Eid al-Fitr: पहले किसने मनाया था ये त्यौहार और कैसे हुई इसकी शुरुआत, यहां जानें

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान के बाद 10वें शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। ईद कब मनायी जाएगी यह चांद के दीदार से तय होती है।

Update: 2020-05-21 11:31 GMT

लखनऊ: इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए रमजान का खासा महत्व है। रमजान के बाद ही ईद-उल-फितर का त्योहार आता है, जो मुसलमानों का एक पावन पर्व है।

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान के बाद 10वें शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। ईद कब मनायी जाएगी यह चांद के दीदार से तय होती है।

ईद का पावन पर्व भाईचारे को बढ़ावा देने वाला और बरकत के लिए दुआएं मांगने वाला त्यौहार है। आइए जानते हैं ईद क्यों मनाई जाती है और इस त्योहार की शुरुआत कब कैसे हुई…

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इसलिए मनाई जाती है ईद

मुस्लिम धर्म के जानकार लोगों के मुताबिक इस्लाम के बारें में कुरान में बहुत ही जानकारियां दी की गई है। इसलिए अगर कुरान की मानें तो रजमान के पाक महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह एक दिन अपने बंदों को बख्शीश और इनाम देता है। इसीलिए इस दिन को ईद कहते हैं। बख्शीश और इनाम के इस दिन को ईद-उल-फितर भी कहा जाता है।

इतिहास के पन्नों में दर्ज जानकारी के मुताबिक पहली ईद उल-फितर पैगंबर मुहम्मद ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया थी। पैगंबर हजरत मोहम्मद ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी।

जंग जीतने की खुशी में में यह पर्व मनाया जाता है। ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की नमाज अदा करने से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वो दान या जकात दे।

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जरूरतमंदों की करनी होती है मदद

जानकारों के मुताबिक मुसलमान ईद में खुदा का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की ताकत दी। ईद पर एक खास रकम (जकात) गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है। नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है, जो प्रतिदिन खाने की हो।

रमजान के दिन कई तरह के पकवान बनते हैं और मीठी सेवइयां एक-दूसरे को खिलाते हैं। परिवार और दोस्तों को तोहफा देते हैं। रमजान महीने में रोजे रखने को फर्ज करार दिया गया है। ऐसा इसलिए, ताकि इंसान को भूख-प्यास का अहसास हो सके और वह लालच से दूर होकर सही राह पर चले।

कुर्बानी का खासा महत्व

इस त्योहार की शुरुआत हजरत इब्राहिम से हुई थी। मीठी ईद के ढाई महीने बाद ही ईद-उल-अजहा आती है। ईद-उल-अजहा को बकरीद भी कहा जाता है। ईद-उल-अजहा को ईद-ए-कुर्बानी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन नियमों का पालन करते हुए कुर्बानी दी जाती है।

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