीकार कर ली। डॉ हरगोविंद ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर डी.एन.ए. अणु की संरचना को स्पष्ट किया था और यह भी बताया था कि डी.एन.ए. प्रोटीन्स का संश्लेषण किस प्रकार करता है।

जीन्स का निर्माण

इसका निर्माण कई प्रकार के अम्लों से होता है। खोज के दौरान यह पाया गया कि जीन्स डी.एन.ए. और आर.एन.ए. के संयोग से बनते हैं। अतः इन्हें जीवन की मूल इकाई माना जाता है। इसी में आनुवंशिकता का मूल रहस्य छिपा है।

खुराना के इस अनुसंधान से पता चलता कि जींस मनुष्य की शारीरिक रचना, रंग-रूप और गुण स्वभाव से जुड़े हुए हैं। यह बात जीन्स पर निर्भर करती है कि किस मनुष्य का स्वभाव कैसा है और उसका रंग-रूप कैसा है।

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माता-पिता को संतान की प्राप्ति उनके जींस के संयोग से ही होती है। इसलिए बच्चों में माता-पिता के गुणों का होना स्वाभाविक है। मनुष्य को लंबे समय तक स्वस्थ रखने की विधियों को खोजने में जींस सहयोगी हो सकता है।

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डॉ हरगोविंद को और उनके दोनों अमेरिकी साथियों को डॉ. राबर्ट होले और डॉ. मार्शल निरेनबर्ग को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 09 नवम्बॉर 2011 को इस महान वैज्ञानिक ने अमेरिका के मैसाचूसिट्स में अन्तिम सांस ली।

डॉ हरगोविंद खुराना को 1968 में चिकित्सा विज्ञानं का नोबेल पुरस्कार मिला। 1958 में उन्हें कनाडा का मर्क मैडल प्रदान किया गया। 1960 में कैनेडियन पब्लिक सर्विस ने उन्हें स्वकर्ण पदक दिया गया। 1967 में डैनी हैनमैन पुरस्काकर मिला। 1968 में लॉस्कपर फेडरेशन पुरस्का्र और लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्काार से सम्मानित किए गए। 1969 में भारत सरकार ने डॉ. खुराना को पद्म भूषण से अलंकृत किया। पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ ने डी.एस-सी. की मानद उपाधि दी।

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