बॉलीवुड में डिप्रेशन: इतनी गहराई तक फैलता जा रहा ये, है ये बड़ी बीमारी
बॉलीवुड में एक समस्या टैंलेट मैंनेजमेंट को लेकर है। बड़े प्रॉडक्शन हाउस की अपनी टैंलेंट कंपनियां है जो कई बार नए लोगों को मौके देती हैं। मौके देने के साथ-साथ कंपनियां मानने लगती हैं कि ये नए लोग उनका टैलेंट है और आगे भी उनके साथ ही काम करेंगे |
- नील मणि लाल
नई दिल्ली: सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने फिल्म उद्योग की ग्लैमर की दुनिया का स्याह पहलू दुनिया के सामने खोला है। जो सबसे बड़ा मुद्दा सामने आया है वह है डिप्रेशन का। बॉलीवुड में कई सितारे मनोचिकित्सक की मदद लेते हैं और अधिकतर मामलों में वे अपनी अवसाद की मनोस्थिति से उबर जाते हैं। वैश्वीकरण के दौर में हर एक बीमारी इंसान को कम उम्र में ही होने लगी है। यही हाल डिप्रेशन का भी है। आज हर सात में से एक व्यक्ति अवसाद से ग्रस्त है।
एजेंसियां कैरियर बर्बाद करने में सक्षम
बॉलीवुड में एक समस्या टैंलेट मैंनेजमेंट को लेकर है। बड़े प्रॉडक्शन हाउस की अपनी टैंलेंट कंपनियां है जो कई बार नए लोगों को मौके देती हैं। मौके देने के साथ-साथ कंपनियां मानने लगती हैं कि ये नए लोग उनका टैलेंट है और आगे भी उनके साथ ही काम करेंगे। धीरे-धीरे यह चीजें उस कलाकार को कंट्रोल करने लगती हैं।
कलाकार की क्रिएटिव फ्रीडम खत्म हो जाती है और वे घुटन महसूस करने लगते हैं। इसी तरह की बात दबंग फेम डायरेक्टर अभिनव कश्यप ने कही हैं। अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर अभिनव ने कास्टिंग एजेंसियों को मौत का फंदा करार दिया है। अभिनव कहते हैं कि ये एजेंसियां किसी का भी जीवन और कैरियर बर्बाद करने में सक्षम हैं।
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लाइफस्टाइल भी समस्या
इस इंडस्ट्री में एक समस्या लाइफस्टाइल है। हर व्यक्ति स्वयं को बेहद बड़ा दिखाने और बताने की कोशिश में लगा रहता है। चाहे आपका काम चले या ना चले बांद्रा जैसे पॉश इलाके में घर, बड़ी गाड़ी रखना अब जरूरी हो गया है और फिर जब आप बड़े खर्चे नहीं उठा पाते तो डिप्रेशन आपको घेरने लगता है। वहीं कुछ लोग लगातार काम करते हैं, परिवारों से दूर रहते हैं और अकेलेपन में घिर जाते हैं। हर कोई यहां खुद को व्यस्त बताना चाहता है ताकि कोई ये ना समझ ले कि वह फ्री बैठा हुआ है। ऐसे में हर दिन व्यक्ति अकेला होता जाता है। एक वक्त ऐसा आता है कि दुनियावी चीजों में उसे कोई खुशी नहीं मिलती और व्यक्ति डिप्रेशन में चला जाता है।
42.5% प्रतिशत लोग डिप्रेसिव डिसॉर्डर का शिकार
आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल करीब 2.2 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। इनमें ज्यादा संख्या उन लोगों की होती है जो डिप्रेशन के शिकार होते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर पांचवां व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है। यानी भारत में करीब 20 करोड़ लोग मानसिक अवसाद का शिकार हैं । प्राइवेट सेक्टर में लगभग 42.5% प्रतिशत लोग डिप्रेसिव डिसॉर्डर का शिकार हैं ।
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