मजदूर नेता से लेकर रक्षा मंत्री तक, जानिए कैसा था जॉर्ज फर्नांडिस का सफर

मजदूर नेता से भारत के शीर्ष नेता तक का सफर तय करने वाले जॉर्ज फर्नांडिस उन चंद नेताओं में शुमार रहे जिन्हें जनता से बेशुमार प्यार और सम्मान भी मिला। इमरजेंसी के बाद जॉर्ज फर्नांडिस ने मुजफ्फरपुर को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाई थी।

Update:2021-01-29 12:21 IST
मजदूर नेता से लेकर रक्षा मंत्री तक, जानिए कैसा था जॉर्ज फर्नांडिस का सफर

लखनऊ: मजदूर नेता से भारत के शीर्ष नेता तक का सफर तय करने वाले जॉर्ज फर्नांडिस उन चंद नेताओं में शुमार रहे जिन्हें जनता से बेशुमार प्यार और सम्मान भी मिला। इमरजेंसी के बाद जॉर्ज फर्नांडिस ने मुजफ्फरपुर को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाई थी। उनका जीवन सादगी व राजनीति के प्रति समर्पित रहा। वाजपेयी सरकार के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस देश के रक्षामंत्री थे। जॉर्ज फर्नांडीस सत्ता में रहे या विपक्ष में, हमेशा बेझिझक अपनी बात रखते थे।

मजदूर यूनियन के आंदोलन से शुरुआत करते हुए उन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी अमिट पहचान बनाई। पूर्व ट्रेड यूनियन नेता, राजनेता, पत्रकार, कृषिविद फर्नांडीस जनता दल के प्रमुख सदस्य भी थे। उन्होंने ही समता पार्टी की स्थापना की थी। अपने राजनीतिक करियर में उन्होंने रेलवे, उद्योग, रक्षा, संचार जैसे अहम मंत्रालय संभाले। जॉर्ज फर्नांडीस ने 1967 से 2004 तक एक नहीं बल्कि 9 बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की।

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यहां जानें उनके जीवन के बारे में विस्तार से

आज यानी 29 को जॉर्ज फर्नांडिस की पुण्यतिथि है। उनका जन्म 3 जून, 1930 को कर्नाटक के मंगलुरु में हुआ। मंगलुरु में पले-बढ़े फर्नांडिस जब 16 साल के हुए तो एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेजे गए। लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा। इसके बाद वह 1949 में महज 19 साल की उम्र में रोजगार की तलाश में बंबई चले आए। इस दौरान वह लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे।

50 और 60 के दशक में जॉर्ज फर्नांडिस ने कई मजदूर हड़तालों और आंदोलनों का नेतृत्व किया। राजनीति में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने से पहले जॉर्ज फर्नांडिस एक ऐसे मजदूर नेता थे जिनके पीछे पूरा मजदूर तबका चलता था। फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही की थी। उस वक्त फर्नांडिस समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से प्रेरणा लिया करते थे।

1974 में हुई रेल हड़ताल

देश की आजादी के बाद तक उस समय करीब तीन वेतन आयोग आ चुके थे, लेकिन रेल कर्मचारियों की सैलरी में कोई ठोस बढ़ोतरी नहीं हुई थी। इस बीच जॉर्ज फर्नांडिस 1973 में आल इंडिया रेलवेमैन्स फेडरेशन के अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में यह फैसला लिया गया कि वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल की जाए। उस दौरान हुई रेलवे की हड़ताल से पूरा देश थम सा गया। जब कई और यूनियनें भी इस हड़ताल में शामिल हो गईं तो सत्ता के खंभे हिलने लगे। इस वक्त तक वह बंबई के सैकड़ों-हजारों गरीबों के मसीहा बन चुके थे।

गिरफ्तारी

इस रेल हड़ताल के बाद जॉर्ज फर्नांडिस राष्ट्रीय स्तर पर छा गए और देश में उनकी पहचान फायरब्रांड मजदूर नेता के तौर पर कायम हो गई। फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जून 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी तो वह 'इंदिरा हटाओ' लहर के नायक बनकर उभरे। आपातकाल के दौरान वह लंबे समय तक अंडरग्राउंड रहे। लेकिन इसके ठीक एक साल बाद उन्हें बड़ौदा डाइनामाइट केस के अभियुक्त के रूप में गिरफ्तार कर लिया गया।

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